पुणे निवासी, सॉफ़्टवेयर
सलाहकार देबाशीष चक्रवर्ती को भारत के वरिष्ठ चिट्ठाकारों
में गिना जाता है। वे कई चिट्ठे (ब्लॉग) लिखते हैं जिनमें
भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग से लेकर जावा प्रोग्रामिंग
तक के विषयों पर सामग्रियाँ होती हैं। हाल ही में वे
भारतीय चिट्ठा जगत में अच्छी ख़ासी सक्रियता पैदा करने के
कारण चर्चा में आए। उन्होंने
इंडीब्लॉगीज़
नाम का एक पोर्टल संस्थापित किया है जो भारतीय चिट्ठा जगत
के सभी भारतीय भाषाओं के सर्वोत्कृष्ट चिट्ठों को प्रशंसित
और पुरस्कृत कर विश्व के सम्मुख लाने का कार्य करता है।
देबाशीष
डीमॉज
संपादक
हैं, तथा भारतीय भाषाओं में चिट्ठों के बारे में
जानकारियाँ देने वाला पोर्टल चिट्ठाविश्व भी संभालते हैं।
देबाशीष ने न सिर्फ़ भारत का एकमात्र और पहला बहुभाषी
चिट्ठा पुरस्कार इंडीब्लॉगीज़ का भी शुभारंभ किया, बल्कि
भारतीय ब्लॉग-दुनिया पर वे पैनी नज़र भी रखते हैं। आपने
बहुत सारे सॉफ़्टवेयर जैसे कि वर्डप्रेस,
इंडिकजूमला,
आई-जूमला,
पेबल, स्कटल इत्यादि के स्थानीयकरण (सॉफ़्टवेयर
इंटरफ़ेसों का हिंदी में अनुवाद) का कार्य भी किया है।
आपने ब्लॉग जगत में बहुत से नए विचारों को जन्म दिया जैसे
कि बुनो-कहानी
नाम का समूह चिट्ठा, जिसमें बहुत से चिट्ठाकार मिल जुल कर
एक ही कहानी को अपने अंदाज़ से आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं
तथा
अनुगूँज जिसमें एक ही विषय पर तमाम चिट्ठाकार अपने
विचारों को अपने अंदाज़ में लिखते हैं। वे नियमित रूप से
हिंदी विकिपीडिया, सर्वज्ञ तथा
शून्य पर भी हिंदी संदर्भित विषयों पर लिखते हैं।
देबाशीष ने चिट्ठा-विश्व नाम का भारतीय भाषाओं का ब्लॉग
एग्रीगेटर-सह-जानकारी स्थल भी बनाया था (तकनीकी कारणों से
अभी कार्य नहीं कर रहा है) और वे
निरंतर नाम के
विश्व के पहले हिंदी ब्लॉगज़ीन का संपादन-प्रकाशन-प्रबंधन
भी करते हैं। देबाशीष के बारे में और जानकारी उनके चिट्ठे
नुक्ता-चीनी
तथा नल-पॉइंटर
में देखें।
यह सचमुच प्रशंसनीय
उपलब्धि है कि आपने-अपने व्यक्तिगत संसाधनों के ज़रिए
भारतीय भाषाओं के चिट्ठों को पिछले चार वर्षों से
प्रोत्साहित कर रहे हैं। आपके इन सुंदर प्रयासों को नमन।
ये बताएँ कि आप तबदीली को कैसे अनुभव करते हैं? आपने कब से
भारतीय भाषाओं के चिट्ठों पर ध्यान देना प्रारंभ किया और
आप आज के भारतीय ब्लॉगजगत को किस श्रेणी में रखना चाहेंगे?
