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पंडित जी
सुना है सरकार हमारे इलाके में डैम बनाने जा रही है, घसीटू
बोला।
''हाँ कुछ-कुछ ऐसा मैंने भी सुना है।
अगर यहाँ डैम बन गया तो हम लोगों के तो दिन फिर गए।`` घसीटू
खुशी से अपना कुप्पा सा मुँह फुलाकर बोला।
ये दोनों लँगड़े हलवाई की दुकान पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले
रहे थे कि सामने से पंचायत प्रधान ठाकुर लच्छीयाराम भी मूँछों
को ताव देते हुए कारिंदों के साथ आते दिखे तो बिहारी पंडित हाथ
जोड़ बोला ''जयराम जी की प्रधान जी, आइये चाय पीजिये।``
''ओ जय-जय पंडित जी, क्या महफिल लगी है।``
''कुछ नहीं प्रधान जी सुना है सरकार यहाँ कोई बड़ा डैम बना रही
है। आपको तो सरकार की सारी खबर रहती है, क्या यह सच है?``
बीच में लंगड़ा हलवाई भी बोला, ''प्रधान जी अगर यहाँ डैम बन
गया तो हमारा क्या होगा,
आप ही सरकार को समझाओ कुछ।``
नोट:- यह
कहानी हिमाचल में बनी जलविद्युत परियोजना पौंग बाँध के
विस्थापितों की पीड़ा को व्यक्त करती है। इसमें मरब्बा शब्द का
अर्थ जमीन का वह बड़ा भाग है जो विस्थापितों को खेती के लिए
राजस्थान में मिला था। |