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जगमगाती दुनिया के पार अंधेरी-सी
झोंपड़ी के सामने सुनहरे, हरे और सफ़ेद बूटों वाला छोटा-सा
अनार छूट रहा था और उसमें घुली थीं दो मुक्त, मगन खिलखिलाहटें।
पर्व वेला पर रोशनी की कतारें अभी उतरी नहीं हैं। जब उतरेंगी
तो सागरतट की पंद्रहवीं मंज़िल पर मेरा फ्लैट कंदील-सा झिलमिला
उठेगा।
रंग-रोगन,
झाड़-पोंछ, सिल्वो, ब्रासो से चमचमाती पीतल, चाँदी और कांसे की
नायाब नक्काशियाँ। धूप-दीप, नैवेद्य और फूल, गजरे। दीप पर्व पर
लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधि-विधान।
इसीलिए शाम को फिर से नहाई और
बाथरूम से निकल कॉलोन, लैवंडर छिड़के लहराते गीले बालों के
लच्छे झटक दिए हैं। कमरे में खुशबू का सोता-सा फूट पड़ा है। तब
बालों को बड़े प्यार से समेट, धुले कुरकुरे तौलिए से
सहला-सहलाकर पोंछती हुई मैं उसकी ओर पलटती हूँ।
वह उसी तरह समूचे माहौल की
मोहकता में सराबोर हकीबकी-सी खड़ी है। चारों ओर बिखरी हुई
रोशनी और चकाचौंध में चौंधियाई-सी, जैसे इस लोक में नहीं, किसी
अपार कौतुक-भरे, अतींद्रिय लोक में खड़ी हो। |