इंडीब्लॉगीज़
की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। यह कहना तो ग़लत
होगा कि अकेले इंडीब्लॉगीज़ ने ही भारतीय भाषाओं के
चिट्ठों को प्रोत्साहित किया है। परंतु यह मैं मानता हूँ
कि इंडीब्लॉगीज़ में भारतीय भाषाओं को शामिल करने से
भारतीय भाषाओं के चिट्ठों को प्रकाश में आने में मदद मिली।
इंडीब्लॉगीज़ के ज़रिए बहुतों को पता चला कि आज अपनी
भारतीय मातृभाषा में ब्लॉग लिखना कितना आसान हो गया है और
भारतीय भाषाओं के चिट्ठों में कितनी प्रचुर सामग्री उपलब्ध
है। और लोगों ने इसमें दिलचस्पी दिखानी भी शुरू कर दी है।
इंडीब्लॉगीज़ पुरस्कारों
की दूसरी वर्षगाँठ पर सन 2004 में भारतीय भाषाओं को
सम्मिलित किया गया। तब तक मैंने भी हिंदी भाषा में अपना
चिट्ठा लिखना प्रारंभ कर दिया था और तब तक मैं दूसरी
भाषाओं यथा मराठी व बंगाली भाषाओं के चिट्ठाकारों के
संपर्क में आ चुका था। और, तब तक मेरे मन में यह पक्की
धारणा बन चुकी थी कि भारतीय भाषाओं के चिट्ठों में बड़ा
भविष्य है।
आज भारतीय भाषाओं के
चिट्ठे सशक्त और फल फूल रहे हैं तो इसके पीछे बहुत से
समर्पित व्यक्तियों का भी हाथ है जिन्होंने आरंभिक आवश्यक
औज़ार उपलब्ध किए, यूनिकोड के बारे में जागृति जगाई और
इसके चहुँ-ओर सहयोगी समुदाय बनाया। इसी समुदाय ने ब्लॉग
जगत के इतर, ब्लॉगवेयर, सीएमएस तथा अन्य सॉफ़्टवेयर को
स्थानीयकृत करने में सकारात्मक भूमिका तो निभाई ही,
माइक्रोसॉफ़्ट, याहू तथा गूगल जैसी कंपनियों को इस क्षेत्र
में निवेश हेतु सचेत भी किया।
इस मर्तबा कितनी
भाषाओं में प्रतियोगिता हुई? चिट्ठों को नामांकित करने के
क्या मानक थे? क्या आप अगली दफ़ा सभी आधिकारिक भाषाओं को
सम्मिलित करेंगे?
अंग्रेज़ी के
अलावा, इंडीब्लॉगीज़ में बंगाली, हिंदी, मराठी, गुजराती,
तमिल, तेलुगु, कन्नड़ तथा मलयालम के लिए पुरस्कार थे। मैं
उन निर्णायकों पर निर्भर था जो उस भाषा को जानते तो थे ही,
पिछले लंबे समय से उस भाषा में चिट्ठाकारी कर रहे थे। यह
एक कठिन प्रक्रिया थी चूँकि आमतौर पर भाषाई चिट्ठा समुदाय
अपने-अपने क्षेत्रों में सीमित हैं। उदाहरण के लिए, उचित
निर्णायकों के अभाव में बंगाली तथा गुजराती चिट्ठे इस बार
प्रतियोगिता में भाग ही नहीं ले पाए। सामुदायिक चिट्ठा
एकत्रक जैसे कि
देसीपंडित और
चिट्ठा-चर्चा जैसी संकल्पनाएँ अपने अपने स्तर पर इन
समुदायों को पास-पास लाने का कार्य कर रही हैं और उम्मीद
है कि ये आवश्यक बोध जगाने में सफल होंगे। तो यहाँ प्रश्न
यह नहीं है कि इंडीब्लॉगीज़ में कितनी भाषाओं में पुरस्कार
हैं – प्रश्न यह है कि उस भाषा में कितनी संख्या में अच्छे
चिट्ठे लिखे जा रहे हैं और उनमें निर्णायक के रूप में भाग
ले सकने वाले उत्साही चिट्ठाकार कितने हैं।
आपने इंडीब्लॉगीज़
पुरस्कारों के लिए प्रायोजकों का प्रबंधन कैसे किया?
प्रत्येक वर्ष
मैं अनगिनत कंपनियों, जाल-स्थलों तथा प्रकाशकों को
प्रतियोगिता-प्रायोजन के लिए लिखता हूँ। कुछ प्रत्युत्तर
देते हैं परंतु ढेर सारा उत्साह-वर्धन उन उदार व्यक्तियों
से मिलता है जो समुदायिक सहयोग को महसूस करते हैं। जब भी
उन्हें इंडीब्लॉगीज़ के बारे में मालूम पड़ता है, वे सीधे
ही मुझसे संपर्क करते हैं। इस वर्ष मैंने कुछ प्रेस
वार्ताएँ भी जारी की जिससे कुछ कंपनियों जैसे कि सिनेप्स
ने 12 लाख रुपए तक के पुरस्कार प्रायोजित किए। बहुत से
चिट्ठाकार मित्रों ने प्रायोजकों से संपर्क किया और उन्हें
इंडीब्लॉगीज़ तक लाया। कुछ चिट्ठाकारों ने स्वयं ही
पुरस्कार प्रायोजित किए। मैं स्वयं पुरस्कारों के नकदी
मूल्य को कोई ख़ास महत्व नहीं देता – मेरे लिए पुरस्कारों
का अर्थ है समुदाय को उसका कुछ हिस्सा वापस करना।
भारतीय भाषाओं के
चिट्ठे तादाद में बढ़ रहे हैं और जिनके फलस्वरूप भारतीय
भाषाओं को फ़ायदा हो रहा है। बहुत से भाषाओं के ब्लॉग
एग्रीगेटर बख़ूबी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। आपके हिसाब से
भारतीय भाषाओं में चिट्ठाकारी की गुंजाइशें कहाँ तक जाती
हैं?
