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                    ''जी बात है- सुना है आप कविताएँ 
                    लिखते हैं।'' मृदुला मुस्कुराकर बोली।''सिर्फ़ सुना है. . .'' वह बच्चों की तरह बोले!
 ''कहीं एकाध पढ़ी भी होगी। वैसे हमने यहाँ के एग्ज़ीक्यूटिव 
                    इंजीनियर शुक्ला जी के यहाँ आपकी किताब भी देखी थी. . .''
 ''शुक्ला अपनी ड्यूटी कर रहा है कि नहीं? क्यों मिस्टर कश्यप, 
                    रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन का काम कैसा चल रहा है आपके यहाँ. . .हाउ 
                    इज शुक्ला'ज परफार्मेंस?''
 ''ठीक है. . .थोड़ा मंदा है। टारगेट चार हज़ार पंप और बारह सौ 
                    गाँवों का था. . .साठ प्रतिशत करीब हुआ होगा। शुक्ला को 
                    प्राब्लम है कि आरईसी की ग्रांट नहीं आ पाती. . .कुछ लाइन 
                    मेंटेनेंस भी ढीला है, अक्सर बिजली चली जाती है।''
 ''ओक आई विल सी. . .'' फिर एकाएक मृदुला की ओर मुखातिब हुए, 
                    ''ओह सॉरी- हम लोग ज़रा ऑफिशियल रोड की ओर मुड़ गए थे. . .आप 
                    बोर होने लगी होंगी?''
 ''जी नहीं. . .इसकी तो आदत ही पड़ गई है- पर आपकी प्रतिभा 
                    वंडरफुल है कहाँ इंजीनियरी और कहाँ कविता. . .कैसे निभा लेते 
                    हैं दोनों. . .''
 ''अच्छा ही नहीं- दोनों का कोई मेल नहीं दोनों क्षेत्र 
                    एक-दूसरे से 180 डिग्री आउट ऑफ फेज हैं। लिटरेचर में आने से 
                    एकदम रिलीफ़ हो जाता है। यू फरगेट एबाउट इलेक्ट्रिकल इनर्जी 
                    एंड स्टार्ट गेनिंग मेंटल-इनर्जी. . .''
 ''मृदुला भी कहानियाँ लिखती है, दो उपन्यास भी छप गए हैं 
                    इसके।'' कश्यप बोला।
 
