|
लेखक उवाच-
एक जमाना था जब हम जवाँ थे, एक जमाना यह है जब कहना पड़ रहा है
कि हम अब भी जवाँ हैं। फर्क इतना है कि तब दिल से सोचते थे और
अब थोड़ा बहुत दिमाग से भी सोच लेते हैं। प्यार तब भी
अपरिभाषित था और आज भी अपरिभाषित ही है। इसमें दिमागी सोच कम
ही काम करती है।
ग़ालिब कह गये हैं - 'यह आग का दरिया है..'
सामरसेट माम कह गये हैं - 'प्यार के मामले में तटस्थ मत रहो..'
प्यार के इस पहलू पर लिखी गई यह कहानी काल्पनिक हैं पर कपोल
काल्पनिक नहीं। -
1
अवकाश प्राप्त करने के बाद पिताजी गाँव चंदनी में बस गये हैं।
बीस बीघा जमीन है। जमीन के बीचोबीच आरामदेह और सुरुचिपूर्ण
मकान बनाया है। दाहिने और बाएँ पड़ोस में उनके मित्र बसे हुए
हैं। यारदोस्त अच्छे हें। पेन्शन है। बैंक में अच्छा बैलेन्स
है। मतलब पिताजी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। |