ये अंदाज़ा लगाना
कतई कठिन नहीं है कि भारतीय भाषाओं के चिट्ठे भविष्य में
खूब फलेंगे-फूलेंगे। प्रायः सभी भारतीय भाषाओं के ब्लॉग
समुदायों के पास आज अपने ब्लॉग एग्रीगेटर हैं जिनसे उस
भाषा के ब्लॉगों के बारे में जानकारियाँ सर्वत्र प्रसारित
होने में मदद मिलती है। इक्का-दुक्का स्थानीय समाचार
पत्रों ने भी ब्लॉगरों और ब्लॉग सामग्री की ओर ध्यान देना
प्रारंभ कर दिया है और वे ब्लॉगों को अपने तईं समर्थन भी
दे रहे हैं। गूगल ने ब्लॉगर।कॉम के अपने ब्लॉग लेखन औज़ार
में हिंदी रूपांतरण के लिए ख़ास अलग से एक बटन जोड़ा
है। भारतीय भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरने का
यह साफ़ संकेत है। माइक्रोसॉफ़्ट ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम
में इंडिक आईएमई को शामिल किया है जो कि भारतीय भाषाओं में
ब्लॉग लेखन को आसान बनाता है।
एमएसएन तथा याहू ने अपने
भारतीय भाषाओं के संस्करण जारी कर दिए हैं। गूगल ने अभी
अपने समाचार पृष्ठों में हिंदी का खंड भी जोड़ दिया है –
उन्हें पता है स्थानीय भाषा में सामग्री की आवश्यकता है और
स्थानीय भाषाओं के समाचारों के लिए रुचि भी बढ़ रही है।
यह तो अभी सिर्फ़
कुछेक साल से ही भारतीय भाषाओं में ब्लॉगिंग संभव हो पाया
है, और इसके बावजूद भारतीय मीडिया में ब्लॉगों की सशक्त
उपस्थिति दर्ज की गई है।
वैसे तो भारतीय भाषाओं के लिए बहुत से ब्लॉग पुरस्कार हैं
– जैसे कि एक है भाषाइंडिया। आपको इंडीब्लॉगीज़ पुरस्कार
का विचार कैसे सूझा?
भारतीय भाषाओं के
लिए 'बहुत' से ब्लॉग पुरस्कार नहीं हैं। जहाँ तक मेरी
जानकारी है, इंडीब्लॉगीज़ के अलावा सिर्फ़ भाषाइंडिया
द्वारा ही पुरस्कारों की घोषणा की गई थी।
मुख्य धारा की मीडिया को
ब्लॉगिंग से अनावश्यक भय हो रहा है और उनमें से कुछेक ने
इसकी ख़ासी आलोचना भी की है। चिट्ठाकारी के इस वैकल्पिक
मीडिया से मुख्य धारा की मीडिया को जाने क्यों जान का भय
सता रहा है – उन्हें लगता है कि असंपादित, अनियमित चिट्ठे
जो कुछ भी, किसी भी विषय में लिख मारने को स्वतंत्र हैं,
मुख्य धारा की मीडिया को उखाड़ फेंकेंगे। परंतु मुख्य धारा
की मीडिया को चिट्ठाकारी की सामूहिक सोच की ताक़त को,
त्वरित पारस्परिक संप्रेषण क्षमता को स्वीकारना और समझना
होगा। नागरिक पत्रकारिता जैसी अवधारणा को चिट्ठाकारी के
प्रचलन से पहले समझा ही नहीं गया था।
लोग आज हर संभव विषय पर
लिख रहे हैं। व्यक्तिगत चिट्ठों को छोड़ दें तो चिट्ठाकार
ऐसे धीर-गंभीर विषयों पर भी लिख रहे हैं जिन्हें मुख्य
धारा की मीडिया तुच्छ मानती है और कोई ध्यान नहीं देती।
चिट्ठे तथाकथित टी.आर.पी पर नहीं चला करते हैं और इसीलिए वे
महत्वपूर्ण विषयों पर अपना ध्यान लगा सकते हैं। आज स्थिति
यह है कि तमाम विषयों पर तमाम चिट्ठे हैं और एक नियमित
पाठक के लिए नित्य प्रकाशित चिट्ठों में से छाँटना मुश्किल
है कि वह क्या पढ़े और क्या छोड़े। इंडीब्लॉगीज़ ने एक तरह
से इस मामले में मदद की है – महत्वपूर्ण चिट्ठों जिन पर आम
पाठक की नज़रें नहीं जा सकी होंगी उन्हें प्रकाश में लाने
