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हास्य व्यंग्य

काले का बोलबाला
अविनाश वाचस्पति


आज दुनिया भर में काले बनने बनाने का फितूर छाया हुआ है। अभी कुछ अर्सा पहले तक जो कंपनियाँ गोरेपन को तरह-तरह की क्रीमों के जरिए भुना रही थीं, उन सभी को सावधान हो जाना चाहिए। नई क्रीमें बाज़ार में निकल पड़ी हैं जो कहती हैं- कालिमा क्वीन, ब्लैक एंड लवली क्रीमों को अपने चेहरों पर पोतें और इतने चमकदार हो जाएँ कि गोरापन भी शर्मा जाए।

साल भर पहले अमेरिका में ओबामा के राष्‍ट्रपति बनने से रंगों के क्षेत्र में जो काली क्रांति हुई है उसने दुनिया को पलटकर रख दिया है। चहुँ ओर काले का बोलबाला हो गया है। ओबामा ने इस बरस शांति का नोबेल पुरस्‍कार प्राप्त कर के इस बात को और भी पक्का कर दिया है कि काले का महत्त्व गोरे से कितना अधिक है। काले रंग की इस बहार से हर रंग उड़ता हुआ नज़र आ रहा है। हरी भरी सब्ज़ियों का ज़माना बीतने को है। जल्‍दी ही काली काली ज़ायकेदार पौष्टिक सब्ज़ियाँ आपको सब्‍ज़ी मंडी में चारों तरफ़ धूम मचाती मिलेंगी। काला पौष्टिकता और गुणवत्‍ता का पर्याय हो जाएगा। दालों में यह बदलाव पहले ही दिखाई पड़ने लगा है। किसी भी ढाबे में जाकर पूछ लें- काली दाल की लोकप्रियता पीली दाल से ज्यादा ही मिलेगी।

भारतीय वैज्ञानिक भी समय की नब्‍ज़ पहचान रहे हैं और समय की गति से तेज़ दौड़ने की कूबत रखते हैं। इसी का सुफल इलाहाबाद के कृषि विश्‍वविद्यालय के शोधकर्ताओं की मेहनत के रूप में सामने है। उनके सहयोग से सफेद आलू से गुणवत्‍ता में कई गुना बेहतर काले आलू की खेती में सफलता प्राप्‍त कर ली गई है। एंटीआक्‍सीडेंट से भरपूर होने से इसमें बढ़ती आयु का असर और कैंसर का जोखिम कम करने की क्षमता भी है। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि हरी सब्ज़ियों में वह पौष्टिकता नहीं है जो काली काली सब्ज़ियों के रेशे-रेशे में घुली मिली है। इसकी वैज्ञा‍निक पुष्टि पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में की जा चुकी है। रंगों के बदलते समीकरण को देखकर लगता है कि जल्‍दी ही हम खेतों में, सब्‍ज़ी मंडियों में और फेरी वालों के ठेलों में सभी सब्ज़ियों और फलों को स्‍वास्‍थ्‍य हितकारी काले से ओत-प्रोत देखेंगे। काले टमाटर, काली घिया, काला टिंडा, काला काशीफल, काली भिंडी, काली शलजम, काली शिमला मिर्च इत्‍यादि सब कालापन बिखेरेंगी और उन्‍हें खाने वाले उनके कालेपन पर फिदा झूमते दिखाई दिया करेंगे।

काला सदा से बुराई और हीनता का बोध कराता रहा है, पर अब वह अपनी हीनग्रंथि से बाहर आ चुका है। उसका समय और सितारे बदल गए हैं और सभी पुराने मुहावरे अपने पुराने अर्थों से बाहर आकर नए अर्थ देने लगे हैं। मुँह काला करवाना या मुँह काला होना अब सम्‍मान का सूचक बन गया है। यह सब देख सदा से काला रहा जामुन अपनी बिरादरी की बढ़ोतरी पर इतराने लगा है। मुँह काला करने और करवाने में सबको असीम आनंद की प्राप्ति होने लगी है। अब अगर माँ बेटी से जानना चाह रही है कि कलमुँही कहाँ पर मुँह काला करवाया है तो इसे बुरे अर्थों में कदापि मत लीजिएगा। अब तो हर कन्‍या के मन में एक अरमान पल रहा है कि कब मेरा मुँह काला होगा और उसके पूरा होने पर सभी आनंदित हुआ करेंगे।

