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''व व्हट? व्हाट? और मुँह भी
खुला का खुला रह गया। एक हाथ कान पर चला गया जैसे जो सुना हो,
उस पर यकीन न आया हो। लेकिन जिस तरह ''व व व्हट? व्हाट?'' शब्द
उनके मुँह से निकला, और गर्दन भी कुछ आगे की तरफ़ हो आई थी,
उससे ऐसा लगा कि गले के कुछ तंतु पहली बार हरकत में आए हैं। वह
नमिता को देखते रहे, जिसने सूती वी-नेक शर्ट और जीन्स पहन रखी
थीं, गले से छोटा-सा लॉकेट लटक रहा था।
नमिता ने अपनी बात दोहरायी।
भाटिया जी की नज़रें पहले कमरे की छत, फिर ज़मीन और फिर नमिता
की आँखों से टकराते हुए कमरे के एक किनारे में सजे श्री
रामपरिवार के चांदी की मंदिर पर जा टिकीं, जो वह भारत से
ख़ासतौर पर लेकर आए थे। इस बार मुँह से निकला, 'हाओ? हाओ?' और
फिर बोले, ''आइ नो.. आइ नो…।'' मतलब था कि अपने कज़न का असर
हुआ है। नमिता का ममेरा भाई देव ईसाई बन चुका था।
सहसा पुकारा, '' सुना ! नमिता क्या कह रही है?''
जवाब नमिता ने दिया। ''मैं मम्मी को बता चुकी हूँ।'' कहते हुए
वह अपने बेड-रूम की तरफ़ मुड़ी। भाटिया जी का ध्यान विशेष रूप
से उसके लॉकेट पर चला गया। सोचने लगे कि 'स्वस्तिक' कब 'क्रॉस'
में बदल गया, उन्हें पता ही नहीं चला। |