का। और इसी कारण से पुरस्कृत सूची के बजाय, मैं हर हमेशा,
अंतिम दौर में पहुँची सूची को ज़्यादा महत्व देता
हूँ और इन्हें चिट्ठों की उपलब्धि समझता हूँ – चूँकि आप इन
सूची में से बहुत से प्यारे और सचमुच विशिष्ट चिट्ठों के
बारे में जान पाते हैं। इन सूची में शामिल होते हैं बहुत
से अच्छे चिट्ठे जो अब तक आपकी नज़रों में नहीं आ पाए होते
हैं। यह सत्य इंडीब्लॉगीज़ के टैगलाइन में भी उद्धृत होता
है – ''सर्वोत्कृष्ट भारतीय चिट्ठाकारी का प्रदर्शन''। और
हम इनमें से सबसे अच्छे को पुरस्कृत करते हैं।
भारत में अंग्रेज़ी
मीडिया के लिए बहुत बड़ा बाजार है। चिट्ठाकारी में भी
मुख्य रूप से चिट्ठाकार अंग्रेज़ी में ही ध्यान लगाए हुए
हैं। इसके विपरीत, पारंपरिक मीडिया भाषाई बाज़ार को पकड़े
हुए है और उसने अंग्रेज़ी मीडिया को कई क्षेत्र में मात दे
दी है। तो जैसे कि पारंपरिक मीडिया क्षेत्र में हुआ है,
चिट्ठाकारी में भी क्या भाषाई बाजार अंग्रेज़ी से आगे निकल
पाएगा?
मेरे नम्र विचार
में तो आगे निकलने का प्रश्न ही पैदा नहीं होगा। स्वस्थ
प्रवृत्ति जो नज़र में आने लगी है वह है ऑन लाइन मीडिया
में भारतीय भाषाओं में सामग्री का प्रचुरता से आना। संभवतः
यह भी एक कारण है कि दैनिक भास्कर जैसे मीडिया स्थलों ने
जिन्होंने हिंदी व गुजराती समाचार पत्रों के ज़रिए बेहतरीन
काम कर दिखाया था, वे भी चिट्ठों पर निगाहें लगा चुके हैं।
कुछ अरसा पहले मेरे जैसे
लोग सोचा करते थे कि भारतीय भाषाओं के अच्छे साइट जैसे कि
हिंदी की वेब दुनिया
को यूनिकोड में परिवर्तित क्यों नहीं किया जाता। परंतु
पद्मा जैसे एक्सटेंशनों के ज़रिए फ़ॉन्टों की अब वैसी कोई
समस्या नहीं रही जो कि किसी भी फ़ॉन्ट को फ़ॉयरफ़ॉक्स
ब्राउजर में चलते-चलते ही यूनिकोड में परिवर्तित कर दिखाता
है। मुझे लगता है कि ऐसी साइटें मेरी उम्मीद से ज़रा जल्दी
ही यूनिकोड में बदल जाएँगी। आज ढेर सारे औज़ार भी हैं
जिनसे सभी फ़ॉन्ट फ़ॉर्मेट को यूनिकोड में आसानी से बदला
जा सकता है।
इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं
के इस्तेमाल में सबसे बड़ी बाधा आती है यह आती है - ''मैं
अपनी भाषा में कैसे टाइप कर सकता हूँ?'' यदि आप देखें, तो
यही प्रश्न नए नवेले अकसर पूछते दिखाई देते हैं। सामुदायिक
विकि जैसे कि सर्वज्ञ ने यह रास्ता आसान बनाया है। अब आज
आप सेकंडों में अपनी भाषा में चिट्ठा बना सकते हैं।
अंतर्निर्मित टाइपिंग तथा रूपांतरण उपकरणों की बदौलत
आने वाले समय में यह और आसान होगा। इंटरनेट पर बेहद आसान
तरीके से प्रकाशन ने ही ब्लॉगिंग को इतना लोकप्रिय बनाया
है और जब यह भारतीय भाषाओं के लिए भी आसान हो जाएगा, तो
फिर इसे लोकप्रियता की तमाम सीढ़ियाँ चढ़ने से कोई रोक
नहीं पाएगा।
चिट्ठों की मौजूदगी से
ही भाषाई लेखक इंटरनेट पर चले आ रहे हैं। मलयालम में कोई
एक हज़ार चिट्ठाकार हैं और तमिल में इससे भी ज़्यादा। और
यह संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। क्या यह स्थिति सॉफ़्टवेयर
कंपनियों को उनके उत्पादों को स्थानीयकृत करने के लिए
उकसाएँगी?