                    
                    ''ओह आई सी. . .मृदुला कश्यप। आप ही हैं मैंने संभवतः आपकी कोई 
                    चीज़ पढ़ी है। जब आप स्वयं लिखती हैं तो अच्छी तरह समझ सकती 
                    हैं कि आदमी नामक चीज़ कितनी पेचीदा होती है। दबावों एवं 
                    ताक़तों के संवेदनशील फोर्सेस उसके अंदर अंधे बीहड़ों की तरह 
                    फैले होते हैं। कुछ करना चाहता है- कुछ करता है, सोच की खेती 
                    तो सभी के दिमाग़ों में होती है. . .बस कुछ लोग उन्हें शब्दों 
                    के हंसिये से काट लेते हैं। मैं भी शायद यही करता हूँ, आई डू 
                    इट बिकॉज आई कॅन जस्ट डू दैट. . .''''जी ठीक कहा आपने, यह एक नावेल लाई थी अपना, आप पढ़िएगा।'' 
                    हैंड बॅग से पुस्तक निकालकर मृदुला ने कहा।
 ''ओह श्योर. . .'' उन्होंने कहा और किताब उठा ली।
 ''लगता है. . .आप कुछ लिख रहे थे. . .ये. . .'' - ज़रा झिझककर 
                    मृदुला बोली सेंटर टेबल पर पड़े काग़ज़ पर उसकी नज़र पड़ गई 
                    थी।
 ''हाँ ज़रा यों ही. . .''
 ''कविता है. . .क्या मैं देख सकती हूँ. . .''- मृदुला उत्साह 
                    से बोली।
 ''बाई ऑल मीन्स. . .'' वे स्वयं हतप्रभ थे कि कलेक्टर की बीवी 
                    इतनी उन्मुक्तता से कैसे बातें कर रही है?
 ''क्यों नहीं इस कविता को तुम ज़ोर-ज़ोर से रिसाइट करतीं?'' 
                    कश्यप बोला।
 ''पढूँ. . .'' मृदुला ने उनकी ओर देखा।
 उन्होंने हामी भरने में देर 
                    नहीं की। मृदुला ज़ोर-ज़ोर से कविता पढ़ने लगी। सुनकर उन्हें 
                    लगा- उनके शब्द और भी अर्थपूर्ण हो गए हैं। मृदुला के स्वर ने 
                    उस कविता को बदलकर जैसे एक और नयी कविता लिखी थी उनके जेहन 
                    में।उनके बीयर के गिलास से मृदुला के बोल यों टकरा रहे थे- मानो 
                    साकी की कोमल उँगलियों का स्पर्श हो रहा है। काफ़ी उल्लास भरा 
                    महसूस हो रहा था उन्हें अपनी अनुभूतियों में। ज़िंदगी के कुछ 
                    लम्हें इतने सुकून वाले भी हो सकते हैं- यही सोच रहे थे वे।
 यों तो बहुत से अवसर आए जब 
                    लोगों ने उनकी साहित्यिकता की प्रशंसा की और वे खुश भी हुए। 
                    किंतु यह खुशी सरासर भिन्न थी। उसका कारण भी शीघ्र ही स्पष्ट 
                    हो गया। मृदुला के हावभाव और उसका चेहरा उन्हें कहीं अतीत में 
                    खींचे ले जा रहा था। उन्होंने कल्पना की कि उनकी समझ एक छोटी 
                    बच्ची बन गई है और मृदुला की छवि की उँगली पकड़कर उसके साथ 
                    खिंची चला जा रही है. . .लगभग लुढ़कते हुए। तब कॉलेज के फंक्शन में वहाँ 
                    के कलेक्टर मुख्य अतिथि थे। दोस्तों में फुसफुसाहट चल रही थी- 
                    'देखा पच्चीस साल का छोकरा कैसे रुआब से हिटलरी प्रिंसीपल के 
                    साथ बैठा है, ज़माना तो इन्हीं का है भाई। अपने से बस चार साल 
                    बड़ा,  यहाँ हथौड़ी चलाते रह जाएँगे- कोई पूछने वाला नहीं 
                    इंजीनियरों को, इस उम्र में क्या बन पाएँगे। कहीं के एसडीओ. . 
                    .बस।''''और बीवी भी क्या सुंदर है. . .एकदम काँटा चार्मिंग. . .''
 ''यही देवी जी अभी प्राइज़-डिस्ट्रिबूशन करेंगी।''
 ''काश, अपने को भी ऐसी ही 
                    खूबसूरत बीवी मिले।''''भूल जाओ मियाँ, टॉप क्लास की सुंदर बीवियों का कोटा ऊपर से 
                    ही आईएएस वर्ग को अलॉट होकर आता है, बचा-खुचा अपने इंजीनियरों 
                    और डॉक्टरों के पल्ले आता है।
 
                    दोस्तों की बातों को सुनकर भी 
                    अनसुना करते हुए वे चोरी-चोरी कलेक्टर की बीवी को घूर रहे थे। 
                    संपूर्ण तन्मयता के साथ। किसी ने कंधे पर हाथ रखा- ''इन्हीं के 
                    हाथों मिलेगा. . .हो सके तो उसका हाथ छूकर आना, शॉक लगेगा. . 
                    .शॉक. . .फिर बताना कितने वोल्ट का था. . .''''एक सौ बत्तीस किलो वोल्ट से क्या कम होगा?'' किसी ने कहा था।
 वाकई, जब वे प्राइज़ लेने पहुँचे तो मुस्कुराहट के साथ कलेक्टर 
                    की सुंदर बीवी ने कहा था, ''ओह गॉड, इंजीनियरी वाले कविता भी 
                    लिखते हैं, बधाई हो. . .''
 
                    ''शुक्रिया. . .'' कहकर शालीनता से उन्होंने पुरस्कार का कप 
                    लिया और कोशिश की कि कहीं भूल से हाथ छू जाए। छू भी गया- बहुत 
                    ही अंतरंगता और मासूमियत थी उस अनजाने स्पर्श में। वे सिहर उठे 
                    थे। वह सिहरन फिर हमेशा के लिए उनकी स्मृतियों में 
                    फिक्सड-डिपाज़िट की तरह दर्ज़ हो गई थी।आज मृदुला से उसी किस्म का अभिवादन पाकर उन्हें लगा कि वे पुनः 
                    पुरस्कृत किए जा रहे हैं। फिक्सड-डिपाज़िट में रखी वह प्रशंसा. 
                    . .वह सुकून. . .सहसा, मय ब्याज के प्रकट होकर उनकी बाँहों में 
                    समा गई।
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