लिंडा ने
फ़ायरप्लेस के ऊपर सजे क्रिसमस कार्ड्स पर एक भरपूर नज़र डाली
और फिर टाईम्स की सुर्ख़ी पर- तीस साल बाद लंदन में इतनी भारी
बर्फ़ पड़ी है। वह बुदबदाईं, चाहो तो एक मिनट में उंगलियों में
गिन लो, चाहो तो तीस वसंत याद करो या फिर तीस पतझड़। भला कितने
साल की थीं वे तीस साल पहले। यही कोई चालीस-इकतालीस की। घुटनों
पर रखा टाईम्स फिसल कर ज़मीन पर नीचे गिर गया। ऐसे ही तो गुज़र
जाता है वक्त-एक हल्की सरसराहट के साथ। अब तो उनके पति को
गुज़रे भी दस साल हो गए।
लिंडा की
नज़र दीवार पर टंगी जॉर्ज की तस्वीर की और गई। मन में एक
उलाहना सा उठा- बुढ़ापा काटने की बारी आई तो अकेला छोड़ गए। दस
साल से नितांत अकेली ही तो हैं वह। साल में एकाध बार बेटी आकर
मिल जाती है। उसके बच्चों से घर महक उठता है। पर कितने
दिन...हफ़्ता...ज़्यादा से ज़्यादा दस दिन।
लेकिन लिंडा
शिकायत नहीं करतीं। अपने आप से भी नहीं। मार्गेरेट, उनकी बेटी
ने एक बार सुझाव दिया था, मॉम, कोई किराएदार रख लो। पहले पहल
उन्होंने विरोध किया पर फिर सोचा हर्ज क्या है। एक लड़की कुछ
दिनों के लिए आकर रही थी। क्या नाम था उसका...हाँ, मैरिएन। चित्रकार
थी। सारा सारा दिन अपने कमरे में बंद रहती थी।
लिंडा
से रहा न गया तो एक दिन पूछ लिया—
“तुम्हें सारा दिन अकेले घबराहट नहीं होती ?”
“आप भी तो अकेली रहती हैं”, जवाब मिला था।
“मेरी बात और है”, लिंडा बोली थी। “मैं तो अब बूढ़ी हो गई
हूँ।”
मैरिएन पल भर को चुप रही थी। फिर जैसे सोचते हुए बोली-
“व्यक्ति अकेला बुढ़ापे के साथ ही नहीं होता मिसेज़ स्मिथ।”
लिंडा का मन हुआ था कहे-जब तुम मेरी उम्र में आओगी, तब यह बात
नहीं करोगी। इंसान तुम्हारी उम्र में ही अकेलापन ओढ़ ले तो मैं
उसे बहाना कहूँगी। अभी तुम्हारे सामने कई रास्ते खुले हैं। तुम
जो चाहो चुन सकती हो। लेकिन जैसे-जैसे बुढ़ापे की पदचाप सुनाई पड़ने
लगती है, चुनने की यह आज़ादी ख़त्म होने लगती है। रह जाती है
एक सँकरी गली – वह भी आगे से बंद।
वह यह सब समझाना चाहती थीं मैरियन को। पर वह तो बिना कोई नोटिस
दिए एक दिन अचानक चली गई और लिंडा फिर अकेली रह गई – अकेली और
बूढ़ी...
इसीलिए तो इस बार क्रिसमस पर उन्होंने आसपास के कुछ लोगों को
दावत देने की सोची। क्या लिखा था भला निमंत्रण पत्र में – वह
मुस्कुराईं – “अगर आप भी मेरी तरह अकेले और बूढ़े हैं तो
क्रिसमस की यह शाम मेरे साथ मेरे घर पर बिताइए.” डर था, कहीं
कोई इसे भद्दा मज़ाक ना समझ ले। पर नहीं, पीटर परसों सुपर
मार्केट में मिले थे तो बोले – “मिसेज़ स्मिथ, थैंक्यू, आपका
निमंत्रण पाकर बहुत ख़ुशी हुई.” रोज़मैरी भी आएगी। हाँ, मिस्टर
लॉरेंस का पता नहीं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि जैसे अपनी ही
ज़िद से बंद हुआ कोई दरवाज़ा हो – आप कितनी ही दस्तक दें, नहीं
खुलेगा। कल अपने बाग़ में
से बर्फ़ निकाल रहे थे। लिंडा को सड़क से गुज़रते देखा भी था
लेकिन कुछ नहीं बोले.....
