आलू,
पृथ्वी, स्वच्छता, और मेंढक
—डॉ. सुशील जोशी
यों तो देखते ही देखते नया
साल पुराना हो गया है पर ख़त्म तो नहीं हुआ इसलिए इसके चले
जाने से पहले कुछ अंतर्राष्ट्रीय बातें कर ली जाएँ। देखने
वाली बात यह है कि दुनिया भर में यह साल किस-किसके नाम
समर्पित है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो तीन-चार प्रमुख
चीज़ों को इस साल 'वर्ष' मनाने के लिए चुना गया था। सबसे पहले तो संयुक्त
राष्ट्रसंघ के खाद्य व कृषि संगठन ने वर्ष २००८ को
अंतरराष्ट्रीय आलू वर्ष घोषित किया। दूसरा, इस वर्ष से तीन
वर्षीय अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी ग्रह वर्ष भी शुरू होगा।
तीसरा, इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मेंढक वर्ष भी घोषित किया
गया है। 'मेंढक वर्ष' घोषित करने
का काम दुनिया भर के चिड़ियाघरों के एक संगठन 'एंफीबियन
आर्क' ने किया है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने २००८ को विश्व
स्वच्छता वर्ष भी माना है। इसके अलावा राष्ट्रसंघ इसे
अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में भी मनाने की घोषणा की। फिर यूनान
चाहता है कि 'फ़ीटा चीज' को प्रचारित करने के लिए इस साल
फ़ीटा वर्ष मनाया जाए। इसके अलावा छोटे-मोटे 'वर्ष' कई सारे
मनाए जा रहे हैं।
आम लोगों की दृष्टि से
देखें तो सबसे रोचक तो अंतर्राष्ट्रीय आलू वर्ष नज़र आता
है। दुनिया की खाद्यान्न फ़सलों में मक्का, गेहूँ और चावल
के बाद चौथा नंबर आलू का ही है। आलू का सर्वप्रथम
साहित्यिक उल्लेख लगभग २००० वर्ष पूर्व महर्षि वात्स्यायन
विरचित कामसूत्र के चतुर्थ अधिकरण के प्रथम अध्याय के
२९वें सूत्र में मूली-पालकी के साथ हुआ है-- "
मूलक-आलू-पालंकी दमनकाम्रातकैर्वारुक …..... काले वापश्च॥
लेकिन पाश्चात्य विश्व में करीब १६वीं सदी तक
आलू बहुत प्रचलित नहीं था। सोलहवीं सदी में स्पैनिश लोग
इसे यूरोप लाए थे। फिर वहाँ से यह पूरी दुनिया में फैला और
इस कदर फैला कि आज यह एक प्रमुख
फसल है। आलू की एक विशेषता यह है
कि अन्य खाद्यान्न फ़सलों के विपरीत इसके पौधे का लगभग ८५
प्रतिशत भाग खाने योग्य होता है, जबकि अन्य फ़सलों में
मात्र ५० प्रतिशत ही खाने योग्य होता है। इसलिए कहा जा रहा
है कि दुनिया से भुखमरी मिटाने में आलू का अहम योगदान हो
सकता है। पोषण की दृष्टि से आलू महत्त्वपूर्ण फ़सल है।
इसमें काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट के अलावा करीब २
प्रतिशत अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन भी होता है। इसका प्रति हैक्टेयर उत्पादन भी अन्य
फ़सलों की तुलना में बेहतर होता
है और यह कई कठिन परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।
इसके बाद आम लोगों की
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वर्ष होगा अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता
वर्ष। राष्ट्रसंघ ने जो सहस्राब्दी लक्ष्य तय किए हैं,
उनमें एक प्रमुख लक्ष्य यह है कि दुनिया के जिन लोगों को
सुरक्षित शौच व्यवस्था उपलब्ध नहीं है, वर्ष २०१५ तक उनकी
संख्या आधी रह जाए। दुनिया भर में ऐसे लोगों की संख्या
करीब ढाई अरब है। भारत में, सुलभ इंटरनेशनल
के अनुमान के मुताबिक, ऐसे ७० करोड़ लोग हैं जिन्हें घर पर
शौचालय उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा देश में करीब १ करोड़