अब सच जो सदा से धवल रहा है, अपने को काला कहलवाने में गर्व महसूस करेगा। कालेपन का अहसास अद्भुत सौंदर्य की सृष्टि और वृष्टि करेगा। सच वही जो काला हो, दुल्‍हन वही जिससे कालापन भी शर्माये, सब्‍ज़ी वही पौष्टिक जो काली हो, दाल में काले का बोलबाला, जिस घर की किस्मत काली उस के घर मनेगी दिवाली, जैसे नवीन मुहावरे सुनने को मिलेंगे।

नए फ़िल्‍मी गीतों में कालापन अपनी खूबसूरती के नए नए छंद, अलंकार रचेगा। काला अब काल नहीं, कलकल के मधुर नाद का अहसास दिलाएगा। आप देखेंगे कि काले की किलकारी पर सारी सृष्टि मोहित हो रही है। काले की दीवानी दुनिया सारी। काली दीपावली भी अब शुभ का प्रती‍क बनती जा रही है। काले में हैं गुण अनेक। काला सहज स्‍वीकार्य बन रहा है। सफ़ेद के बुरे दिन आ गए हैं। कालेपन की इस क्रांति क्या कहना!

काली कोयल की कूक से तो आमवृक्ष भी बौराता है फिर आमजन कैसे बचा रह सकता है, उसी कूक का सम्‍मोहन अपनी मोहिनी में सभी को बाँध रहा है। इस कूक का असर ख़ासजन पर भी समान रूप से छा रहा है। काली कोयल को भी काले कौए का घोंसला ही सुहाता है जिसके भरोसे कोयल अपनी संतान को छोड़ देती है। यह काले पर काले के विश्‍वास की सनातन मिसाल है। काला कुत्‍ता, काला बिच्‍छू, काला साँप, काला लंगूर, काला बंदर। यह सभी जल्दी ही पहले से अधिक लोकप्रिय हो जाने वाले हैं।

काले तिल की उपयोगिता से सभी परिचित हैं ही। काले चने से ही पौष्टिकता सभी जानते है। नयन भी काले ही गज़ब ढाते हैं तिरछी चितवन भी काली ही कहलाती है। सब्ज़ियों में लाई जा रही यह काली क्रांति अंधेरे का वर्चस्‍व स्‍थापित कर रही है। देवताओं की काले पत्‍थर की मूर्तियाँ सदा से सौंदर्य उपजाकर, भक्‍तों के मन में आस्‍था जगाती रही हैं। अभी तो आलू काले हुए हैं। नेताओं के काले दिल तो पहले से ही कवियों को लिखने का भरपूर मसाला उपलब्‍ध कराते रहे हैं। आप देखेंगे कि मकान, दुकान, बहुमंज़िली इमारतें, हवाई जहाज़, बसें, गाड़ियाँ सब काली नज़र आएँगी। मेट्रो काली मिलेगी। इसे काली सड़कों का बढ़ता प्रभाव कहा जा सकता है। दिल जो नेताओं का काला होता है, अब वही लुभाएगा। वोटर उसकी काली सदाशयता पर अपना वोट लुटाएगा। कालेपन का दीवाना हुआ है जग सारा।

काले की गरिमा बढ़ रही है। कालापन सौंदर्य के नया प्रतीक बन उभर चुका है। काली सुंदरियाँ हर प्रतियोगिता में बाज़ी मार रही हैं। करतूतें जो सदा से काली रही हैं अब लुभाया करेंगी। शरीर में बह रहा खून बगावत पर उतर आएगा और कालेपन के इस दौर में अगर खून भी कहे कि लाल नहीं रहूँगा मैं, तो आप चौंकिएगा मत। रंगों की दुनिया में काले रंग ने हलचल मचा दी है। काला सौंदर्य बोध के विशिष्‍ट प्रतिमान बना रहा है। सब कुछ कालिमामय हो गया हैं। काला रंग शक्ति की भीत और काला मन भक्ति की प्रीत के रूप में काले जादू की तरह सबके सिर चढ़कर बोलता रहा है। सो आप भी सावधान हो जाएँ काले-हंगामे का आगाज़ हो चुका है

१४ दिसंबर २००९

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