फ़ायरप्लेस में एक लकड़ी चटखी। लिंडा उठीं। एक बार भोजन का
प्रबंध तो देख लें। कितने शौक से टर्की पकाई है। और क्रिसमस
पुडिंग भी है। वाइन तो सुबह ही ठंडी होने के लिए फ्रिज में रखी
दी थी। काम तो सारा हो गया – अब बस मेहमानों का इंतज़ार है। वह
घुटनों के दर्द को सहलाती हुई खिड़की के क़रीब गईं। कितना फीका
पड़ गया है खिड़की का पर्दा। पर क्या करेंगी वह नया लाकर। बाहर
झाँका, बर्फ़ की सफ़ेदी के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं देता –
पेड़ तो इस तरह ढके हैं कि पहचानना भी मुश्किल है। किसी कार की
हैडलाइट की पीली बीमार रौशनी सड़क पर लेट गई। दरवाज़े खुलने-बंद
होने की आवाज़ आई – और फिर हँसी का एक फ़व्वारा छूटा। एक बच्चे
का शिकायती स्वर उठा – “पर तुमने तो कहा था कि इस बार फ़ादर
क्रिसमस मेरे लिए हवाईजहाज़ लाएँगे... ”
लिंडा खिड़की से हट गईं। कमरे के एक कोने में सजे छोटे से
क्रिसमस ट्री को निहारा। जॉर्ज जीवित थे तो हर क्रिसमस पर बड़ा
सा पेड़ आता था। बिजली के लट्टुओं और उपहारों से कैसे जगमग
करता था। लिंडा कालीन पर गिरा अख़बार उठाने को झुकीं – तो
आँखों का चश्मा खिसककर नाक पर आ गया। कितनी बार सोचा है इसे
ठीक कराएँगी पर अब तो शायद नंबर भी बढ़ गया है। अख़बार की
बारीक़ छपाई पढ़ने के लिए तो मैग्नीफाइंग ग्लास से देखना पड़ता
है। बुढ़ापा भी अजीब चीज़ है, वह मुस्कुराईं। लगता है नए सिरे
से ए बी सी सीख रहे हों। शुरू-शुरू में परेशानी होती है पर फिर
अभ्यास हो जाता है। धीरे-धीरे आदत सी पड़ जाती है। क्या है यह
जीवन – लिंडा अकसर सोचती हैं। आदतों का सिलसिला – कभी किसी के साथ रहने की आदत डाल लो,
कभी किसी के बग़ैर रहने की....... लगता है जैसे दरवाज़े की
घंटी बजी है। हाँ, घंटी ही तो है – कानों से तो अभी ठीक-ठाक
सुनती हैं वह। चश्मे को ठीक से आँखों पर टिकाते हुए वे दरवाज़ा
खोलने को बढ़ीं।
“अरे पीटर – मैरी क्रिसमस...”
“मैरी क्रिसमस, मिसेज स्मिथ...” पीटर अंदर आते हुए ओवरकोट
उतारने लगे, “कहाँ रख दूँ?”
