इस सप्ताह
मेरी प्रिय कहानी के अंतर्गत
यू.के. से
अचला शर्मा की कहानी
चौथी ऋतु
लिंडा ने
फ़ायरप्लेस के ऊपर सजे क्रिसमस कार्ड्स पर एक भरपूर नज़र डाली
और फिर टाईम्स की सुर्ख़ी पर- तीस साल बाद लंदन में इतनी भारी
बर्फ़ पड़ी है। वह बुदबदाईं, चाहो तो एक मिनट में उँगलियों में
गिन लो, चाहो तो तीस वसंत याद करो या फिर तीस पतझड़। भला कितने
साल की थीं वे तीस साल पहले। यही कोई चालीस-इकतालीस की। घुटनों
पर रखा टाईम्स फिसल कर ज़मीन पर नीचे गिर गया। ऐसे ही तो गुज़र
जाता है वक्त-एक हल्की सरसराहट के साथ। अब तो उनके पति को
गुज़रे भी दस साल हो गए। लिंडा की
नज़र दीवार पर टंगी जॉर्ज की तस्वीर की और गई। मन में एक
उलाहना सा उठा- बुढ़ापा काटने की बारी आई तो अकेला छोड़ गए। दस
साल से नितांत अकेली ही तो हैं वह। साल में एकाध बार बेटी आकर
मिल जाती है। उसके बच्चों से घर महक उठता है। पर कितने
दिन...हफ़्ता...ज़्यादा से ज़्यादा दस दिन...
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लेखिका का वक्तव्य
चौथी ऋतु- मेरी प्रिय कहानी
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मनीष कुमार जोशी से सामयिकी में
एशियाड- २०१०
सफलता की नई उड़ान
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प्रो. सत्य भूषण वर्मा का आलेख
हाइकु कविताओं के देश में
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