निश्चित रूप से, जैसे कि मैंने ऊपर गूगल का उदाहरण
प्रस्तुत किया था। याहू ने माँग को देखते हुए विविध किस्म
के प्रचुर भाषाई सामग्री को प्रस्तुत किया है। मोबाइल
ऑपरेटरों ने अपने अनुप्रयोगों को कुछ समय से स्थानीयकृत
करना प्रारंभ कर दिया है। आज आपको अपनी भाषा में शुभकामना
संदेश के कार्ड आसानी से मिल जाते हैं – और ये सिर्फ़ एक
प्रवृत्ति है जो चल निकली है।
बहुत से ब्रांड नामों
या ब्लॉग-वेयरों के स्थानीयकरण में आपने महती भूमिका निभाई
है। वर्तमान में बहुत सारे सॉफ़्टवेयर कंपनियों ने अपने
स्थानीयकृत सॉफ़्टवेयरों के भारत की ओर साथ रुख किया है।
माइक्रोसॉफ़्ट ऑपरेटिंग सिस्टम तथा ऑफ़िस सूट अब प्रमुख
भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। भारत में सॉफ़्टवेयर
स्थानीयकरण को आप किस रूप में देखते हैं? भारत का
सॉफ़्टवेयर स्थानीयकरण उद्योग किन कठिनाइयों से जूझ रहा
है?
मैं सिर्फ़ कुछेक
अनुप्रयोगों के स्थानीयकरण में सम्मिलित रहा था, पर मेरे
मित्रों व मेरे अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ
कि स्थानीयकरण, वह भी ओपन सोर्स हेतु – एक बड़ा ही थैंकलेस
किस्म का कार्य है। बहुत ही कम संस्थाएँ – जैसे कि
सराय हैं जिन्होंने
इस तरह के प्रयासों को समर्थन व अवलंब दिया है। फिर भी
हममें से प्रायः सभी अपनी भाषा के प्रति प्यार की वजह से
ये कार्य करते रहे हैं व आगे भी करते रहेंगे। उन
अनुप्रयोगों व औज़ारों की प्रशंसा की जानी चाहिए जो
स्थानीयकरण की भावना व उस कार्य में मदद करने के विचारों
को लेकर ही बनाए गए हैं – जैसे कि गेटटेक्स्ट (gettext)। और मुझे उम्मीद
है कि स्थानीयकरण उद्योग ऐसे सार्वजनिक ओपन सोर्स तकनीक पर
ध्यान देकर इनके बारंबार इस्तेमाल पर ध्यान देगा।
आपको पता होगा कि
भाषाइंडिया ने अपने पोर्टल में और भी भाषाओं को अभी-अभी
जोड़ा है। भारतीय भाषा के चिट्ठाकार होने के नाते व
सॉफ़्टवेयर स्थानीयकरण से जुड़े होने के नाते, आप
भाषाइंडिया के इन प्रयासों का किस तरह से मूल्यांकन
करेंगे? क्या आपके कोई सुझाव हैं?
भाषाइंडिया ने उन
लोगों को सामुदायिक तौर पर परस्पर जोड़ने का शानदार कार्य
किया है जो अपनी भाषा को इंटरनेट पर देखना चाहते हैं। मेरा
रुझान जावा तकनॉलाज़ी की ओर अधिक होने से मैं इसमें अधिकता
से भाग नहीं ले पाया हूँ, परंतु यहाँ का फ़ोरम जीवंत है और
सामग्री उत्तम।
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जुलाई 2007 |