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घर परिवार– गपशप

माटी कहे पुकार के
- गृहलक्ष्मी

 

चाहे वह सूरज कुंड का मेला हो या शिल्पग्राम की प्रदर्शनी या फिर पड़ोस के गाँव की हाट- मिट्टी की लयात्मक कारीगरी आपको अपनी ओर खींच ही लेती है। मानो पुकार-पुकार कर कहती है। मैं माटी हूँ शुद्ध माटी तुम्हारी तरह जीवंत। निस्पंद नहीं हूँ प्लास्टिक की तरह। माटी का प्रेम ही कुछ ऐसा है तालब रामपुरी के शब्दों में -

अबके लाना तो मेरे शहर की मिट्टी लाना
इससे बेहतर कोई तोहफ़ा कोई सौगात नहीं।

फिर अगर इस माटी के साथ भारत के कुशल कारीगरों के शिल्प का कमाल हो तो बात ही क्या है!

मिट्टी के पात्रों को जीवन के अनेक रूपों में ढाला जा सकता है। दो पात्रों के ऊपर शीशा रख कर मेज़ बनाई जा सकती है, दीवार पर टाँगा जा सकता है, फूलदान या कलमदान का रूप दिया जा सकता है, हिरण्यगर्भ स्वरूप को ध्यान में रखते हुए प्रकाशस्तंभ बनाया जा सकता है या फिर किसी बेजान और उदास कोने में जान डाल कर उसे कलात्मक रूप दिया जा सकता है।

आपकी कल्पना की उड़ान के लिए एक चित्र संलग्न है। तो इस बार जब माटी आपको पुकारे -ठिठक कर खड़े न रहें - हाथ बढ़ाएँ - अपनाएँ और साथ निभाएँ। यकीन मानिये आप घाटे में नहीं रहेंगे।

 
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