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३०. ८. २०१०

सप्ताह का विचार- फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता

अनुभूति में-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण से संबंधित विविध विधाओं में ढेर सी काव्य रचनाएँ।

सामयिकी में- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर गीता के कर्मयोग का सामयिक विश्लेषण करता सूर्यकांत बाली का आलेख- कर्मयोगी श्रीकृष्ण

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- बराबर मात्रा में गाजर और खीरे का एक गिलास रस नियमित रूप से लेने पर बाल, नाखून और त्वचा स्वस्थ रहते हैं।

पुनर्पाठ में- उपन्यास अंश के अंतर्गत १ सितंबर २००७ को प्रकाशित नरेन्द्र कोहली के उपन्यास वासुदेव का अंश- 'कृष्ण आ गया है।'

क्या आप जानते हैं? कि भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा अवंतिका (वर्तमान उज्जैन) के प्रसिद्ध विद्वान महर्षि संदीपनि के गुरुकुल में हुई थी।

शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार चौपाल आज गुजराती कहानियों के नाम रही। रमेश उपाध्याय द्वारा प्रसिद्ध गुजराती लेखकों की बीस कहानियों... आगे पढ़ें...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-९ के लिये विशेषज्ञ टिप्पणी की प्रतीक्षा और कार्यशाला-१० के लिए अंतिम तिथि को बढ़ाए जाने की संभावना है।


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
जन्माष्टमी के अवसर पर
डॉ. सुधा पांडे की पुराण कथा- नंदनवन का पारिजात

“हे सर्वात्मन, भयानक नरकासुर ने देवताओं, सिद्धों, और असुरों सहित राजाओं की कन्याओं को भी अपने अंतःपुर में बंद कर दिया है... वरुण का जल वर्षा करने वाला छत्र मणिपर्व छीन लिया है और मंदराचल के एक प्रदेश पर भी अपना अधिकार जमा लिया है।“ त्रस्त देवराज ने अचानक द्वारका आकर श्रीकृष्ण से निवेदन किया, “इतना ही नहीं उसने मेरी माँ अदिति के अमृतवर्षी दोनो दिव्य कुंडल भी छीन लिये हैं और अब ऐरावत को छीनने की आकांक्षा लिये मेरी ओर बढ़ा चला आ रहा है.. अनर्थ हो जाएगा द्वारकाधीश...आप ही मुक्ति दिलाइये इससे।“ पृथ्वीपुत्र प्राग्ज्योतिरीश्वर नरकासुर से संतप्त हो इंद्र विचलित हो उठे थे और द्वारका दौड़े गए थे। यह वह समय था जब पृथ्वी के वीर राजा देवताओं के कष्ट में उनकी सहायता करते थे और देवता भी उनसे मित्रता रखते हुए पृथ्वी पर आते जाते रहते थे।  ...पूरी कहानी पढ़ें।
*

डॉ. नरेन्द्र कोहली का दृष्टिकोण
माखनचोरी
*

वीरनारायण शर्मा का आलेख
दो भूली बिसरी कृष्णभक्त कवयित्रियाँ
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सिद्धेश्वर सिंह का संस्मरण
स्मृतियों का राग मद्धम
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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह

अशोक गीते का व्यंग्य
रिश्वतऽमृतमश्नुते
*

सुबोध कुमार नन्‍दन का आलेख
बैजनाथधाम का श्रावणी मेला
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कला दीर्घा में प्रभु जोशी के शब्दों में
राजा रवि वर्मा का कला संसार

*

मनोहर पुरी की कलम से
प्यारा सा बंधन रक्षाबंधन

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समकालीन कहानियों में भारत से
मन्नू भंडारी की कहानी सयानी बुआ

फैजाबाद की ओर जाने वाली किसान एक्सप्रेस रद्द थी। इसके सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में टहलना होता, उसके बाद चाय-दूध होता। उसके बाद अन्नू को पढने के लिए बैठना होता। भाई साहब भी तब अखबार और ऑफिस की फाइलें आदि देखा करते। नौ बजते ही नहाना शुरू होता। जो कपडे बुआजी निकाल दें, वही पहनने होते। फिर कायदे से आकर मेज पर बैठ जाओ और खाकर काम पर जाओ। सयानी बुआ का नाम वास्तव में ही सयानी था या उनके सयानेपन को देखकर लोग उन्हें सयानी कहने लगे थे, सो तो मैं आज भी नहीं जानती, पर...पूरी कहानी पढ़ें।

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