इस
सप्ताह दीपावली विशेषांक में-
समकालीन
कहानियों में भारत से
सूर्यबाला की कहानी
अनार खिलखिला उठा
जगमगाती दुनिया के पार अंधेरी-सी
झोंपड़ी के सामने सुनहरे, हरे और सफ़ेद बूटों वाला छोटा-सा
अनार छूट रहा था और उसमें घुली थीं दो मुक्त, मगन खिलखिलाहटें।
पर्व वेला पर रोशनी की कतारें अभी उतरी नहीं हैं। जब उतरेंगी
तो सागरतट की पंद्रहवीं मंज़िल पर मेरा फ्लैट कंदील-सा झिलमिला
उठेगा। रंग-रोगन,
झाड़-पोंछ, सिल्वो, ब्रासो से चमचमाती पीतल, चाँदी और कांसे की
नायाब नक्काशियाँ। धूप-दीप, नैवेद्य और फूल, गजरे। दीप पर्व पर
लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधि-विधान। इसीलिए शाम को फिर से नहाई और
बाथरूम से निकल कॉलोन, लैवंडर छिड़के लहराते गीले बालों के
लच्छे झटक दिए हैं। कमरे में खुशबू का सोता-सा फूट पड़ा है। तब
बालों को बड़े प्यार से समेट, धुले कुरकुरे तौलिए से
सहला-सहलाकर पोंछती हुई मैं उसकी ओर पलटती हूँ। वह उसी तरह समूचे माहौल की
मोहकता में सराबोर हकीबकी-सी खड़ी है। चारों ओर बिखरी हुई
रोशनी और चकाचौंध में चौंधियाई-सी, जैसे इस लोक में नहीं, किसी
अपार कौतुक-भरे, अतींद्रिय लोक में खड़ी हो।
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हास्य व्यंग्य में राजेन्द्र
त्यागी ले कर आए हैं
साक्षात्कार लक्ष्मीजी का
संस्कृति में डॉ. हरिराम आचार्य का आलेख
प्रथम पूज्य गणपति गणनायक
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पर्व परिचय में डॉ. विवेकानंद शर्मा से सुनें
दीपावली से संबंधित कथाएँ
विविध रचनाओं से
सुसज्जित
दीपावली विशेषांक समग्र
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पिछले सप्ताह
श्यामल किशोर झा का
व्यंग्य
आम, बाढ़ और आम आदमी
सुधा अरोड़ा की लघुकथा
वर्चस्व
श्रीराम परिहार का ललित
निबंध
खिड़की खुली हो अगर
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घर परिवार में डॉ सुशील
जोशी का आलेख
आलू, पृथ्वी, स्वच्छता, और मेंढक
वरिष्ठ कथाकारों
की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में यशपाल की कहानी
करवे का व्रत
कन्हैयालाल
अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था,
परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी
साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो
उसके अंतरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर
पर दूसरों से पूछे जाते हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो
अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं। हेमराज को कन्हैयालाल
समझदार मानता था। हेमराज ने समझाया-बहू को प्यार तो करना ही चाहिए,
पर प्यार से उसे बिगाड़ देना या सिर चढ़ा लेना भी ठीक नहीं। औरत सरकश
हो जाती है, तो आदमी को उम्रभर जोरू का गुलाम ही बना रहना पड़ता है।
उसकी ज़रूरतें पूरी करो, पर रखो अपने काबू में। मार-पीट बुरी बात है,
पर यह भी नहीं कि औरत को मर्द का डर ही न रहे। डर उसे ज़रूर रहना
चाहिए... मारे नहीं तो कम-से-कम गुर्रा तो ज़रूर दे। |
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अनुभूति में-
दीपावली की ज्योति से जगमग,
ज्योतिपर्व का उल्लास बिखेरती नई
दीपावली रचनाएँ |
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कलम गही नहिं हाथ
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दीपावली आने को है मौसम में तरावट है और भारतीय दूकानों में दीये,
तोरण, लक्ष्मी-गणेश, बर्तन और मेवे के सजावटी डिब्बों के शामियाने तन
गए हैं। कुछ डिब्बों में पूजा का सामान भी है। पिछले साल दीपावली पर
जो पूजा-किट ख़रीदा था उसमें हर चीज़ से मेरी पहचान नहीं थी। जहाँ तक
याद है उसमें मौली, हल्दी की गाँठ, इत्र की शीशी, रूई और बत्तियाँ,
मिट्टी के पाँच दीये धूप और अगरबत्तियाँ थीं। लौंग, इलायची और सुपारी
भी थे। चार रंग के पिसे हुए चूर्ण के छोटे पैकेट थे। इनमें से सफ़ेद
और पीले शायद चौक बनाने के लिए हल्दी, चावल का चूरा थे बाकी दो में
से एक सिंदूर था और एक रोली। अनाजों में चावल, जौ और गेहूँ थे।
लक्ष्मी-गणेश, शुभ-लाभ और चरणों की तीन सुंदर चिप्पियाँ भी थीं। गुड़
का एक टुकड़ा था पंच मेवा और खीलों के पैकेट भी थे। किसी पेड़ की छाल
का एक टुकड़ा था पर वह दालचीनी या रतनजोत नहीं मालूम होता था। मटर की
तरह के काले रंग के बीज से थे मालूम नहीं पूजा में उनका प्रयोग भारत
में कहाँ किया जाता है और उनका क्या महत्व है। यह सब अर्पित करते हुए
विचार आया कि जिन चीज़ों का पता तक नहीं था उन्हें भी पूजा के लिए
अनायास भेज कर ऊपरवाले ने 'तू अबोध अज्ञानी' का भान तो करा दिया अब इनके विषय में जानकारी
भी दे तब बात है। कुछ दिनों बाद अंतरजाल से पता
चला कि काले गोल बीज कमल के बीज हैं। इनका प्रयोग हवन में आहुति देने
और जप की माला बनाने जैसे पवित्र कामों में होता है। लक्ष्मी जी को
ये विशेष प्रिय हैं क्योंकि कमल का अंश हैं। यह सब जानकर खुशी हुई
लगा कि आधी पूजा तो स्वीकार हो गई। - पूर्णिमा वर्मन
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क्या आप जानते हैं?
मध्य प्रदेश के साँवेर गाँव में स्थित हनुमान जी का मंदिर उलटे
हनुमान के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें स्थापित मूर्ति का सिर नीचे और
पैर ऊपर हैं। |
सप्ताह का विचार- न्याय
और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है। -
प्रेमचंद |
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