इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से संजीव दत्त
शर्मा की
कहानी नानी
नानी
ने भरपूर ज़िंदगी पाई। नब्बे बरस की उम्र कोई कम तो नहीं होती और एक
लंबी ज़िंदगी में जो कुछ अच्छा-बुरा कोई देख सकता है वो नानी ने भी
देखा। नानी पैदा हुई थी लाहौर के नज़दीक एक गाँव में, खानदानी
पटवारियों के परिवार में। परिवार पटवारियों का था इसलिए घर में पैसा
भी था, ज़मीन भी थी और घोड़े भी थे। नानी को घोड़े की सवारी बखूबी
आती थी। जब नानी की शादी हुई तब नाना खूबसूरत जवान थे। सवा छह फुट से
ऊपर निकलता कद। गोरा रंग और ग्रीक देवताओं जैसे नाक-नक्श। उस ज़माने
के ग्रेजुएट थे नाना। अरबी, उर्दू, अंग्रेज़ी और गणित के मास्टर।
गृहस्थी जमती चली गई। शुरू में लड़कियाँ होती रहीं तो मान-मनौतियों
का सिलसिला शुरू हुआ फिर एक बेटा हुआ। डिप्थीरिया से चल बसा।
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डॉ. अरुणा शास्त्री का व्यंग्य
रहिए ऐसी जगह जहाँ कोई न हो
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विनोद दास का साहित्यिक निबंध
बांग्ला कहानी का वैभव
* आज
सिरहाने मृदुला गर्ग का उपन्यास
कठगुलाब
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फुलवारी में बच्चों के लिए
सितारों का संसार
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कथा महोत्सव - २००८
के परिणाम २३ फरवरी को घोषित किए जाएँगे |
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पिछले सप्ताह वसंत विशेषांक
में
ज्ञान चतुर्वेदी का व्यंग्य
रामबाबू जी का वसंत
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महेश परिमल का ललित निबंध
वसंत कहाँ हो तुम
* रमेश
चंद से पर्व परिचय
वसंत पंचमी- साधना का
संकल्प लेने का दिन
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
मनबहलाव वसंत के
* समकालीन कहानियों में
भारत से
भारत से सुभाष नीरव की
कहानी चोट
सफदरजंग
एअरपोर्ट के बस-स्टॉप से कुछ हटकर मोटरसाइकिल के समीप खड़े लड़के ने
लड़की को अपने निकट आते देख कहा, ''आज कितनी देर कर दी तुमने।''
''हाँ, थोड़ी देर हो गई। सॉरी। बस ही देर से मिली।''
''थोड़ी देर?... पूरे एक घंटे से खड़ा हूँ।'' लड़का गुस्से में था,
''घर से ही देर से निकली होगी। किदवई नगर से एअरपोर्ट के लिए हर एक
सेकेंड पर बस है।'' हेल्मिट पहन मोटर-साइकिल स्टार्ट कर लड़का बोला।
लड़की ने एक बार इधर-उधर देखा और फिर उचक कर लड़के के पीछे बैठ गई।
''कहाँ चलना है?'' मोटर-साइकिल के आगे सरकते ही लड़के ने पूछा।
''कहीं भी, पर यहाँ से निकलो।'' लड़की ने दायाँ हाथ लड़के के कंधे पर
रख आगे सरकते हुए कहा।
''प्रगति मैदान या पुराना किला चलें?''
''कहीं भी, जहाँ तुम चाहो।''
हवा से बचने के लिए लड़की ने हाथ
लड़के के विनचेस्टर की जेबों में ठूँस लिए।
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अनुभूति
में-
दुर्गेश गुप्त
''राज'' , राहुल उपाध्याय,
सुकेश साहनी,
आनंद,
और रघुवीर सहाय की नई रचनाएँ |
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