सप्ताह
का
विचार-
सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते
हैं। -कौटिल्य अर्थशास्त्र |
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अनुभूति
में-
कार्यशाला-८ के चुने हुए नवगीतों के अतिरिक्त शाहिद नदीम, नंदलाल
भारती, विजय सिंह नाहटा और प्रिया सैनी की रचनाएँ। |
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इस सप्ताह
समकालीन
कहानियों में भारत से
राजीव पत्थरिया की कहानी
मरब्बा
पंडित जी
सुना है सरकार हमारे इलाके में डैम बनाने जा रही है,
अगर यहाँ डैम बन गया तो हम लोगों के तो दिन फिर गए।`` घसीटू
खुशी से अपना कुप्पा सा मुँह फुलाकर बोला।
यह दोनों लँगड़े हलवाई की दुकान पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले
रहे थे कि सामने से पंचायत प्रधान ठाकुर लच्छीयाराम भी मूँछों
को ताव देते हुए कारिंदों के साथ आते दिखे तो बिहारी पंडित हाथ
जोड़ बोला ''जयराम जी की प्रधान जी, आइये चाय पीजिये।``
''ओ जय-जय पंडित जी, क्या महफिल लगी है।``
''कुछ नहीं प्रधान जी सुना है सरकार यहाँ कोई बड़ा डैम बना रही
है। आपको तो सरकार की सारी खबर रहती है, क्या यह सच है?``
बीच में लंगड़ा हलवाई भी बोला, ''प्रधान जी अगर यहाँ डैम बन
गया तो हमारा क्या होगा,
आप ही सरकार को समझाओ कुछ।``...
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प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
मालामाल करने की चिरौरियाँ
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तिलक परमार का
लेख
वीरांगना
रानी लक्ष्मीबाई
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ज्योति खरे के
साथ पर्यटन
दुर्ग कलिंजर का
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फुलवारी में बच्चों के लिए वनमानुष
के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प |
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पिछले सप्ताह
डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
अपहरण
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डॉ. गीता
शर्मा का दृष्टिकोण
खोज खोई हुई
खुशी की
*
डॉ. विनोद
गुप्ता
का आलेख
फलों का राजा आम
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गृहलक्ष्मी से जानें
मुखौटों का महत्त्व
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समकालीन
कहानियों में भारत से
मथुरा कलौनी की कहानी
बिलौरी की धूप
यह रेस्तराँ
एक जीर्ण बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर है। नाम है सागर। खुली
बाल्कनी में बैठने से नीचे की सड़क और सड़क के उस पार की
गतिविधियों का नजारा लिया जा सकता है। नीचे सड़क,
सामने दो सिनेमा हाल और दो सिनेमा हालों के बीच एक बहुत बड़ा
शापिंग सेन्टर, स्थानीय लोगों और सैलानियों की मिलीजुली भीड़।
खोमचेवालों की चिल्लपों और लोगों का शोरगुल। सड़क पर छोटी-बड़ी
गाडियों की घुरघुर तथा हाड़ कँपा देनेवाले हॉर्न। परसों इसी
शोर ने उसकी आवाज को भागीरथी तक नहीं पहँचने दिया था। उसने
कितनी आवाजें दीं पर इस शोर में उसकी आवाज खो कर रह
गई थी। लेकिन आवाज पहुँच भी जाती तो क्या होता! वह अपना निर्णय
थोड़े ही बदलती। इतना तो वह उसे जानता ही था। पर पता नहीं
क्यों...
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