“लाओ मैं रख दूँ.” लिंडा ने ओवरकोट और छड़ी पीटर के हाथ से
लेते हुए कहा।
पीटर की नाक सर्दी से लाल हो रही थी। हाथ रगड़ते हुए वह आग के
पास खड़े हो गए। “क्या कड़ाके की सर्दी पड़ी है इस बार,
बिल्कुल व्हाइट क्रिसमस। और मुश्किल यह कि कल मेरे घर की
सेंट्रल हींटिंग ख़राब हो गई। अब तो छुट्टियों के बाद ही ठीक
होगी।”
“तब तो बड़ी परेशानी होगी...” लिंडा ने चिंता के साथ कहा।
“हाँ, घर बिल्कुल बर्फ़ हो गया है। वो तो शुक्र है – कुछ दिन
पहले मैंने पुराना फ़र्नीचर गैराज में रखा था। सो लकड़ियों से
आग जला लेता हूँ पर गर्म
पानी भी तो नहीं है।”
पीटर आग के क़रीब की कुर्सी पर बैठ गए। “उस दिन टेलीविज़न पर
एक प्रोग्राम देख रहा था, मिसेज़ स्मिथ, आपने भी देखा होगा।
सुना कि सर्दियों में बूढ़े लोगों की मृत्यु दर बढ़ जाती है।
और क्रिसमस के दौरान आत्महत्याओं की संख्या बढ़ती है।”
“छोड़िये भी पीटर”, लिंडा ने टोका, “यह बताइए क्या पियेंगे!
मैंने शैम्पेन ठंडी करके रखी है।”
“शैम्पेन!” पीटर की आवाज़
में हल्की सी नाराज़गी उभर आई। “क्रिसमस के मौक़े पर सरकार
जितना बोनस हम पेंशनयाफ़्ता लोगों को देती है, उसमें शैम्पेन
चखी भर जा सकती है। मैं तो भई थोड़ी ब्रैंडी लूँगा, अगर हो...
”
“ज़रूर” लिंडा किचन की और मुड़ीं तो पीटर ने पाइप निकाला।
तम्बाकू भरा और फ़ायरप्लेस में से एक लक़ड़ी निकालकर सुलगा
लिया। आह- यह पहला कश जितना सुक़ून देता है, उतना ब्रैंडी का
पहला घूँट भी नहीं। रिटायर होने के बाद से वह दिनभर पाइप नहीं
पीते, बस शाम को पीते हैं। दिन भर इस पहले कश का इंतज़ार करते
हैं। सुबह घूमने जाते हैं, दोपहर को लाइब्रेरी और शाम को पब।
एक पाइंट बियर के साथ पाइप भरते हैं। कितने सालों से यही
दिनचर्या चली आ रही है... साल में दो- तीन बार, जब बेटा बहू
आते हैं तो एक दो दिन के लिए उनकी दिनचर्या भंग होती है। ईस्टर
पर और क्रिसमस पर। पर इस बार वे लोग नहीं आए। सुबह जब डेविड ने
फ़ोन पर कहा कि वे लोग नहीं आ पाएँगे तो पीटर को ज़रा बुरा लगा
था। बस एक पल को ही बुरा लगा था। वैसे बुरा भी नहीं लगा, निराश
होने की चुभन भर महसूस हुई थी। मेज़ पर रंगीन क़ाग़ज़ में
लिपटे उपहारों को उन्होंने अपनी काँपती उंगलियों से छुआ था,
डेविड के लिए बाग़वानी की किताब लाए थे वह, उसकी पत्नी के लिए
लंबे ऊनी मोज़े और उनके बेटे के लिए वीडियो गेम। इन सर्दियों
में अपने लिए एक नया ओवरकोट लेना चाहते थे पर अगले साल के लिए
टाल दिया। किसे मालूम था कि इस बार इतनी बर्फ़ पड़ेगी। ख़ैर! पीटर ने पाइप मुँह से
लगाया, लेकिन वह बुझ चुका था।
“क्या सोचने लगे थे? लिंडा ने ब्रैंडी का गिलास थमाते हुए कहा।
“सोच रहा था – एक ज़माना था जब पैर एक जगह टिकते नहीं थे,
कितना घूमा हूँ जवानी में और अब......” पीटर हँसे, “अब जिस दिन
बहुत बेसब्र होता हूँ तो बस में सवार होकर बेमतलब शहर के चक्कर
लगाता हूँ। भई पेंशनर होने का एक फ़ायदा तो है कि मुफ़्त लंदन
दर्शन करो...”
