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24. 7. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह—
समकालीन कहानियों में भारत से राजेश जैन की
दो अंकों में समाप्य लंबी कहानी हिस्सेदारी का दूसरा भाग
सड़क एकदम सपाट और सीधी थी। कार की उन्मुक्त रफ़्तार में एक मस्ती-सी थी। कम लेकिन सधी हुई रफ़्तार का उनके लिए अद्भुत नशीला आनंद था। ऐसे क्षणों को वे स्वादिष्ट चनों की तरह टूँगते थे और राहत महसूस करते। यात्रा और अबाध गति उनके लिए सच्चा रिलेक्सेशन था। यह उन्हें अपने जीवन का दार्शनिक सत्य लगता था। ज़िंदगी भी इसी कार की तरह बढ़ती रहे तो वह सफलता है- उपलब्धि है। ज़िंदगी की यात्रा में भी उन्होंने अपने आपको उसी तरह सुरक्षित और सुविधा संपन्न कर लिया है- जिस तरह कार में वे फिलहाल हैं. . .सीट पर आराम से ड्राइव करते हुए। आसपास के दृश्यों से आनंद निचोड़ते हुए. . .

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हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन का प्रायोजित विशेषांक

बाज़ार में जिस तरह ब्रांड नाम की सामग्री बेचने वाले रिन, सुपर रिन, हाइपावर रिन, या एक्स्ट्रा, स्ट्रांग, न्यू लक्स आदि कह-कह कर अपना सामान खपाते हैं इसी तरह पत्रिकाएँ निकालने वालों को भी करना पड़ता है। वे होली विशेषांक, दिवाली विशेषांक, नववर्ष विशेषांक, फागुन विशेषांक, बसंत विशेषांक, वर्षा विशेषांक ही नहीं निकालते अपितु अपनी वही पुराने ढर्रे की पत्रिका को कविता विशेषांक, गीत विशेषांक, ग़ज़ल विशेषांक, व्यंग्य विशेषांक, नाटक विशेषांक, महिला विशेषांक, दलित विशेषांक, मुसलमान विशेषांक आदि-आदि कह कर भी बाज़ार में खपाते रहते हैं। मैंने सुना है कि विज्ञापनों में अच्छे-अच्छे स्लोगन लिखने वाले भी अच्छे पैसे पीटने लगे हैं।

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प्रौद्योगिकी में
विजय प्रभाकर कांबले का आलेख मोबाइल में हिंदी
आज कल मोबाइल हैंडसेट पर हिंदी में एस.एम.एस. तथा शब्द संसाधनों को प्रचलन बढ़ गया है। मोबाइल धारकों में संवाद के लिए बातचीत के अलावा एस.एम.एस. का प्रयोग बढ़ रहा है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के आँकड़ों के अनुसार मोबाइल धारकों की संख्या वर्ष 2007 के मई माह में 13,06,07955 है जो अब काफ़ी आगे निकल जाएगी। इसमें भेजे गए एस.एम.एस. की संख्या 2003 में 1 मिलियन रही। मोबाइल का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है। भारतीय ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नोकिया कंपनी ने अपने मोबाइल उपकरणों (मॉडल 1100, 1160, 6030) में देवनागरी लिपि का प्रयोग एस.एम.एस. के लिए उपलब्ध किया है।

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साक्षात्कार में- देबाशीष चक्रवर्ती से बातचीत  भारतीय कंप्यूटिंग व भारतीय भाषाओं में सामग्री के विस्तार की संभावनाएँ
पुणे निवासी, सॉफ़्टवेयर सलाहकार देबाशीष चक्रवर्ती को भारत के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में गिना जाता है। वे कई चिट्ठे (ब्लॉग) लिखते हैं जिनमें भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग से लेकर जावा प्रोग्रामिंग तक के विषयों पर सामग्रियाँ होती हैं। हाल ही में वे भारतीय चिट्ठा जगत में अच्छी ख़ासी सक्रियता पैदा करने के कारण चर्चा में आए। उन्होंने इंडीब्लॉगीज़ नाम का एक पोर्टल संस्थापित किया है जो भारतीय चिट्ठाजगत के सभी भारतीय भाषाओं के सर्वोत्कृष्ट चिट्ठों को प्रशंसित और पुरस्कृत कर विश्व के सम्मुख लाने का कार्य करता है। देबाशीष डीमॉज संपादक हैं, तथा भारतीय भाषाओं में चिट्ठों के बारे में जानकारियाँ देने वाला पोर्टल चिट्ठाविश्व भी संभालते हैं।

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साहित्य समाचार में-

सप्ताह का विचार
बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का।  --कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

 

विभिन्न स्तंभों में नीरज गोस्वामी, संजय कुंदन, अनिला कुमार और अर्बुदा ओहरी की नई रचनाएँ

-पिछले सप्ताह-
16 जुलाई 2007 के अंक में
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भारत से राजेश जैन की
दो अंकों में समाप्य लंबी कहानी
हिस्सेदारी का पहला भाग

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हास्य-व्यंग्य में
गुरमीत बेदी का नज़र में
अजूबे और भी हैं इंडिया में!

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धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास
दौड़ का सातवाँ और अंतिम भाग

धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास दौड़ का सातवाँ और अंतिम भाग
राकेश कहते हैं, ''बच्चे अब हमसे ज़्यादा जीवन को समझते हैं। इन्हें कभी पीछे मत खींचना।'' रात को पवन का फ़ोन आया। माता पिता दोनों के चेहरे खिल गए।
''तबीयत कैसी है?''
''एकदम ठीक।'' दोनों ने कहा। अपनी खाँसी, एलर्जी और दर्द बता कर उसे परेशान थोड़े करना है।
''वी.सी.डी. पर पिक्चर देख लिया करो माँ।''
''हाँ देखती हूँ।'' साफ़ झूठ बोला रेखा ने। उसे न्यू सी.डी. में डिस्क लगाना कभी नहीं आएगा। पिछली बार पवन माइक्रोवेव ओवन दिला गया था। फ़ोन पर पूछा, ''माइक्रोवेव से काम लेती हो?''
''मुझे अच्छा नहीं लगता। सीटी मुझे सुनती नहीं, मरी हर चीज़ ज्यादा पक जाए। फिर सब्ज़ी एकदम सफ़ेद लगे जैसे कच्ची है।''
''अच्छा यह मैं ले लूँगा, आपको ब्राउनिंग वाला दिला दूँगा।''

इतिहास के अंतर्गत
हेमंत शर्मा का आलेख
पूरब में ऑक्सफ़ोर्

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आज सिरहाने
अभिरंजन कुमार का कविता संग्रह
उखड़े हुए पौधे का बयान

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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