|
लगभग तीस
घंटे पहले वारदात हुई थी।
कल की बात है। कल हुई थी हत्या। सुबह छह बजे। कल भी, आज सुबह
जैसी ही ठंड थी। हाड़-हाड़ कँपा देने वाली ठंड। दिसम्बर महीने की
शुरुआत में ऐसी ठंड पहले नहीं पड़ती थी। कल सुबह, जब मैं
बन-सँवरकर घर से निकला, घना कोहरा था। ओस से गीली हो रही थी
धरती। शहर की गंदगी समेटकर बहते नाले के बाँध पर पसरी दूब की
नोक से शीत की बूँदें टपक रही थीं।
इसी नाले के
किनारे, बाँध के उस पार हमारी बस्ती थी। कुछ झुग्गियाँ... कुछ
टिन के टप्परों वाले घर, ...और कुछ छोटे-छोटे कमरोंवाले छतदार
पक्के मकान थे। अपने घर से निकलकर इसी बाँध की पगडन्डी पर चलते
हुए मैं आता। दूसरी ओर के बाँध पर सड़क थी, जिसे एक पतली पुलिया
जोड़ती थी। मैं सड़क किनारे इसी पुलिया पर खड़ा होकर सिगरेट
सुलगाता और स्कूल बस आ जाती। कभी चौथाई, ...कभी आधी, ...तो कभी
पूरी सिगरेट और स्टेडियम वाली सड़क से इस सड़क की ओर मुड़ती हुई
बस दिखती। बस पास आए इसके पहले मैं सिगरेट बुझा देता। पुलिया
के ठीक सामने आकर बस रुकती और मैं सवार होता। बस में बच्चे
होते, ...मैथ पढ़ाने वाली एक खूसट बालकटी बुढ़िया मिस तनेजा, और
ऐंठी हुई मूँछों वाले पीटी सर पी.के.सिंह राठौर, ...और मैं। दो
स्टॉप आगे विद्या चढ़ती। |