हास्य व्यंग्य | |
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फ़ुर्सत के रास्ते |
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आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं
वे परम पिता परमेश्वर का सान्निध्य सहज ही पाए हुए होते हैं। ईश्वर से साक्षात्कार के
लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है, वक़्त आज किसके पास है वक़्त? पूरा
समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग, शरीर और दिल जाने किस गुन्ताड़े
में बिजी होता है। परमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...? लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिस्थ होने का। इसके लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए... एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम... न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे... "कुछ दिनों की बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के संदर्भों सहित जानकारी दे रहे थे, "सो हुआ यों कि शौनकादि मुनियों ने कहा, "हे ऋषिवर, इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है...?'' ऋषिवर - "फ़ुर्सत" मुनिगण- "कैसे?" ऋषिवर - ''फ़ुर्सत या फ़ुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलज़ार की व्यथा से आप परिचित ही हैं, आपने उनके इस गीत का कइयों बार पाठ किया है।'' मुनिगण - ''हाँ, ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े, "अर्थात पप्पू डांस इस वजह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फ़ुर्सत नहीं मिली और लोगों ने उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है...?" ऋषिवर - "बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मस्तिष्क में सत्य है फ़ुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फ़ुर्सत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख-चीख के कहेंगे कि-"पप्पू...!! पास हो गया..." मुनिगण - ''ये अफसर प्रजाति के लोग फ़ुर्सत में मिलते है... अक्सर...?'' ऋषिवर - "हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फ़ुर्सत का वर विधाता ने दिया है।'' मुनिगण - "लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है?'' ऋषिवर - "इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फ़ुर्सत में होते है..." मुनिगण - ''कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर।'' ऋषिवर - "भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता नें विशेष गुण दिया है वरदान स्वरूप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खड़ा द्वारपाल इनको जो काग़ज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूँघ कर अनुमान लगाते हैं कि इस आगंतुक के लिए फ़ुर्सत के समय में से समय देना है या नहीं?" मुनिगण - ''वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएँ कि क्या कोई फ़ुर्सत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से?'' इसके लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए... "कुछ दिनों की बात है नए युग के सूत जीवन में अपने सद् शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे। नेट पर विकीपीडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे, "सो हुआ यों कि शौनकादी मुनियों ने कहा, "हे ऋषिवर, इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है...?'' ऋषिवर - "फ़ुर्सत।" मुनिगण- "कैसे?" ऋषिवर - ''फ़ुर्सत या फुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलज़ार की व्यथा से आप परिचित ही हैं आपने उनके इस गीत का कइयों बार पाठ किया है।'' मुनिगण - ''हाँ, ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े, "अर्थात पप्पू डांस इस वजह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फ़ुर्सत नहीं मिली और लोगों में उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है?" ऋषिवर - "बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मस्तिष्क में सत्य है फ़ुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फ़ुर्सत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख चीख के कहेंगे कि-"पप्पू...!! पास हो गया..." मुनिगण - ''ये अफसर प्रजाति के लोग फ़ुर्सत में मिलते है... अक्सर...?'' ऋषिवर - "हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फ़ुर्सत का वर विधाता ने दिया है।'' मुनिगण - "लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है?'' ऋषिवर - "इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फ़ुर्सत में होते है।" मुनिगण - ''कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर।'' ऋषिवर - "भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता ने विशेष गुण दिया है वरदान स्वरूप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खड़ा द्वारपाल इनको जो काग़ज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूँघ कर अनुमान लगाते हैं कि इस आगंतुक के लिए फ़ुर्सत के समय में से समय देना है या नहीं?" मुनिगण - ''वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएँ कि क्या कोई फ़ुर्सत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से...?'' ऋषिवर - "हाँ, सरकारी दफ़्तरों में यह (फ़ुर्सत) सहजता से सभी को मिलती है इसके लिए बहाना नामक क्रिया को सदा अपने साथ रखिए।" मुनिगण - ''वाह, गुरुदेव सही ज्ञान दिया गुरुदेव।'' कुछ ही क्षणों उपरांत सारे मुनि कोई न कोई बहाना बना के सटक लिए फ़ुर्सत पा गए और बन गए, "पुरुषोत्तम-जीव।"
गुरुदेव सूत जी के अनुसार : २ मार्च २००९ |