माखनचोरी
-डॉ.नरेन्द्र
कोहली
वृन्दावन के
नंद के विषय में कुछ बातें स्पष्ट नहीं हैं। वे साधारण गोप
भी हैं, और कहीं कहीं तो कवियों ने उन्हें एक छोटे मोटे
राजा का ही स्थान दे दिया है। नंद सब के लिए आदरणीय हैं,
और साधारण गोपों से कुछ श्रेष्ठ हैं। उनके घर में आर्थिक
तंगी भी दिखाई नहीं देती। वे कभी गउवें चराने के लिए वन
जाते भी दिखाई नहीं पड़ते। इसका अर्थ है कि या तो वे अधिक
समृद्ध हैं, या फिर उनकी अवस्था इतनी हो चुकी है कि वे वन
जा कर गउवों की रखवाली का काम नहीं कर सकते। उनका
वृन्दावन का मुखिया होना सिद्ध है। उनकी आर्थिक स्थिति शेष
लोगों से कुछ अधिक समृद्ध है। सूरदास के पदों में श्रीदामा
ने कृष्ण को उपालंभ दिया है : ''खेलन में को काकों
गुसैयाँ।`` ''नाहीं बसत तुम्हारी छैया।`` ''अधिक तुम्हारी
हैं कछु गैयाँ।`` इन में कृष्ण के अर्थात् नंद के कुछ धनी
होने के संकेत हैं।
दूसरी ओर यह भी दिखाई देता है कि छोटे से कृष्ण को जगा कर
माता यशोदा गउवें चराने के लिए वन में भेज देती हैं (
प्रभातसंचारगता नु गावस्तद्रक्षणार्थं तनयं यशोदा।
प्राबोधयत् पाणितलेन मन्दं गोविन्द दामोदर माधवेति।। -
गोविन्ददामोदरस्तात्राम् ), जैसे उनके पास कोई चरवाहा न
हो। निर्धन माता पिता के बच्चों को छोटी अवस्था में ही
काम पर लग जाना पड़ता है। वे स्वयं भी दूध दूहती हैं। दही
बिलोती हैं। मक्खन निकालती हैं। खाना पकाती हैं। घर के काम
करती हैं। उनके पास कोई दासी, सेविका या नौकरानी दिखाई
नहीं पड़ती।
कृष्ण के घर में गउवें अधिक हैं, तो दूध और मक्खन भी अधिक
ही होगा। अपने परिवार में कृष्ण अकेले बालक हैं। लाडले
हैं। नंद और यशोदा की और कोई संतान नहीं है। यदा कदा
शिकायत करने के लिए, यशोदा से कृष्ण बलराम की चर्चा करते
हैं, किंतु यशोदा के निकट बलराम कभी दिखाई नहीं पड़ते। वे
अपनी माता रोहिणी के पास ही होंगे। ऐसे में कृष्ण को खाने
पीने का कोई संकट नहीं होगा। मक्खन इतना मिलता होगा कि वे
खाते भी होंगे, बाँटते भी होंगे और फेंकते भी होंगे।
मेरे मन में प्रश्न है कि तब यह
मक्खन की चोरी किस लिए? अपने ही घर में नहीं, ग्राम के प्रत्येक घर में। यह अभाव
के कारण तो नहीं है। लीला हो सकती है, बाल लीला हो सकती है, कोई और कारण हो सकता
है। पर प्रश्न यह भी है कि क्या वे अपने घर और दूसरों के घर में से चुरा कर ही खाते
हैं या उन्हें प्रत्येक घर में जा कर मक्खन खाने का अधिकार भी है?
