इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
गणेश गंभीर, सुलभ अग्निहोत्री, डॉ. कुमार हेमंत, अमन चाँदपुरी तथा जाकिर खान जाकिर
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- लगभग ३०० कैलोरी के व्यंजनों की शृंखला स्वस्थ कलेवा
में, हमारी रसोई-संपादक
शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
रवा उत्तपम।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२६-
पालतू पशुओं से सुरक्षा। |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा
भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में
जतीन दास
की कला और जीवन से परिचय। |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२६- लाल
और हरे रंग का जादू |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(३ अगस्त को) प्रफुल्लचंद्र रे, मैथिलीशरण गुप्त, श्रीप्रकाश, उदयशंकर
भट्ट, शकील बदायुनी, मनीष पॉल,...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
अनिल कुमार द्वारा अजय पाठक के नवगीत
संग्रह-
मन बंजारा का परिचय। |
वर्ग पहेली- २४८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- भीष्म साहनी को समर्पित |
वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है
भीष्म साहनी की कहानी
वाङ्चू
तभी
दूर से वाङ्चू आता दिखाई दिया। नदी के किनारे, लालमंडी की सड़क
पर धीरे-धीरे डोलता-सा चला आ रहा था। धूसर रंग का चोगा पहने था
और दूर से लगता था कि बौद्ध भिक्षुओं की ही भाँति उसका सिर भी
घुटा हुआ है। पीछे शंकराचार्य की ऊँची पहाड़ी थी और ऊपर स्वच्छ
नीला आकाश। सड़क के दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे सफेदे के पेड़ों की
कतारें। क्षण-भर के लिए मुझे लगा, जैसे वाङ्चू इतिहास के
पन्नों पर से उतर कर आ गया है। प्राचीनकाल में इसी भाँति
देश-विदेश से आनेवाले चीवरधारी भिक्षु पहाड़ों और घाटियों को
लाँघ कर भारत में आया करते होंगे। अतीत के ऐसे ही रोमांचकारी
धुँधलके में मुझे वाङ्चू भी चलता हुआ नजर आया। जब से वह
श्रीनगर में आया था, बौद्ध विहारों के खंडहरों और संग्रहालयों
में घूम रहा था। इस समय भी वह लालमंडी के संग्रहालय में से
निकल कर आ रहा था जहाँ बौद्धकाल के अनेक अवशेष रखे हैं। उसकी
मनःस्थिति को देखते हुए लगता, वह सचमुच ही वर्तमान से कट कर
अतीत के ही किसी कालखंड में विचर रहा था। 'बोधिसत्वों से भेंट
हो गई?' आगे-
*
भीष्म साहनी के जीवन से
रोचक प्रसंग -
भ्राताजी
*
कृष्णा सोबती की कलम से
हम हशमत - भीष्म
साहनी
*
स्मृति की खिड़की से
आज के
अतीत
*
नाटक के नेपथ्य में-
हानूश का जन्म |
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सरस दरबारी की लघुकथा
सबसे
प्रिय वस्तु
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स्वाद और स्वास्थ्य में
टिंडे के स्वास्थ्यवर्धक गुण
*
निशांत कला संस्मरण
पत्थर की
चाक और मिट्टी के घोड़े
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का पाँचवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
जयशंकर की कहानी अर्थ
''आज आप क्लब नहीं जा रहे।’’
''नहीं।’’
''तबियत ठीक नहीं लग रही है?’’
''कुछ थकान-सी है।’’
''आपके लिए कॉफी बनाती हूँ।’’
''अभी नहीं गुनगुन कहाँ है?’’
''पड़ोस में खेल रही है।’’
''बाहर अँधेरा हो रहा है।’’
शाम का आखिरी उजाला भी अपने आखिरी पड़ाव पर खड़ा था। जुलाई की
शुरूआत हो चुकी थी पर बारिश का नामोनिशां नहीं था। कहीं दूर
से, शायद प्राचीन शिव मंदिर से घटियों की हल्की-सी आवाजें आ
रही थीं।
''मैं छत पर आराम करता हूँ’’, आनन्द ने कहा।
''ठीक है, मैं वहाँ झाडू लगा देती हूँ।’’
कोयल ने जीने के पास ही झाडू उठाई। अपने दुपट्टे को कमर पर
बाँध लिया और सीढ़ियों से ऊपर चली गई। वह बैठक के दीवान पर लेट
गया। ‘क्लब मैं लोगों का आना शुरू हो गया होगा। उसके दोस्त कुछ
देर तक उसका इन्तजार करेंगे फिर कोई उसके दफ्तर में फोन
करेगा....दफ्तर में फोन की घंटियाँ जाती रहेंगी और वह यहाँ
रहेगा... अपने घर में...
आगे-
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