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आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन की पुस्तक प्रदर्शनियाँ-
आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर आयोजित प्रदर्शनियों में से एक दृश्य। फोटो- अभिनव शुक्लाआठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का मूल विषय था - विश्व मंच पर हिन्दी।

इसकी गूँज संयुक्त राष्ट्र संघ के भवन में आयोजित उद्‌घाटन समारोह से ही सुनाई पड़ने लगी जब संयुक्त राष्ट्र संघ के सचिव ने अपने भाषण में "नमस्कार , क्या हाल-चाल है? " से वहाँ उपस्थित हिन्दी प्रेमियों को संबोधित किया।

इस आयोजन में यूँ तो दुनिया के सौ से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व की बात सुनी , किन्तु अमेरिका के एक प्रमुख शहर न्यूयार्क में आयोजित यह सम्मेलन अमेरिका के हिन्दी प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण रखता था । अरसे से पहचान का संकट झेल रहे यहाँ के साहित्यकारों को असली खुशी तब मिली जब स्मारिका के अतिरिक्त कुछ अन्य आयोजनों ने भी प्रतिभागियों का ध्यान खींचा ।

यूँ तो स्मारिका ने ही पूरा आधार बना दिया था  । विश्व मंच पर हिन्दी- इस मूल बिन्दु को रूपायित करने वाली एक स्मारिका अमेरिकी हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों के परिचय में प्रकाशित हुई  है । इस स्मारिका में अमेरिका के हिन्दी साहित्यकारों के कुल पच्चीस आलेख हैं । दूसरे और तीसरे खंड में अमेरिका के साहित्यकारों का सचित्र परिचय है तथा अमेरिका के विश्वविद्यालयों की सूची है जहाँ हिन्दी पढ़ाई जाती है। इसके अतिरिक्त "प्रवासी-संसार" पत्रिका ने भी अमेरिका के लेखकों के परिचय के साथ उनकी कृतियों की सूची  को क्रमवार , बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रकाशित किया है जो वस्तुत: इसी स्मारिका का अंश जान पड़ती है और जिसे इसी स्मारिका में प्रकाशित होना चाहिए था।

उसके अतिरिक्त दो अन्य विशिष्ट घटनाएँ थीं जिन्होंने अमेरिका के लेखक वर्ग को सुखद स्वीकृति का अहसास दिया। तीन बहु प्रचारित प्रदर्शनियों के अतिरिक्त अमेरिकी साहित्यकारों की पुस्तकों की एक अलग प्रदर्शनी थी जहाँ अमेरिकी साहित्यकारों की 200 से अधिक पुस्तकें रखी हुई थीं । इस प्रदर्शनी का उद्घाटन भी विदेश मंत्री आनंद शर्मा द्वारा 13 जुलाई को ही किया गया। इस प्रदर्शनी में एक ओर जहाँ अमेरिका से प्रकाशित पहली पत्रिका "विश्वा " का 1975 में प्रकाशित पहला अंक भी दर्शकों के देखने के लिए उपलब्ध था और तमाम अन्य पत्रिकाओं , विश्व विवेक, सौरभ, हिन्दी चेतना, क्षितिज , अन्यथा , हिन्दी जगत , विज्ञान प्रकाश आदि की प्रतियाँ मुफ़्त में वितरित की जा रही थीं वहीं दूसरी ओर वह पोस्टर था जो अमेरिका में हिन्दी भाषा से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों की सचित्र झलकियाँ प्रस्तुत कर रहा था । इस पोस्टर में १९६० से आज तक की चुनी हुई तस्वीरें उपलब्ध थीं ।

प्रदर्शनी में जिन रचनाकारों की पुस्तकें थीं उनके चित्र भी वहाँ पर थे । तीन दिनों तक चली इस प्रदर्शनी के बाद प्रदर्शनी स्थल पर रखी अतिथि- पुस्तिका में वरिष्ठ कवि/लेखकों, पत्रकारों , सरकारी अफ़सरों तथा सामान्य प्रतिभागियों की  खूबसूरत टिप्पणियाँ यह दर्शा रही थीं कि लोगों ने इस प्रदर्शनी को भी चाव से देखा और सराहा है। बालकवि बैरागी , कमल किशोर गोयनका , हरेन्द्र प्रताप, हिन्दुस्तान के सह सम्पादक विजय किशोर मानव, अर्चना त्रिपाठी , ए आर घनश्याम, विनोद कुमार ,  और  कई अन्य लोगों द्वारा लिखित टिप्पणियाँ पठनीय थीं । मसलन एक टिप्पणी थी " इतना सारा काम और इतना अच्छा कैसे कर पाते हैं ! इतने व्यापक स्तर पर इतना कुछ एकत्र करने , सहेजने और रचने के लिए मेरी बधाई! ( विजय कॄष्ण मानव) या फ़िर गौतम कपूर ( आनन्द शर्मा के पर्सनल प्रेस सेक्रेटरी) की टिप्पणी - "अंजना जी व समस्त साथियों ,जिन्होंने अपनी कृतियों के सशक्त माध्यम से इस प्रदर्शनी को एक नया रूप दिया । उन सभी को मेरा शत शत प्रणाम ! मुझे यह देखकर एक सुखद आश्चर्य की अनुभूति हो रही है जो मेरे रोम रोम को पुलकित कर रही है कि अपने देश से हजारों मील दूर परदेश में मेरे देश के लोग वहाँ की भाषा को और पुस्तकों के माध्यम से भारत की संस्कृति को विश्व भर में प्रचारित कर रहे हैं ।"

