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साहित्य और
संस्कृति में- |
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समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है- अलका मधुसूदन पटेल की
कहानी
अनोखी सौगात

फरवरी
माह की उतरती सर्दी भरी रात है पर प्रकृति ने अपना प्रकोप
दिखला दिया मानो। पिछले कुछ दिनों से लगातार गिरते पानी व ठंडी
शीत लहरें असमय ही बढ़तीं जातीं हैं। दिन के साथ रात्रि कालिमा
और घने कोहरे, बर्फीली हवा बढ़ाकर वातावरण को चुनौती दे रहीं
हैं। कहीं रोशनी कहीं अंधेरा, कदमभर आगे भी हाथ को हाथ नहीं
सूझ रहा। चारों तरफ के पेड़ पौधों से टप टप पानी की बूँदे
टपकतीं। शहर की सड़कों पर छाया सन्नाटा भयावह लगता।
दूर तक चारों ओर सुनसान, न कोई गाड़ी न इंसान। ओस से भीगती
अँधेरी रात में गीली सड़क पर दूर से कोई साया आता नजर आया।
साधारण से कपड़े पहन ऊपर से पुरानी सी शॉल ओढ़े सुक्खु है,
अपनी धीमी चाल से चलता जाता। पैरों की चप्पलों की अनजानी सी
बोझिल आवाज वातावरण में गूँजकर रहस्यमय प्रतीत होती। अपने से
पूर्णतः बेखबर वह गुमसुम सा खोया ठिठकता आगे बढ़ता जाता। मानो!
कड़कड़ाती ठंड का भी उस पर कोई असर नहीं है।
...आगे-
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प्रेरक प्रसंग के अंतर्गत
लघुकथा- कर भला तो हो भला
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प्रकृति और
पर्यावरण में
राजीव रंजन का आलेख- मनुष्य और नदी
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डॉ महेश परिमल का दृष्टिकोण
कुछ अतिरिक्त ही बनाता है हमें श्रेष्ठ
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ओम प्रकाश कश्यप का आलेख
सूफी
दरगाहों में वसंत पंचमी
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