लिंडा के चेहरे पर रौशनी सी खेल गई।
“जॉर्ज को भी बड़ा शौक था घूमने का। कहते, लिंडा मरते वक़्त यह
मलाल लेकर नहीं मरना चाहता कि मैंने पूरी दुनिया नहीं देखी।”
पर कहकर लिंडा को लगा
जैसे कुछ ग़लत कह बैठीं हैं। पीटर का मुस्कुराता चेहरा जैसे
कहीं खो गया। छोटी नीली आँखों की चमक धुँधली सी पड़ गई....
कमरे में एक सन्नाटा छा गया। सड़क पर से पुलिस की एक गाड़ी
चीखती हुई निकली। पीटर और लिंडा के बीच पुराने क़ालीन सा बिछा
सन्नाटा टूटा। लिंडा को पुलिस और एम्बुलेंस की गाड़ियों से
बड़ी दहशत होती है। उनका अलार्म दुर्भाग्य की चीख जैसा लगता
है।
“ख़ुदा जाने क्या हुआ है।” वह बुदबुदाईं।
“हुआ क्या होगा। ज़्यादा पीकर कार चलाने से एक्सीडेंट हो गया
होगा। क्रिसमस के वक़्त दुर्घटनाओं की तादाद भी कुछ बढ़ जाती
है।” पीटर ने बड़े निर्लिप्त स्वर में कहा।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी। लिंडा उठीं। यह घुटनों का दर्द दिन
ढलते ही उम्र का अहसास कराने लगता है। वरना दिनभर तो वह दस
चक्कर लगा आएँ बाज़ार के।
“वाह, रोज़ मैरी” लिंडा ने रोज़मैरी की बाँह थाम कर भीतर आने
में सहारा दिया। रोज़मैरी की पीठ कुछ ज़्यादा ही झुकने लगी है।
रोज़मैरी के पीछे लॉरेंस भी थे। लिंडा ने उनका छाता एक कोने
में रखा।
“आइए न मिस्टर लॉरेंस।
अरे परिचय करा दूँ क्या? पीटर को आप नहीं जानते? दो मकान
छोड़कर ही तो रहते हैं।”
“देखा तो है पर परिचय अभी नहीं हुआ है।” लॉरेंस ने असंबद्ध से
स्वर में कहा। स्वयं लिंडा ने भी आज पहली बार लॉरेंस को इतने
ग़ौर से देखा है। आँखों के नीचे का माँस कितना झूल रहा है और
होठों के पास की झुर्रियों में एक सख़्ती सी है।
रोज़मैरी सैटी के एक कोने में धँस गई। सिर धीरे-धीरे हिल रहा
है। “बैठिए, मिस्टर लॉरेंस”, लिंडा ने कहा, “मुझे सचमुच बहुत
ख़ुशी है कि आपने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया।”
“लगता है फिर बर्फ़
पड़ेगी।” लॉरेंस खिड़की के बाहर झाँक रहे थे। मानो लिंडा की
बात सुनी ही न हो। लिंडा रोज़मैरी के क़रीब बैठ गईं। लॉरेंस आग
के क़रीब जाकर खड़े हो गए। जेब में से सिगार निकाला। सुलगाने
को हुए तो पीटर से
मुख़ातिब हुए।
“आप पियेंगे।”
“नहीं शुक्रिया, मैं सिर्फ़ पाइप ही पीता हूँ...”
लॉरेंस ने एक कश लिया और बोले, “लोग सिगार खाने के बाद पीते
हैं, मैं पहले पीता हूँ।”
रोज़मैरी खाँसी। लॉरेंस को पहली बार जैसे ख़याल आया कि वह तीन
लोगों के बीच हैं।
“आपको धुँए से परेशानी तो नहीं हो रही है?”