डा. कमल किशोर गोयनका ने लिखा - " यह प्रदर्शनी देखना सौभाग्य का विषय है । यह अमेरिका के हिन्दी लेखकों की रचनात्मकता के एक अज्ञात परिदृश्य का उद्घाटन करती है। डा अंजना संधीर को बधाई ! "

बालकवि बैरागी ने अपनी टिप्पणी में इस प्रदर्शनी और इससे पहले प्रकाशित पुस्तक "प्रवासिनी के बोल" का उल्लेख करते हुए अंजना संधीर को एक जुझारू किन्तु सतत कार्यरत रहने वाली शारदा- सुता माना ।

अमेरिका के पच्चीस रचनाकारों की सैंतीस पुस्तकों का विमोचन भी विश्व हिन्दी सम्मेलन के पहले दिन विदेश मंत्री आनन्द शर्मा ने किया । इस समारोह के लिए विमोचित होनेवाली तमाम पुस्तकों के कवर पेज का एक आकर्षक पोस्टर तैयार किया गया था और इस विमोचन समारोह में वरिष्ठ लेखिका और कवयित्री सुनीता जैन , सुषम बेदी , अंजना संधीर, रेखा मैत्र आदि से लेकर नवोदित लेखक- लेखिकाओं जैसे , इला प्रसाद, शशि पाधा , देवी नांगरानी , अमरेन्द्र कुमार, अभिनव शुक्ल आदि की पुस्तकें भी थीं । भारत के विभिन्न छोटे- बड़े प्रकाशनों , जैसे नेशनल बुक ट्रस्ट , वाणी प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, पेंग्विन इंडिया, जनवाणी प्रकाशन, पार्श्व पब्लिकेशन्स ,जय भारती, हर्ष प्रकाशन, अल्फ़ा प्रिंटिग ( कैलिफोर्निया) आदि ने अमेरिका के लेखकों की किताबें प्रकाशित कर इस महायज्ञ में सहर्ष सहयोग दिया ।

इस सारे आयोजन की परिकल्पना डा अंजना संधीर की थी और उनके परिश्रम से इसे बखूबी अंजाम मिला ।

और अन्त में कुछ नेपथ्य से :
संयुक्त राष्ट्र संघ् के सभागार से जो उद्घाटन भाषण दिए गए उनमें डा गिरिजा व्यास के भाषण पर साहित्यिक मंडली में बाद में काफ़ी चर्चा हुई । मसलन उनके "खूबसूरत जानकारियाँ " शब्द प्रयोग पर भारत से आईं एक प्रसिद्ध लेखिका ने कहा " जानकारियाँ कब से खूबसूरत होने लगीं? " इसी तरह उनके भाषण में बार - बार गुलजार का महान कवि के रूप में उल्लेख भी रोष की वजह रहा क्योंकि इस सभागार में बालकवि बैरागी सरीखे कई वरिष्ठ , प्रसिद्ध और महान कवि उपस्थित थे।

कैफ़ेटेरिया में दोपहर के भोजन के बाद बार बार पुस्तक प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए ऑडीटोरियम में पहुँचने के विनम्र निवेदन के बावजूद बहुत सारे लोगों/लेखकों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और यह भी सुनने को मिला कि सारे उद्‌घाटन मंत्री जी ही क्यों करेंगे ? साहित्यकारों /लेखकों को पूछनेवाला कोई है ही नहीं । जब आयोजकों ने टेबल पर आकर अनुरोध करना शुरु किया तो बहुत सारे साहित्यकार उठकर कैफ़ेटेरिया से बाहर चले गए और बरामदे पर कतार से लगी लंबी मेज़ों पर जम गए ।

पंद्रह जुलाई को हुए समापन समारोह में डा कर्ण सिंह का विद्वत्तापूर्ण भाषण समाप्त होने पर श्रोताओं में से एक ने जब उनसे गाने अनुरोध किया तो कर्ण सिंह का जवाब था - "इस बार कविता सुनाई है । नवें सम्मेलन में गाऊँगा ।"

--इला प्रसाद
24 जुलाई 2007

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