बाल लीला के सारे वर्णन इस ओर संकेत करते हैं कि
वृन्दावन में गोपों का जीवन एक प्रकार का सामूहिक जीवन था। कहीं कोई नौकर चाकर तो
दीखते नहीं, सहयोग और सहकार ही दिखाई पड़ता है। नंद के घर में कृष्ण को खेलाने के
लिए, उनकी सेवा करने के लिए, जिस प्रकार ग्राम भर की गोपियाँ जमघट लगाए बैठी रहती
हैं, वह कृष्ण के प्रति उनका वात्सल्य है। गोपी से तात्पर्य केवल युवती बाला ही
नहीं है, जो किसी युवा से प्रेम करती है। कृष्णकथा में यशोदा को माता के रूप में भी
गोपी ही कहा गया है। शिशु कृष्ण को खेलाने और उनके साथ खेलने जो गोपियाँ एकत्रित
होती हैं, वे सब वात्सल्य से ओतप्रोत हैं। मुझे तो लगता है कि कृष्ण यशोदा के ही
नहीं प्रत्येक युवती गोपी के पुत्र हैं। सारे वृन्दावन के पुत्र हैं। वे ब्रज के
आनन्दोत्सव हैं। उनका व्यक्तित्व इतना अलौकिक और मधुर है कि प्रत्येक माता की गोद
और प्रत्येक घर का आँगन उनका स्वागत करता है। प्रत्येक गोपी चाहती है कि कृष्ण उसके
घर का मक्खन खाएँ। बड़े छोटे का कोई अंतर नहीं है। वृन्दावन का प्रत्येक प्राणी
उनसे प्रेम करता है। किंतु
जो गोपी माँ के रूप में कृष्ण को अपने घर का मक्खन खिलाना चाहती है, वह ग्राम के
सारे गोप बालकों को मक्खन खिलाना नहीं चाहती। कृष्ण के प्रेम के कारण वह अत्यंत
उदार है, किंतु अपनी आर्थिक आवश्यकताओं और सीमाओं के कारण वह सारे गोप बालकों के
प्रति उतनी उदार नहीं हो सकती। ... किंतु कृष्ण हैं कि सब स्थानों पर अपने मित्रों
के साथ पहुँचते हैं और अपने ही समान सारे बालकों को मक्खन खिलाते हैं। उस लीला में
वे समझते ही नहीं हैं कि यदि उन्हें सब लोग प्रसन्नतापूर्वक मक्खन खिलाते हैं, तो
उनके मित्रों के मक्खन खाने में किसी को आपत्ति क्यों है?
वृन्दावन के गोपाल इतने धनी नहीं हैं कि इतनी सी बात
से उन्हें कोई अंतर न पड़ता हो। गोपियों को नगर में जा कर दूध, दही, मक्खन बेच कर
अपनी आजीविका भी अर्जित करनी है। कंस का शासकीय कर भी चुकाना है। अत: वे दूध दही
बहाने में उदार नहीं हो सकते। ... दूसरी ओर कंस की रानियाँ दुग्ध सरोवर में स्नान
करती हैं। वृन्दावन के गोपाल अपने बच्चों के मुख से दूध बचा कर कंस की रानियों के
स्नान के लिए भेजने को बाध्य हैं। ... कृष्ण इस अत्याचार को कैसे स्वीकार कर लें।
शासन के अत्याचार के प्रति उनका प्रतिरोध मटकियाँ फोड़ कर दूध बहा देने में है। दूध
गोपालों का है। उनके बच्चे दूध को तरसें और कंस की रानियाँ दुग्ध सरोवर में स्नान
करें, यह असहनीय है। इसीलिए कृष्ण को मक्खन चुराने, मटकियाँ फोड़ने और दूध बहाने की
लीला भी करनी पड़ती है। इस लीला का आध्यात्मिक रूप भी है, यह सहज मानवीय बाललीला भी
है, और इसके सामाजिक तथा राजनीतिक पक्ष भी हैं। यह समझना कठिन है कि उन्हें पृथक्
पृथक् कैसे किया जाए, अथवा उसमें से किसी एक को अधिक महत्त्वपूर्ण मान कर शेष का
त्याग कैसे किया जाए।
३० अगस्त २०१० |