इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए. से
उमेश अग्निहोत्री की कहानी
हार पर हार
''व
व्हट? व्हाट? और मुँह भी खुला का खुला रह गया। एक हाथ कान पर चला गया
जैसे जो सुना हो, उस पर यकीन न आया हो। लेकिन जिस तरह ''व व व्हट?
व्हाट?'' शब्द उनके मुँह से निकला, और गर्दन भी कुछ आगे की तरफ़ हो
आई थी, उससे ऐसा लगा कि गले के कुछ तंतु पहली बार हरकत में आए हैं।
वह नमिता को देखते रहे, जिसने सूती वी-नेक शर्ट और जीन्स पहन रखी
थीं, गले से छोटा-सा लॉकेट लटक रहा था। नमिता ने अपनी बात दोहरायी।
भाटिया जी की नज़रें पहले कमरे की छत, फिर ज़मीन और फिर नमिता की
आँखों से टकराते हुए कमरे के एक किनारे में सजे श्री रामपरिवार के
चांदी की मंदिर पर जा टिकीं, जो वह भारत से ख़ासतौर पर लेकर आए थे।
इस बार मुँह से निकला, 'हाओ? हाओ?' और फिर बोले, ''आइ नो.. आइ नो…।''
मतलब था कि अपने कज़न का असर हुआ है। नमिता का ममेरा भाई देव ईसाई बन
चुका था।
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गिरीश बिल्लौरे मुकुल का व्यंग्य
फुर्सत के रास्ते
*
पर्यटन दीपक नौगांई के
साथ
मंदाकिनी
के किनारे
*
संस्कृति में सुरेश ऋतुपर्ण का आलेख
ट्रिनीडाड
कार्निवालः मर्यादाओं से मुक्ति का उत्सव
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
लाभदायक लीची
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कथा महोत्सव-२००८
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पिछले सप्ताह
शरद तैलंग का व्यंग्य
जीवन दो दिन का
*
प्रकृति में रश्मि
तिवारी का आलेख
केसर - एक
अनमोल वनस्पति
* उषा
खुराना से पर्व परिचय के अंतर्गत
मॉरीशस में शिवरात्रि
*
साहित्य समाचार में
अमृतसर, मुंबई, कानपुर, दिल्ली, हैदराबाद और गोवा से
नए साहित्य
समाचार
* समकालीन कहानियों में
भारत से
भारत से मनोज सिंह की
कहानी बिना
टिकट
''रघु...''
बचपन का नाम सुनते ही मेरा तुरंत पीछे मुड़कर देखना स्वाभाविक था। अब
तो राघव भी कोई नहीं बोलता, मि. राघवेंद्र या मि. सिंह ही बोला जाता
है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन पर भीड़ अभी कम थी और मेरी दृष्टि
अपना नाम पुकारने वाले को आसानी से ढूँढ़ सकती थी।
''कौन? सुनील! ज़्यादा फ़र्क उसमें भी नहीं आया था। नौवीं कक्षा तक
आते-आते चेहरा व शरीर अपना पूरा आकार तकरीबन ले ही लेते हैं। और तभी
हम बिछड़े थे। हाँ, आज उसकी जींस की पैंट घुटने के नीचे से कुछ
ज़्यादा फटी हुई थी। नहीं, शायद फाड़ दी गई थी। पता नहीं। ऊपर
मामूली-सी टी-शर्ट और कंधे के पीछे लटका बड़ा-सा मगर पुराना बैग। इसे
झोला भी कहा जा सकता था। रंग उसका गोरा न होता तो हिंदुस्तान में उसे
भीख माँगने वाला घोषित कर दिया जाता। मेरी कौतूहल व खोजती निगाहें
सरकते हुए और नीचे पहुँची तो देखा कि उसकी चप्पलें अपने जीवन की
अंतिम साँसे गिन रही थीं।
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अनुभूति
में-
वीरेन्द्र जैन, देवी नागरानी, कीर्ति नारायण मिश्र, आचार्य संजीव सलिल,
डॉ. महेन्द्र भटनागर
की नई रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ-खानपान हो, आनबान हो, जान पहचान हो और पान न हो तो
ओंठों
पर मुस्कान नहीं, पर यह पान बरसों से इमारात में...
आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
आटा गूँधते समय पानी के साथ थोड़ा दूध मिला दें तो रोटी या पराठे
अधिक नर्म और स्वादिष्ट बनते हैं। |
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नौ साल पहले-
१५ दिसंबर २००० के अंक से रचना प्रसंग के अंतर्गत सुधा अरोड़ा का
आलेख- हिन्दी कहानी आज |
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क्या आप जानते हैं?
कि उच्च घनत्व के कारण मृत सागर में तैराकों का डूबना असंभव है
इसी कारण इसमें कोई मछली जीवित नहीं रह सकती। |
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शुक्रवार चौपाल-२६
की शाम सफल रही। पांच सौ की क्षमता वाला थियेटर पूरा भरा, मौसम
सुहावना बना रहा और मध्यांतर की चाय स्वादिष्ट... आगे
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सप्ताह का विचार- तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी
हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न
माँग ले।-चाणक्य |
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हास
परिहास |
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सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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