सप्ताह का विचार-
अधिकतर लोग नए साल की प्रतीक्षा
केवल इसलिए करते हैं कि पुरानी आदतें नए सिरे से फिर शुरू की जा
सकें। - अज्ञात |
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अनुभूति
में-
ं
नववर्ष के उपलक्ष्य में नए पुराने अनेक रचनाकारों की नववर्ष रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
पुराने साल को विदा
करने और नए साल का का स्वागत करने का समय फिर आ गया। पिछले साल
बहुत से नए स्तंभ ...आगे पढ़ें |
सामयिकी में-
भारतीय कृषि के विकास की पड़ताल करते हुए वरिष्ठ पत्रकार मुकुल
व्यास का आलेख-
कृषि निवेश से ही खाद्य सुरक्षा संभव |
रसोई
सुझाव-
बेसन को प्लास्टिक के थैले में रबरबैंड से मुँह बंद कर के फ्रिज
में रखें तो बहुत दिनों तक ताज़ा रहेगा और उसमें कीड़े भी नहीं
पड़ेंगे। |
पुनर्पाठ में- १ सितंबर २००१
को समकालीन कहानियों के अंतर्गत प्रकाशित नॉर्वे से डॉ.
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
की कहानी
दुनिया छोटी है। |
क्या
आप जानते हैं?
कि जापान में १ जनवरी को नववर्ष का स्वागत मंदिर में १०८
घंटियाँ बजा कर किया जाता है। |
शुक्रवार चौपाल- २५ दिसंबर को चौपाल में लंदन में रहने वाले
हिंदी लेखक महेन्द्र दवेसर दीपक के आतिथ्य का अवसर मिला। ... आगे
पढ़ें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-६ में घोषित कुहासा या कोहरा विषय पर गीतों का
प्रकाशन २५ दिसंबर से प्रारंभ हो चुका है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह नव वर्ष विशेषांक में
समकालीन कहानियों में
भारत से
सरस्वती माथुर की कहानी
पूर्व संध्या
राधा देवी ने
रोज़ की तरह अपना कंप्यूटर ऑन किया, पासवर्ड देकर डायरी का
पन्ना खोला लेकिन जाने क्यों उनका कुछ भी लिखने का मन नहीं
हुआ। उनकी बहू विभा कंप्यूटर इंजिनियर थी। उसने उनकी वेबसाइट
बना दी थी और जब भी वह अमेरिका से आती थी उन्हें काफी कुछ सिखा
जाती थी। कंप्यूटर
विंडो पर 'गूगल टॉक’ की खिड़की खोल कर राधा देवी ने सरसरी
निगाहें डाली तो पता लगा कोई भी आनलाईन नहीं है न उनके बच्चे न
पति।
वे उठीं और मेज़ पर बिखरे काग़ज़ों में कुछ ढूँढ़ने लगीं।
नए साल के अवसर पर बच्चों का अमेरिका से ग्रीटिंग कार्ड आया
था। उन्होनें एक सरसरी निगाह उस कार्ड पर डाली। फिर अमृतयान
निकेतन काटेज की अपनी बालकनी में कुर्सी पर बैठ कर वे वहाँ से
दूर दिखाई देती झील को देखने लगी।
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कहानी
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डॉ रामनारायण
सिंह मधुर
का व्यंग्य
खर्च हुए वर्ष के नाम
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अरविंद कुमार सिंह का आलेख
भारतीय रेल पत्रिका का स्वर्णजयंती वर्ष
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आशीष और दीपिका
के साथ मनाएँ
देश-देश में नव वर्ष
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समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ |
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पिछले सप्ताह
अविनाश वाचस्पति
का व्यंग्य
काले का बोलबाला
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स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे
मुंडे दी माँ का आठवाँ भाग
*
तारादत्त
निर्विरोध के साथ देखें
आबू की प्राकृतिक
सुषमा
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और घर-परिवार में-
माटी कहे पुकार के
*
समकालीन कहानियों में
भारत से
दुर्गेश गुप्त 'राज' की कहानी
आइटम नंबर दस
'आइटम नंबर
टेन` आवाज़ आती है। 'हाँ, मैं तैयार हूँ.' मैं जबाव देता हूँ
और कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए अपने आपको तैयार करने लगता
हूँ। सायकल उठाता हूँ और उस पर सवार हो अपने चेहरे पर रोज़ाना
वाली कृत्रिम मुस्कुराहट लाने की कोशिश करता हूँ। बालों में
कंघी मारता हूँ। फिर होठों की मुस्कुराहट को स्थिर करने की
कोशिश करने लगता हूँ। तभी देखता हूँ जिमनास्टिक वाला ग्रुप
लौटकर आ रहा है और मेरा ही नंबर है। तभी मेरे पाँव हमेशा की
तरह यंत्रवत अपना कार्य शुरू कर देते हैं और मैं एक बार फिर
अपने करतब दिखाने के लिए कूद पड़ता हूँ ज़िन्दा लाशों के बीच।
हाँ हज़ारों ज़िन्दा लाशों के बीच में। जो केवल सर्कस देखने के
लिए आते हैं। सर्कस यानि कि जाँबाज़ कलाकारों के ख़तरनाक खेल,
हैरत-अंगेज़ कारनामे। मैं संगीत की धुन पर किसी लहराते, बलखाते
नाग की तरह...
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