इस सप्ताह- |
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अनुभूति
में-
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दिनेश सिंह, विज्ञानव्रत, प्रताप सहगल, मीरा ठाकुर और
जगदीशचंद्र जीत की रचनाएँ। |
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साहित्य और संस्कृति में- |
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समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
अनिल प्रभा कुमार की कहानी
घर
कॉलेज
में साल का आख़िरी दिन था। विश्व - विद्यालय के अहाते में खूब
सरगर्मी मची हुई थी। सलिल भी अपनी इमारत से नीचे उतर कर,
मुख्य द्वार के साथ लगी पटरी पर अपना थोड़ा-सा
सामान रख कर खड़ा हो गया। प्रतीक्षा कर रहा था अपनी माँ की ।
खीझ भी आ रही थी कि पता नहीं अपनी बड़ी-सी स्टेशन वैगन लेकर
कहाँ अपनी धीमी-धीमी चाल से चला कर आ रही होगी। पर अन्दर ही
अन्दर उसे अच्छा भी लग रहा था कि डैडी तो अन्य पिताओं के
विपरीत इस वक्त नाइट-शिफ़्ट कर रहे होंगे पर माँ अकेली ही,
हिम्मत करके. हनुमान चालीसा पढ़ती उसे लेने चल
पड़ी होगी।
विद्यार्थियों का,
उनके अभिभावकों का,
सहायता के लिए आए मित्रों और भाई-बहनों का
रेला-पेला तो बहुत था,
फिर भी इतने हुजूम में भी,
अपने जैसे देसी चेहरों को पहचान लेने की आँख
में एक ख़ास दैवी शक्ति होती है।
"हाय
सलीम" सलिल ने दूर से ही पुकारा।
पूरी कहानी पढ़ें...
*
मनोहर पुरी का व्यंग्य
प्याज और ब्याज
*
डॉ. किशोर काबरा का आलेख
गीत और नवगीत के बीच एक ऋतुमती प्यास
*
सामयिकी में डॉ. वेद प्रताप
वैदिक के विचार
दाल में कुछ काला जरूर है
*
पुनर्पाठ में- भारतीय लोक कलाओं की
जानकारी के अंतर्गत- कलमकारी |
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पिछले
सप्ताह- |
उमेश अग्निहोत्री का व्यंग्य
मैं और फेसबुक
*
कुमार रवीन्द्र की
स्मृति-यात्रा
महोबा होकर खजुराहो तक
*
डॉ. किशोर काबरा का आलेख
गीत और नवगीत के बीच एक ऋतुमती प्यास
*
पुनर्पाठ में सूरज जोशी के साथ देखें
आस्ट्रेलिया के कंगारू
*
समकालीन कहानियों में भारत से
प्रवीण पंडित की कहानी
अपने अपने
दायरे
चौपाल
अलसाई सी उठ बैठी।
पीपल ने भी अंगड़ाई ली।
गली कूंचे कुलबुला उठे।
हल्की सी ठंड भरे दिन ने बदन सेंकने के लिये सुबह के नवेले
गुलाबी गोले को बरसाती की मुंडेर पर लटका दिया, तो गुरजी घोसी
ने भी दरवाज़े पर गुहार लगा दी__
"दो SSS ध"
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माँ खामोशी से चादर लपेटने लगी। अब खाट से पाँव ज़मीन पर टिका
कर धीरे-धीरे चट्टी
(लकड़ी की खड़ाऊँ) ढूँढ़ेंगी। दूध लाने के
लिये भगौना उठा कर कोठा, सहन और चौक पार करते हुए दरवाज़े तक
जाएगी-- धीरे धीरे। तब तक गुरजी की दूसरी, फुट भर ज़्यादा लम्बी
गुहार लग चुकी होगी-
"दो SSSSS
ध।"
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दूसरी गुहार पर बाबू जी की, सोते-सोते, कसमसाती सी आवाज़ निकलती
है। "कब तक सोती रहेगी? दूध ले ले।"
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