“नहीं”, रोज़मैरी ने पहले से ही हिलता सिर कुछ और ज़ोर से
हिलाया। लिंडा शैम्पेन की बोतल ले आई। बोलीं, “यह मैं ख़ासतौर
पर आप लोगों के लिए लाई हूँ।”
“और क्या मैं इसे खोलने का सम्मान हासिल कर सकता हूँ?” पीटर ने
नाटकीय अंदाज़ में बोतल उठाई। और उसे ज़ोर से हिलाया। “अब होगी
धमाकेदार आवाज़।”
रोज़मैरी ने अपने कानों पर हाथ रख लिया।
हल्का सी आवाज़ हुई और शैम्पेन के झाग बोतल के बाहर आने लगे।
पीटर ने चारों गिलास भरे और बोले – “चीयर्स, बुढ़ापे के नाम।”
लिंडा मुस्कुराईं, “हम बूढ़ों और अकेलों के नाम।”
लॉरेंस ने लय तोड़ी। “आपको मालूम है, कल तेरह नंबर वाली मिसेज़
वुड की मौत हो गई...”
लिंडा का गिलास होठों के पास ही रुक गया।
“असल में, मौत तो दो दिन
पहले हुई थी शायद, पर किसी को ख़बर ही नहीं थी। दरवाज़ा बंद
था, दूध की बोतलें बाहर रखी रहीं। फिर किसी पड़ोसी को शक हुआ
तो उसने पुलिस को ख़बर दी।”
“ओ माई गॉड” लिंडा बुदबुदाईं।
“हाँ” लॉरेंस बोले, “जब दरवाज़ा तोड़ा गया तो देखा वह सीढ़ियों
पर गिरी हुई थीं और पास में एक बिल्ली बैठी थी।”
रोज़मैरी का हिलता हुआ सिर थम गया, “वही मिसेज़ बुड, जिनके
यहाँ कई बिल्लियाँ थीं। उफ़ बेचारी।”
“प्रभु किसी को इतनी बेगानी मौत ना दे” लॉरेंस की नज़र छत की
ओर टिक गई।
“कोई रिश्तेदार नहीं था उनका?” लिंडा ने पूछा।
“नहीं। सारी उम्र शादी नहीं की।”
रोज़मैरी ने रुमाल निकालकर नाक सुड़की और बड़बड़ाईं, “दो दिन
तक किसी को ख़बर ही नहीं हुई... ”
“क्रिसमस की छुट्टियों में तो वैसे ही इतनी वीरानी छा जाती है,
जैसे कोई त्योहार न हो राष्ट्रीय शोक मनाया जा रहा हो।” लॉरेंस बोले।
मौत की ख़बर का असर शायद मौत से भी ज़्यादा दहशतभरा होता है।
लिंडा ने महसूस किया - वे लोग शैम्पेन नहीं, दहशत की चुस्कियाँ
ले रहे हैं। एक सन्नाटा उसके अपने भीतर उग आया था। एक रोज़मैरी
के, एक पीटर के और एक लॉरेंस के। चारों के भीतर का सन्नाटा –
एक साथ इस एक कमरे में मौजूद था। फ़ायरप्लेस में आग की लपटें
नीली हो रही थीं। रोज़मैरी के हाथ का गिलास टेढ़ा हो गया था।
पीटर की निगाह जल चुकी लकड़ियों पर थी और लॉरेंस कहीं शून्य
में देख रहे थे। और लिंडा? नहीं, लिंडा जॉर्ज की मृत्यु को याद
नहीं करना चाहतीं। “भई आज
क्रिसमस है। हम लोग मातमपुर्सी के लिए इकट्ठे नहीं हुए हैं।”
“असल में हम सब डर गए हैं।” लॉरेंस ने दार्शनिक अंदाज़ में
कहा।
“क्यों, डरने की क्या बात है।”
“कि यही हाल हम सबका ना हो।”
“मौत तो एक ना एक दिन सभी को आनी है मिस्टर लॉरेंस,” लिंडा ने
कहा।
“पर क्या इतनी भयावह कि दो दिन तक लाश घर में बंद पड़ी रहे और
