आम फलों का राजा है
पर इसे राजा की पदवी यों ही
नहीं मिली है। खाने में तो यह लाजवाब है ही गुणों
में भी बेमिसाल है। कालिदास ने इसका गुणगान किया है
और शतपथ ब्राह्मण में इसका उल्लेख मिलता है। वेदों
में इसका नाम लिया गया है तथा
अमरकोश में इसकी प्रशंसा इसकी बुद्धकालीन लोकप्रियता
के प्रमाण हैं। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा
गया है। कविताओं में इसका उल्लेख हुआ और कलाकारों ने
इसे अपने कैनवास पर उतारा। भारतवर्ष में आम से
संबंधित अनेक लोकगीत, आख्यायिकाएँ आदि प्रचलित हैं
और हमारी रीति, व्यवहार, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा,
त्योहार तथा सभी मंगलकार्यों में आम की लकड़ी,
पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग प्राय: काम आता है।
उपयोगिता की दृष्टि से आम भारत का ही नहीं वरन समस्त
उष्ण कटिबंध के फलों में सर्वाधिक लोकप्रिय है और
बहुत तरह से इसका उपयोग होता है। कच्चे फल से चटनी,
खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाते हैं। पके फल अत्यंत
स्वादिष्ट होते हैं और इन्हें लोग बड़े चाव से खाते
हैं। ये पाचक, रेचक और बलप्रद होते हैं। पके फल को
तरह तरह से सुरक्षित करके भी रखते हैं। रस का थाली,
चकले, कपड़े इत्यादि पर पसार, धूप में सुखा "अमावट"
बनाकर रख लेते हैं। यह बड़ी स्वादिष्ट होती है और
इसे लोग बड़े प्रेम से खाते हैं।
आँकड़ों के अनुसार इस समय भारत में प्रतिवर्ष एक
करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन
का ५२ प्रतिशत है। आम भारत का राष्ट्रीय फल भी है।
अन्तर्राष्ट्रीय आम महोत्सव, दिल्ली में इसकी अनेक
प्रजातियों को देखा जा सकता है। भारतीय प्रायद्वीप
में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है। ईसा
पूर्व चौथी या पाँचवीं शती में यह पूर्वी एशिया में
पहुँचा। १० वीं शताब्दी तक यह पूर्वी अफ्रीका पहुँच
चुका था। उसके बाद आम ब्राजील, वेस्ट इंडीज और
मैक्सिको पहुँचा क्योंकि वहाँ की जलवायु में यह
अच्छी तरह उग सकता था।
आम की अनेक प्रजातियाँ हैं और
प्रजाति की अपनी एक विशिष्ट महक और स्वाद है।
प्रजातियों के हिसाब से इनके आकार प्रकार में भी
भिन्नता देखी जा सकती है। फिर भी मुख्य है हापुस
नीलम बादाम तोतापरी लंगड़ा सिंदूरी दशहरी रत्नागिरी
केशरिया लालपत्ता आदि। इसी प्रकार स्थानीय स्तर पर
भी इनकी अनेक किस्में हैं। आम के दो स्वरूप होता हैं
कच्चा और पका हुआ। कच्चे आम को अमिया अथवा कैरी कहते
हैं। इन दोनो के ही विशिष्ट औषधीय उपयोग हैं। अमिया
या कैरी सदैव खट्टी होती है जबकि आम मीठे या
खट्टेमीठे होते हैं।
पका आम रासायनिक तत्वों से परिपूर्ण होता है।
इसमें विटामिन प्रोटीन वसा खनिज लवण आदि प्रमुख हैं।
खनिजों में कैलशियम फासफोरस सोडियम पोटैशियम कापर
गंधक मैगनीशियम क्लोरीन तथा नियमिन प्रमुख हैं।
विटामिनों में विटामिन ए बी सी एवं डी प्रमुख हैं।
आँखों में जलन होने पर कच्चे आम की पुल्टिस रात को
सोते समय साफ़ कपड़े में बाँधकर आँखों पर रखने से
लाभ होता है। अमचुर के चूर्ण में सेंधा नमक
मिलाकर बनाए गए लेप को दाद पर लगाने लाभ होता है।
बवासीर की शिकायत में भी आम लाभकारी माना गया है। इसी प्रकार पित्त की शिकायत होने
पर कच्चे आम पर काली मिर्च और शहद लगाकर सेवन करना
चाहिए।
आम को पथरी की शिकायत में भी उपयोगी पाया गया है। यह गुर्दे की पथरी तक को गला देता है।
यदि शरीर में फोड़े फुनसियाँ हों तो अमचुर के चूर्ण
को पानी में भिगोकर उसका लेप करने से आराम मिलता है। कच्चे आम
का पना लू लगने की रामबाण औषधि है। कच्ची कैरियों को
पानी में उबालकर, उन्हें मसलकर निकाले गए गूदे को चलनी में से छानकर पानी शक्कर और नमक
मिलाकर सेवन करने पर, लू लगने की स्थिति में आराम
मिलता है। गर्मियों में
यह पना पीकर घर से निकलने पर लू का अंदेशा कम हो
जाता है।
इसमें लौह तत्त्व की प्रधानता होती है। रेशे
प्रधान होने के कारण यह कोष्ठबद्धता या कब्ज में
लाभकारी है। क्षय रोग में भी
आम के रस में शहद मिलाकर सेवन करने की सलाह दी गई है।
विटामिन ए से भरपूर होने के कारण आम का सेवन आँखों
के लिए काफ़ी लाभदायक है। इसके सेवन से नेत्र ज्योति बढ़ती
है तथा रतौंधी की शिकायत नहीं रहती है।
पीलिया रोग में भी यह लाभदायक है। यह यकृत को ठीक करता
है मधुमेह के रोगियों को आम के रस में बराबर मात्रा
में जामुन का रस मिलाकर सेवन की सलाह दी जाती है। वायुविकार से पीड़ित होने
पर एक प्याला आम के रस में
एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है।
नक्सीर होने पर इसकी
गुठली की गिरी के रस की दो बूँदें नाक में डालने से
रक्तस्राव बंद हो जाता है। आम के बौर का चूर्ण
सूँघने से भी नाक से होने वाले रक्तस्राव में लाभ
होता है। यदि दस्त लग गए हों तो आम की गुठली को पानी
में पीसकर नाभि पर लेप करने से आराम मिलता है। मूत्र
संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए आम की जड़ का
छिलका और शीशम के पत्ते बराबर मात्रा में मिलाकर
पानी में उबालकर मिश्री के सात सेवन करने से आराम
मिलता है। डिप्थीरिया में आम की छाल के रस
को पानी में मिलाकर गरारा करने से लाभ होता है। यदि
दस्त लग गए हों तो आम की भीतरी छाल को पीस व छानकर
शक्कर मिले पानी से सेवन करने पर आराम हो जाता है।
आम के पेड़ की छाल का काढा बनाकर घाव पर लगाने से वह
जल्दी भर जाता है। मधुमेह में आम की कोमल पत्तियों
को रात में पानी में भिगो कर सुबह इन्हें पानी के
साथ पीसकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है। |