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घर-परिवार बचपन की आहट


नवजात शिशु का पहला सप्ताह
इला गौतम


वह पहला संकोच-

नवजात शिशु महीनों तक गर्भाशय मेँ रहने के कारण हाथ पैर समेटे अपने में सिमटा हुआ-सा प्रतीत होता है। मानो दुनिया से मिलने में उसे कोई संकोच है। ऐसा इस कारण है कि गर्भ में उसी अवस्था में लंबे समय तक रहने के कारण उसके हाथ पैर पूरी तरह खुले नहीं होते। वह कमान जैसी टाँगो वाला लग सकता है। लेकिन इसमें चिंता की कोई बात नहीं। वह धीरे धीरे हाथ पैर खोल लेगा। जब वह छह महीने का होगा तो उसके अंग पूरी तरह खुल जाएँगे। इस बीच जैसे वह अपनी माँ के गरम और सुरक्षित कोश के बाहर की दुनिया से संपर्क स्थापित करता है उसे एक हल्के कंबल में लिपट कर रहना अच्छा लगेगा।

सहज प्रतिक्रियाएँ

एक शिशु बहुत सारी सहज प्रतिक्रियाएँ सीख कर आता है। इनके लिये उसे सीखने का श्रम नहीं करना होता। इन प्रतिक्रियाओं को प्रतिवर्तन या रिफ्लेक्स कहते हैं। ये प्रतिवर्तन नवजात शिशु के स्वभाव और क्रियाओं में दिखाई देते हैं।

नवजात शिशु को कभी कभी आभास होता है कि वह अचानक ऊपर से नीचे गिर गया जिसके कारण वह अचानक चौंकता है, उसकी पीठ पीछे की ओर मुड़ती है, हाथ-पैर फैलते हैं, और ज़ोर से रोना आ जाता है। ऐसा तेज आवाज सुनकर या उसका बिस्तर हिलने से भी हो सकता है। नवजात शिशु को यह आभास नींद में भी हो सकता है। इस समय सुविधा और समयानुसार उससे चिपककर, उसपर हाथ रखकर, थपथपाकर या उसे गोद में लेकर सीने से लगाकर सहज अनुभव करवाया जा सकता है। सहज होते ही वह फिर से सो जाएगा। यह स्वाभाविक सी बात है और कुछ दिनों बाद यह अपने आप ठीक हो जाता हैं। इस प्रतिवर्त को मोरो या स्टार्टल रिफ्लेक्स नाम दिया गया है।

दूसरा महत्तवपूर्ण नवजात प्रतिवर्त जिसे बाबिंस्की नाम दिया गया है में, यदि शिशु का तलवा मज़बूती से पकड़ा जाए तो उसके पैर की बड़ी अँगुली पीछे की ओर मुड़ जाती है और बाकी अँगुलियाँ एक पँखे की तरह फैल जाती हैं। तीसरे प्रतिवर्त में जब शिशु का पैर किसी सख्त सतह को छूता है तो उसका पैर ऐसे हिलता है जैसे वह कदम बढा रहा हो या नाच रहा हो। और चौथे प्रतिवर्त में यदि शिशु के मुँह के पास कोइ चीज़ या अँगुली रखी जाए तो वह अपना मुँह खोलता है और जीभ बाहर निकाल लेता है।

भूख और नींद 

नवजात शिशु के लिये खाना और नींद सबसे महत्वपूर्ण हैं। अधिकतर बच्चे दो या तीन घँटे पर दूध पीते हैं। बच्चे की नींद काफ़ी अनियमित रहती है। एक बच्चे का सोने का नियम दूसरे बच्चे के सोने के नियम से भिन्न होता है। २४ घंटे में शिशु १६ से १७ घंटे तक सो सकता है - आमतौर पर वह लगभग ८ झपकियाँ लेता है। साँस रुकने से शिशु का जीवन संकट में न पड़ जाए यह देखते हुए पीठ के बल सुलाना अच्छा रहता है।

पहले महीने के अंत तक शिशु अपने खाने और सोने का नियम बना लेगा इसलिये उसके साथ ज़बरदस्ती या जल्दबाज़ी नही करनी चाहिए। इस उम्र में शिशु जैसे ही भूख के संकेत दे वैसे ही उसे दूध पिला देना चाहिए, जहाँ तक हो सके उसके रोने से पहले।

चखना और सूँघना

नवजात शिशु को स्वाद की समझ और चेतना होती है, बल्कि नवजात शिशु में एक वयस्क से अधिक स्वाद की कलियाँ होती हैं। मीठे और कड़वे स्वाद की संवेदना शिशु को जन्म से होती है लेकिन नमकीन स्वाद की समझ उसे ५ महीने के बाद ही आती है। महक की समझ भी शिशु को जन्म से ही होती है। कोई भी दुर्गंघ आने पर बच्चे अपना मुँह फेर लेते हैं (जैसे उनका गंदा डाईपर)। अध्ययन बताते हैं कि एक ५ दिन का शिशु अपने माँ के दूध से भीगे कपड़े की तरफ अपना मुँह मोड़ लेता है यह प्रकट करता है कि वह उसे सूँघ सकता है। कुछ ही दिनों बाद वह अपनी माँ के दूध के लिये अपनी पसंद बताने लगता है। अपनी महक की समझ को प्रयोग करते हुए वह अपनी माँ के स्तन की ओर मुँह कर लेता है।

स्वाभाविक क्रियाएँ

एक और प्रतिवर्तन जिसे बूटिंग रिफ्लेक्स का नाम दिया गया है, शिशु को अपनी माँ का स्तन को ढूँढने और भोजन ग्रहण करने में सहायता करता है। यदि शिशु के गाल, होठ या मुँह, अँगुली या स्तन से छू जाए तो वह अपना सिर उसी ओर घुमाकर मुँह खोल देता है। यह प्रतिवर्तन भी शिशु में जन्म के साथ ही पाया जाता है। वह स्वतः अपना मुँह ऐसा बना लेता है जैसे दूध चूस रहा हो। मानो यह बता रहा हो कि मुझे पता है कि दूध कैसे पीते हैं!

याद रखें, हर शिशु अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी क्रियाएँ करने में सामान्य से अधिक समय लेते हैं। इसी प्रकार हर क्रिया में एक शिशु दूसरे से कुछ कम या अधिक समय ले सकता है।

 

जनवरी २०१०

दूसरा सप्ताह

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