किसी को आहट न हो।” रोज़मैरी की आवाज़ जैसे किसी धुँए से
निकली।
“अरे भई छोड़ो मौत की बातें। मैं खाना लगाती हूँ”
“मैं कुछ मदद करूँ?” रोज़मैरी ने कहा।
“अरे नहीं, नहीं, बैठो।” लिंडा जानती हैं रोज़मैरी से कुछ नहीं
होगा। जब कभी वह रोज़मैरी की झुकी हुई आकृति को शॉपिंग के
थैलों के बोझ तले घिसटते देखती हैं, भीतर कहीं तकलीफ़ जागती
है। काश! इसका कोई तो क़रीबी होता, जो इसके लिए और कुछ नहीं,
कम से कम वक़्त-बेवक़्त ख़रीददारी करके ला सकता। पर शायद अपने
हिस्से के दुःख हम सबको ख़ुद ही उठाने पड़ते हैं। वरना क्या
रोज़मैरी अपनी बहन और बहनोई के साथ नहीं रह सकती थी। वे लोग
यार्कशर में रहते हैं। एक बार बहुत ज़िद करके रोज़मैरी को ले
गए थे अपने साथ। लिंडा को उम्मीद थी – अब रोज़मैरी का मन लग
जाएगा, शायद अपना मकान बेचकर वहीं चली जाए। पर महीने भर बाद
रोज़मैरी लौटी तो पहले से ज़्यादा कमज़ोर लग रही थी। बोली,
“मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती।”
लिंडा ने मेज़ पर खाना लगाया। टर्की, सलाद, लाल वाइन की बोतल।
पिछले साल उनकी बेटी मार्गरेट यह बोतल ले आई थी। कभी खोलने का
मौक़ा ही नहीं मिला। लिंडा ने मोमबत्तियाँ जलाईं। भीतर जैसे एक
लौ सी काँपी। जॉर्ज ने बड़े शौक से ये कैंडलसिस्टक्स ख़रीदी
थीं। अब तो इनकी चमक धूमिल पड़ गई है। फिर भी लिंडा हर क्रिसमस
पर इन्हें चमकाती हैं। ठीक उसी तरह जैसे बरसों से जमा किए
संगीत के रिकॉर्ड्स को निकालती-संभालती हैं, उनकी धूल पोंछती
हैं – क़रीने से लगाती हैं। पुराने रिकॉर्ड प्लेयर को अपनी
बूढ़ी उंगलियों से छूती हैं। यह तो जॉर्ज से उनके विवाह के भी
पहले का है। जॉर्ज की मृत्यु के बाद संगीत सुनना ही छो़ड़ दिया
लिंडा ने। यहाँ तक कि अपने मनपसंद रिकॉर्ड भी। विवाल्डी का
‘फ़ोर सीज़न्स’ कितना प्रिय है उन्हें – वह भी कभी नहीं सुनती।
बस भीतर ही कहीं, बजता रहता है। ‘फ़ोर सीज़न्स’ – चार ऋतुएँ।
जॉर्ज कहते, मनुष्य का जीवन भी चार ऋतुओं में बँटा है।
आज क्यों न वही रिकॉर्ड बजाएँ!
वे लोग चुपचाप खा रहे थे और उसी चुप्पी को भर रही थी चुरी
काँटों की खनक और विवाल्डी के संगीत की स्वर लहरियाँ। लिंडा इस
संगीत रचना का एक-एक सुर पहचानती है। बसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और
शीत ऋतु... शीत के बाद तो बसंत आता है। ...लेकिन वृद्धावस्था
के बाद? जीवन की यह चौथी ऋतु तो मृत्यु का प्रतीक है। जीवन का
शीत है। उसके बाद बसंत तो नहीं लौटता। पर नहीं, शायद लौटता है
– नन्हीं कोंपलों के रूप में.... किसी नवजात शिसु की गुलाबी
मुट्ठियों के रूप में...
