हास्य व्यंग्य

साक्षात्कार लक्ष्मी का
-राजेंद्र त्यागी 


मुन्नालाल के सपने में रात लक्ष्मी जी आई। लक्ष्मी जी ने जागृत अवस्था में मुन्नालाल पर कभी कृपा नहीं की, हमेशा परहेज़ ही रखा। दिवास्वप्न देखने का वह आदी नहीं है। खैर, सपने में ही सही, मगर आई तो सही। लक्ष्मी जी का आगमन हुआ, चित्त से चिंता का बहिर्गमन हुआ। मन मंदिर के सभी वाद्य यंत्र बज उठे। उसका हृदय परम प्रसन्न हो उठा। लक्ष्मी जी के स्वप्न साक्षात्कार मात्र से ही उसे लगा, मानो उसके भाग्य का छप्पर भी आज फट गया है। सपने-सपने में ही वह अपने भाग्य की तुलना बिल्ली के भाग्य से करने लगा। क्योंकि बिल्ली के भाग्य से भी कभी-कभी छींके टूट जाया करते हैं। हालाँकि आजकल तो ऐसी घटनाएँ आम हैं। लिहाज़ा भाग्य के सहारे जीवनयापन करने वाली बिल्लियाँ भी अब बुद्धिजीवी-कर्मयोगी कहलाए जाने लगी हैं।

आशा के विपरीत स्वप्न देख मुन्नालाल आश्चर्यचकित हुआ, गदगद होना स्वाभाविक था। भावविभोर वह लक्ष्मी जी  के सम्मान में चरणागत हो गया। उसका भक्ति-भाव देख लक्ष्मी जी भी प्रसन्न भई और बोली पुत्र माँगों क्या चाहिए। लक्ष्मी जी के कृपा वचन सुन मुन्नालाल का पत्रकार मन जागा और बोला, ''माँ! साक्षात्कार चाहिए।'' लक्ष्मी जी ने कहा, ''कमबख्त!'' मन ही मन मुसकराईं और सोचने लगीं वाहन उल्लू को तो बाहर खड़ा किया था, अंदर कैसे आ गया।
खैर, लक्ष्मी जी के साथ हमारे संवाददाता मुन्नालाल की बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं।

'तमसो मा ज्यातिर्गमय' ''भक्त अंधकार से उजाले की तरफ़ जाने के लिए प्रार्थना करते हैं। मगर आप स्वयं रात्रि में ही गमन करती हैं। ऐसा क्यों?''
''यह प्रार्थना मुझसे नहीं सरस्वती से की गई है। मेरे भक्त तो मुझे अंधकार में ही बुलाते हैं, प्रकाश में नहीं।''

''आपके भक्त आपको अंधकार में ही क्यों बुलाते हैं?''
''क्योंकि सृष्टि के सभी पुण्य कार्य अंधकार में ही संपन्न होते हैं।''

''आपकी पूजा अमावस्या की रात में ही होने का कारण भी क्या यही है?''
''हाँ! यही है। अन्य कोई सवाल करो।''

''क्या आपने कभी अपने भक्त-पुत्रों को समझाया नहीं कि अंधकार विनाश का और प्रकाश उन्नति का प्रतीक है?''
''पुत्र एक ही प्रश्न में दो प्रश्न कर डाले! मगर आपका पहला प्रश्न मिथ्या है। मेरे भक्त पुत्र नहीं पति कह लाए जाते हैं। पुत्र तो सरस्वती के होते हैं। जहाँ तक दूसरे प्रश्न का सवाल है, सरस्वती पुत्रों के लिए ही प्रकाश उन्नति का प्रतीक है। लक्ष्मी-पतियों के लिए तो अंधकार ही प्रगति पथ प्रशस्त करता है।''

''प्राय: आप एक ही स्वरूप के दर्शन होते हैं। क्या अन्य देवी-देवताओं के समान आपके अनेक रूप नहीं हैं?''
''स्वरूप तो मेरे भी अनेक हैं, लेकिन पृथ्वी लोक में मेरे दो रूप श्याम और श्वेत ही प्रसिद्ध हैं। उनमें भी सर्वाधिक पूजा श्याम रूप की होती है। सांसरिक जीवों की धारणा है कि लक्ष्मी का केवल श्याम स्वरूप ही कल्याणकारी है।''

''आपको चंचला क्यों कहा जाता है?''
''क्योंकि मेरे स्वामी अनेक हैं। अब तो सरस्वती पुत्र भी मेरे स्वामी बनने की कामना करने लगे हैं।''

''कहा जाता है कि विष्णु भगवान के साथ गरुड़ पर सवार हो कर आपका आगमन कल्याणकारी है और रात्रि काल में जब आप उल्लू पर सवार हो कर अकेले आती हैं तो अशुभ होता है। क्या यह सत्य है?''
''यह पुरातन काल की बात है। अब परंपराएँ बदल रही हैं, स्वभाव बदल रहें हैं और स्वभाव के अनुरूप मूल्य परिवर्तित हो रहे हैं। बदलते मूल्यों के इस युग में उल्लू पर सवार हो कर अकेले गमन करना ही भक्तों के लिए हितकारी है।''

''उल्लू आपका प्रिय वाहन है। आपके सान्निध्य में सर्वाधिक रहता है, फिर भी वह उल्लू ऐसा क्यों?''
''क्योंकि वह मेरे प्रति आसक्त नहीं है। मेरा उपभोग नहीं करता, इसलिए आज भी उल्लू है। बिलकुल तुम्हारी तरह। तुम्हें मेरा वरण करना चाहिए था, मगर तुम साक्षात्कार में ही संतुष्ट हो गए!''

''क्या उल्लू मनुष्य योनि में भी पाए जाते हैं?''
''हाँ, मनुष्य योनि में दो प्रकार के उल्लू पाए जाते हैं। एक वे जो मुझे सिर पर तो लादे रहते हैं, किंतु मेरा उपभोग नहीं करते। दूसरे वे जो मुझे अपने आसपास भी देखना पसंद नहीं करते, अपरिग्रह उनका आदर्श है। दोनों ही प्रकार के प्राणी अव्यवहारिक हैं। अत: मुन्नालाल यदि जीवन सफल बनाना है, तो सरस्वती के साथ-साथ मेरा भी चिंतन कर। तमसो मा ज्योतिर्गमय के स्थान पर ज्योतिर्मा तमसोगमय का जाप कर।''

२० अक्तूबर २००८