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५. ७. २०१०

सप्ताह का विचार- जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते। -व्यास

अनुभूति में-
बुलाकीदास बावरा, देवेन्द्र शर्मा इंद्र, गीता शर्मा, राजेन्द्र जयपुरिया और पुष्पेन्द्र शरण पुष्प की रचनाएँ।

सामयिकी में- खबरों की बदलती दुनिया की खबर लेता हुआ संजय द्विवेदी का आलेख- समाचार चैनलों का मिक्स मसाला

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- नर्म हाथों के लिये एक एक-एक चम्मच ग्लिसरीन, गुलाबजल और नींबू का रस मिलाकर सूखने तक हाथों से मलें और धो दें।

पुनर्पाठ में- १ जुलाई २००१ को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित टीम अभिव्यक्ति का आलेख- जुलाई माह के पर्व।

क्या आप जानते हैं? प्रवासी भारतीय १०० अरब यू. एस. डालर प्रतिवर्ष कमाते हैं जिसमें से ३० अरब बचाकर वे भारत भेज देते हैं।

शुक्रवार चौपाल- में दो जुलाई  का दिन पिछले प्रदर्शन की समीक्षा और आनेवाले कार्यक्रमों की योजनाएँ बनाने का रहा। केवल बातें ही नहीं... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-९ में प्राप्त नवगीतों के प्रकाशन और समीक्षा का क्रम इस सप्ताह प्रारंभ हो जाएगा।


हास परिहास
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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
हृषिकेश सुलभ की कहानी वसंत के हत्यारे

लगभग तीस घंटे पहले वारदात हुई थी। कल की बात है। कल हुई थी हत्या। सुबह छह बजे। कल भी, आज सुबह जैसी ही ठंड थी। हाड़-हाड़ कँपा देने वाली ठंड। दिसम्बर महीने की शुरुआत में ऐसी ठंड पहले नहीं पड़ती थी। कल सुबह, जब मैं बन-सँवरकर घर से निकला, घना कोहरा था। ओस से गीली हो रही थी धरती। शहर की गंदगी समेटकर बहते नाले के बाँध पर पसरी दूब की नोक से शीत की बूँदें टपक रही थीं। इसी नाले के किनारे, बाँध के उस पार हमारी बस्ती थी। कुछ झुग्गियाँ... कुछ टिन के टप्परों वाले घर, ...और कुछ छोटे-छोटे कमरोंवाले छतदार पक्के मकान थे। अपने घर से निकलकर इसी बाँध की पगडन्डी पर चलते हुए मैं आता। दूसरी ओर के बाँध पर सड़क थी, जिसे एक पतली पुलिया जोड़ती थी। मैं सड़क किनारे इसी पुलिया पर खड़ा होकर सिगरेट सुलगाता और स्कूल बस आ जाती।...  पूरी कहानी पढ़ें
*

मनोहर पुरी का व्यंग्य
भ्रष्टाचार बिना बिचौलिया
 
*

स्वाद और स्वास्थ्य के अंतर्गत
सेहत का नगीना पुदीना
*

श्यामाचरण दुबे  के साथ साहित्य चर्चा
साहित्य का सामाजिक प्रभाव
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह

राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य
राजनीति में पालतू
 
*

राकेश कुमार सिन्हा रवि से सुनें
गाथा वटवृक्ष की
*

आज सिरहाने- मिथिलेश्वर का
चर्चित उपन्यास- सुरंग में सुबह
*

भारतेंदु मिश्र के साथ रचना प्रसंग
दोहे की वापसी

*

समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी निर्विकल्प

''सुनिए, आप निशा आन्टी हैं न?
अपना नाम सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा। डाक्टर वर्मा के क्लीनिक को उसने कुछ दिन पहले ही जूनियर डाक्टर के रूप में ज्वाइन किया था। डाक्टर मिसेज वर्मा मेरी फेमिली डाक्टर थीं। मैं उनके क्लीनिक में रूटीन चेकअप के लिये आई थी।
''हाँ डाक्टर मेरा नाम निशा ही है, लेकिन''
''आप मेरी मम्मी को जानती हैं न? सविता माथुर। वो तो आपकी दोस्त हैं न?''  एक ही साँस में वह यह सब कह गई। मैं समझ नहीं पाई कि उसने मुझसे कोई सवाल पूछा या जवाब दिया।
''अच्छा आप सविता की बेटी हैं? मुझे जानकर बेहद खुशी हुई।'' 
इसके पहले कि मैं सविता के बारे में कुछ पूछ पाती उसने खुद ही...  पूरी कहानी पढ़ें

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