लॉरेंस इस बीच दो बार अपना गिलास भर चुके थे। तीसरी बार वाइन
डालते हुए उन्होंने मौन तोड़ा, “बड़ी उम्दा टर्की बनाई है
मिसेज़ स्मिथ।”
लिंडा को लगा कि शाम भर में पहली बार मिस्टर लारेंस का स्वर
अपनी भीतरी सांकल खोलकर सहज हुआ है। शायद वह भी उन लोगों में
से हैं जो थोड़ी शराब पेट में जाने के बाद ही सहज होते हैं।
लॉरेंस की देखादेखी पीटर ने भी नैपकिन से मुँह पोंछते हुए कहा,
“और सलाद का तो जवाब नहीं। मेरी बीवी भी काफ़ी बढ़िया फ़िश
सैलेड बनाती थी पर यह तो लाजवाब है। क्यों रोज़मैरी?”
रोज़मैरी का हवा में हिलता हुआ सिर पल भर के लिए रुका - “मुझे
कभी कोई दावत पर बुलाएगा, यह सोचा ही नहीं था।”
“ऐसा क्यों सोचती हो रोज़मैरी,” लिंडा ने ढाँढस बँधाया। “अगली
क्रिसमस पर फिर सही।”
रोज़मैरी के चेहरे की लकीरें जैसे और गहरी हो गईं - “अगली
क्रिसमस! अगली क्रिसमस तो बहुत दूर है... बेचारी मिसेज़ वुड। ”
पीटर के
चेहरे पर हँसी खेल गई। “हाँ, मिसेज़ वुड इस क्रिसमस पर ज़िंदा
रह लेतीं तो उन्हें भी आज बुला लेते।”
रोज़मैरी की आँखें नम हो गईं। “मौत को लेकर मज़ाक मत करो
पीटर,” लिंडा ने धीरे से कहा। “अरे, मौत को लेकर ही तो मज़ाक
किया जा सकता है।” पीटर ने क्रिसमस पुडिंग चखते हुए कहा। “ऊपर
वाले ने बुढ़ापा बनाकर जितना बड़ा मज़ाक किया है, हमें क्या
इतना भी हक़ नहीं है।”
“पता नहीं... ” लॉरेंस ने वाइन का घूँट भरकर कहा।
“क्या पता नहीं, मिस्टर लारेंस...” पीटर ने चौंककर देखा।
“पता नहीं, मुझमें ऐसी क्या कमी थी कि ...” वह रुके, गिलास में
बची वाइन गले के नीचे उतारते हुए बोले - “पता नहीं मुझमें ऐसी
क्या कमी थी कि बीस साल साथ रहने के बाद मेरी बीवी ने मुझसे
तलाक लेकर – किसी और से शादी कर ली...”
“मुझे अफ़सोस है” पीटर ने संजीदगी के साथ कहा।
लिंडा को लगा जैसे लॉरेंस अपना ज़िद से बंद किया दरवाज़ा आज
ख़ुद खोल रहे हैं।
“पर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं,” वह कह रहे थे। “अफ़सोस
इस बात का होता है कि मेरे बच्चे भी मेरे पास आने की ज़रूरत
नहीं समझते। अपनी माँ के पास कभी-कभार चले जाते हैं.... मैं
ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता पर क्रिसमस के दिन तो इस बूढ़े
बाप से मिल लिया करें।” वे व्यंग्य से मुस्कुराए। “इस बार तो
फ़ोन भी नहीं आया। बस एक कार्ड। आपने बड़ा अच्छा किया मिसेज़
स्मिथ। जो आज अपने यहाँ बुला लिया...”
लिंडा देख रही थी। लॉरेंस के चेहरे पर बहुत दिनों से भीतर दबी
तकलीफ़ काँप रही है। बोलीं, “उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए मिस्टर
लॉरेंस। हमारा फ़र्ज़ है बच्चों को बड़ा करना, उन्हें अपने
पैरों पर खड़ा होने के क़ाबिल बनाना। उन्हें बड़े होते देख
हमें ख़ुशी भी तो होती है ना।”
“शायद आप ठीक कह रही हैं...पर कितनी अजीब बात है..” लॉरेंस का
अधूरा वाक्य कुछ देर के लिए कमरे की ठहरी हुई हवा में टँगा
रहा। पीटर ने पाइप निकाली, तम्बाकू भरा पर जलाई नहीं। बोले,
“लाईए आज आपका एक सिगार पिएँ मिस्टर लॉरेंस...”
