समकालीन कहानियों में भारत से
शुभदा मिश्रा की कहानी
नव वर्ष शुभ हो
फोन करने
जाना था बेटा... परेशानी में डूबे बाबू जी तीसरी बार कह चुके
थे। नीलू स्वयं बहुत परेशानी में पड़ गई थी। फोन तो रखा था बगल
के कमरे में। दरवाजा खोलो तो रखा है फोन। लेकिन दरवाजा थोड़े
ही खोला जा सकता है। दरवाजा तो उस तरफ से बंद है। और उस तरफ है
आफिस। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का जोनल आफिस। सारे दिन काम चलता
रहता है वहाँ। बैठा रहता है वहाँ सारे दिन नया मैनेजर। नो
नानसेंस टाइप का कड़ियल आदमी। सारे दिन इस नए बास की सधी हुई
फरमाबदार आवाज गूँजती रहती है आफिस में। आफिस के बाद वाले कमरे
में ही तो रहते हैं नीलू लोग। सारे दिन आफिस की एक एक बात
सुनाई पड़ती है नीलू लोगों को। जरूर नीलू लोगों की बातें भी
उधर सुनाई देती होंगी ही। यह आफिस
देखकर ही बिदके थे नीलू और नितिन। जब यह मकान देखने आए थे। उस
समय आफिस के मैनेजर थे अस्थाना साहब।
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हास्य व्यंग्य में शरद तैलंग की
रचना
शुभकामनाएँ नए साल
की
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सुभाष राय का साहित्यिक निबंध
अनंत काल में एक वर्ष का अर्थ
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डॉ. हरिकृष्ण देवसरे और डॉ.
मनोहर भंडारी
के शब्दों में
कैलेंडर शब्द की उत्पत्ति
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पिछले वर्षों के नववर्ष विशेषांकों का
संग्रह
नववर्ष विशेषांक समग्र |