ऐसे शौचालय हैं जिनमें से मल हटाने का काम इनसानों को करना
पड़ता है। देश में प्रतिवर्ष सात लाख बच्चे स्वच्छता के
अभाव में दस्त के शिकार होकर दम तोड़ते हैं। विभिन्न अनुमानों के
मुताबिक स्वच्छ शौच व्यवस्था और स्वच्छ पेयजल के अभाव में
लाखों लोग मौत के शिकार होते हैं। यह भी माना जाता है कि
स्कूलों में शौचालय की अनुपस्थिति के कारण बड़ी लड़कियाँ
स्कूल छोड़ देती हैं। शौचालय की अनुपलब्धता का गंभीर असर
महिलाओं व बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। आमतौर पर शौच एक ऐसा विषय
है, जिस पर चर्चा करने से सभी कतराते हैं। शायद इसीलिए
शौचालय व स्वच्छता के प्रति आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने व
नीतिकारों और निर्णयकर्ताओं को कदम उठाने को प्रेरित करने
के उद्देश्य से ही २००८ को अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता वर्ष घोषित किया गया है। उम्मीद करें कि यह वर्ष आने वाले
वर्षों में बेहतर स्वास्थ्य का आगाज करेगा।
इसके बाद आते हैं
अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी ग्रह वर्ष पर, जो वास्तव में अगले
तीन वर्षों तक मनाया जाएगा। इसे यूनेस्को ने घोषित किया
है। इसके मूल में संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल तथा संतुलित
विकास के सरोकार हैं। इसके अंतर्गत पृथ्वी को और गहराई से
समझने के लिए शोध परियोजनाएँ शुरू की जाएँगी तथा आम लोगों
के बीच जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जाएँगे। वर्ष के अंतर्गत मुख्यतः
भूजल, प्राकृतिक आपदाओं, सुरक्षित पर्यावरण, जलवायु
परिवर्तन में गैर मानवीय कारक, संसाधनों के मुद्दों,
भूगर्भ की खोजबीन, समुद्रों की संरचना, मिट्टी, जैव
विविधता वगैरह पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस रूप में
देखें तो यह अपेक्षाकृत अकादमिक कवायद होगी, हालाँकि इसमें
संबंधित मुद्दों का संबंध दैनिक जीवन से है।
फिर आता है मेंढक वर्ष।
जैसा कि ऊपर बताया गया, यह वर्ष मनाने का फैसला एंफीबियन
आर्क नामक अभियान ने लिया है। इस वर्ष के माध्यम से हमारा
ध्यान दुनिया के उभयचरों पर छाए संकट की ओर खींचने का
प्रयास होगा। दुनिया में अब तक उभयचरों की ६००० प्रजातियों
को पहचाना गया है। आर्क के मुताबिक इनमें से
५० प्रतिशत ख़तरे में हैं। उभयचरों को बचाने की इस मुहिम के
पीछे एक प्रमुख तर्क यह है कि उभयचर जंतु न सिर्फ़ हमें
तमाम किस्म की औषधियाँ प्रदान करते हैं, बल्कि ये
प्रजातियाँ प्रदूषण की सूचना भी देती हैं। किसी स्थान या इकोसिस्टम में प्रदूषण का असर सबसे पहले उभयचरों पर पड़ता
है। इनकी हालत देखकर हम बता सकते हैं कि उस इकोसिस्टम की
सेहत कैसी है। तो २००८ में दुनिया भर के
चिड़ियाघर लोगों में उभयचरों के प्रति जागरूकता व
संवेदनशीलता पैदा करने के अलावा नीतिकारों से आग्रह करेंगे
कि वे उभयचर संरक्षण हेतु ज़्यादा धन उपलब्ध कराएँ। यहाँ
गौरतलब बात यह है कि पिछले वर्षों में मेंढकों की कुछ नई
प्रजातियाँ भी खोजी गई हैं।
तो इस वर्ष हम कई 'वर्ष'
मना रहे हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्ष के साथ इन
प्रयासों का अंत नहीं होगा, बल्कि तेज़ी आएगी। अन्यथा हम
कई वर्षों से तमाम 'वर्ष' मनाते चले आ रहे हैं और 'नौ दिन
चले अढ़ाई कोस' की स्थिति में हैं। |