“ज़रूर, बड़ी ख़ुशी से।”
धुँए का एक बादल उठा और उन चारों के सिरों के ऊपर एक पतली चादर
सा तन गया।
“कितनी अजीब बात है।” लॉरेंस फिर बोले, “एक ही सड़क पर रहते
हुए हम इस तरह पहले कभी नहीं मिले।” रोज़मैरी की आँखों की नमी
अब तक सूख गई थी। बोलीं, “यह तो लिंडा की कृपा है... ”
“कभी सोचा नहीं था.....”लॉरेंस बुदबुदाए, “.....कि अपना-अपना
अकेलापन हम इस तरह मिल बैठकर बाँट सकते हैं।”
लिंडा ने महसूस किया कि इस साल पहली बार पीटर और लॉरेंस के बीच
एक अनकहा रिश्ता जुड़ा है। पीटर ने जिस तरह लॉरेंस की ओर देखा,
उसमें उपेक्षा या व्यंग्य नहीं, सहानुभूति थी.... “आपने सच कहा
मिस्टर लॉरेंस... ”
“सिर्फ़ जॉन ही कहिए न, ” मिस्टर लारेंस ने कहा।
“ओह, थैंक्यू जॉन।” पीटर ने सिगार का एक कश लिया, “तुमने बहुत
सही कहा, हम क्यों अपने अपने अँधेरे में बंद रहें। बल्कि मैं
तो यह कहूँगा कि आने वाली गर्मियों में हम लोग कहीं एक साथ
घूमने चलें। कितने बरस हो गए, लंदन से बाहर क़दम रखे....
क्यों?”
लिंडा मुस्कुराईं, “विचार तो बहुत अच्छा है... ”
रोज़मैरी का झुका हुआ सिर हल्का सा उठा, “गर्मियों में?” वह
बोलीं, “पर गर्मियाँ तो अभी बहुत दूर हैं... ”
जॉन लॉरेंस ने बड़ी आत्मीयता के साथ रोज़मैरी के झुर्रियों
वाले हाथ को छुआ। “कैसी बात करती हैं रोज़मैरी। दिसंबर का
महीना तो ख़त्म ही समझो। गर्मियों में भला कितने दिन बाक़ी
हैं... ”
लिंडा कॉफ़ी ले आईं।
“अभी तो थोड़ी सी ब्रैंडी और लूँगा, मिसेज़ स्मिथ।” पीटर ने
कहा।
“ज़रूर, पर पहले आप लोग उठिये और वहाँ आग के पास बैठिए। मैं और
लकड़ियाँ डाल देती हूँ।”
“मैं बर्तन धुलवा दूँ।” रोज़मैरी ने पूछा।
“नहीं थैंक्यू, रोज़मैरी।” लिंडा ने कॉफ़ी प्यालों में ढालते
हुए कहा, “तुम यह कॉफ़ी पियो – बर्तन तो कल भी धुल जाएँगे।”
फ़ायरप्लेस में और लकड़ियाँ डालते हुए लिंडा ने ग़ौर किया – कि
भले ही कोई बातचीत नहीं कर रहा था लेकिन कमरे में जैसे एक
भरापन था। अपने लिए कॉफ़ी डालकर लिंडा भी आ बैठी। विवाल्डी की
संगीत रचना शीत ऋतु अपने अंतिम चरण में थी। फ़ायरप्लेस में आग
की लपटें उठीं। खिड़की के काँच पर हल्की-हल्की बर्फ़ दस्तक दे
रही थी। लिंडा ने खिड़की के पर्दे को देख... सचमुच बहुत फीका
पड़ गया है। क्रिसमस के बाद इस बार सेल में ज़रूर नया पर्दा
ख़रीदकर लाएँगी... और उनकी आँखों के सामने क्रिसमस की सज्जा से
आकर्षक बनीं ऑक्सफ़र्ड स्ट्रीट की दुकानें घूम गईं। |