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१. ११. २०१०

सप्ताह का विचार- दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा बुझा नहीं सकता।- विष्णु प्रभाकर

अनुभूति में-
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दीपावली से संबंधित ढेर सी जगमग काव्य रचनाएँ विभिन्न विधाओं में...।

कलम गहौं नहिं हाथ में- दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ लंबे अंतराल के बाद फिर से यह स्तंभ लिखते हुए अच्छा लग रहा है। ...आगे पढ़ें

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- दीपावली पर दिया जलाते समय तेल में थोड़ा सा कपूर डालें तो कमरे में मंद सुगंध का आनंद उठाया जा सकता है।

पुनर्पाठ में- दीपावली के अवसर पर प्रकाशित पुराने अंकों से चुनी हुई दीपावली रचनाएँ 'दीपावली विशेषांक समग्र' में।

क्या आप जानते हैं? श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- ११ के नवगीतों का प्रकाशन निरंतर जारी है आपकी टिप्पणियाँ इसे रोचक और ज्ञानवर्धक बना सकती हैं। आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल-और-----
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रश्मि
-आशीष-के-सहयोग-से

हास परिहास

सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
दीपावली विशेषांक में
भीष्म साहनी की कहानी- ओ हरामजादे

घुमक्कड़ी के दिनों में मुझे खुद मालूम न होता कि कब किस घाट जा लगूँगा। कभी भूमध्य सागर के तट पर भूली बिसरी किसी सभ्यता के खण्डहर देख रहा होता, तो कभी युरोप के किसी नगर की जनाकीर्ण सड़कों पर घूम रहा होता। दुनिया बड़ी विचित्र पर साथ ही अबोध और अगम्य लगती, जान पड़ता जैसे मेरी ही तरह वह भी बिना किसी धुरे के निरुद्देश्य घूम रही है।
ऐसे ही एक बार मैं यूरोप के एक दूरवर्ती इलाके में जा पहुँचा था। एक दिन दोपहर के वक्त होटल के कमरे में से निकल कर मैं खाड़ी के किनारे बैंच पर बैठा आती जाती नावों को देख रहा था, जब मेरे पास से गुजरते हुए अधेड़ उम्र की एक महिला ठिठक कर खड़ी हो गई। मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया, मैंने समझा उसे किसी दूसरे चेहरे का मुगालता हुआ होगा। पर वह और निकट आ गयी।
पूरी कहानी पढ़ें...
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नरेंद्र कोहली का व्यंग्य-
अड़ी हुई टाँग
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कुमार रवींद्र का आलेख-
तुलसी के राम की मर्यादा और उनका राज्यादर्
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शशि पाधा का संस्मरण-
एक नदी एक पुल
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रमेश तिवारी 'विराम का ललित निबंध
ज्योतिपर्व की जय

पिछले सप्ताह

पं. वेदप्रकाश शास्त्री का व्यंग्य
मेरा करवाचौथ का व्रत
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दीपिका जोशी की कलम से-
पर्व परिचय: करवाचौथ

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कला दीर्घा में
विभिन्न कलाकारों की कूची से- करवाचौथ

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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करवाचौथ के अवसर पर समकालीन कहानियों में भारत से मनमोहन भाटिया की कहानी रिश्ते

सुबह का समय था। ऑफिस जाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। खाने की मेज पर नाश्ते का इंतजार सुबह का अखबार पढ़ कर हो रहा था। पत्नी शर्मिला रसोई में नाश्ते के साथ ऑफिस ले जाने का लंच का टिफिन भी पैक करने में व्यस्त थी। मध्यवर्गीय परिवार की तो लिखने-पढ़ने की मेज और खाने की मेज एक ही होती है। शुक्र है कि कुछ समय पहले खाने की मेज खरीदी, वरना बिस्तर पर ही नाश्ता, खाना, सोना सब कुछ होता था। "अखबार बंद करो, नाश्ता तैयार है।" शर्मिला ने रसोई से आवाज दी और ट्रे में नाश्ता सजा कर ले आई। ब्रेड मक्खन के साथ आलू के चिप्स देखकर सुनील चहक उठा, "आज तो एकदम छुट्टी के दिन वाला नाश्ता बना दिया। मजा आ गया।" पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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