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                    आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ की 
                    दावत थी। 
 शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। 
                    पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए, मुँह 
                    पर फैली हुई सुर्खी और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ 
                    सिगरेट-पर-सिगरेट फंूकते हुए, चीजों की फेहरिस्त हाथ में थामे, 
                    एक कमरे से दूसरे कमरे में आ-जा रहे थे।
 
 आखिर पांच बजते-बजते तैयारी मुकम्मल होने लगी। कुर्सियाँ, 
                    मेज़, तिपाइयाँ, नैपकिन, फूल, सब बरामदे में पहुँच गए। ड्रिंक 
                    का इन्तज़ाम बैठक में कर दिया गया। अब घर का फालतू सामान 
                    अलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छिपाया जाने लगा। तभी 
                    शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई, माँ का क्या होगा?
 
 इस बात की ओर न उनका और न उनकी कुशल गृहिणी का ध्यान गया था। 
                    मिस्टर शामनाथ, श्रीमती की ओर घूमकर अंग्रेजी में बोले - "माँ 
                    का क्या होगा?"
                    श्रीमती काम करते-करते ठहर गई, और थोड़ी देर तक सोचने के बाद 
                    बोलीं- "इन्हें पिछवाड़े इनकी सहेली के घर भेज दो रात-भर बेशक 
                    वहीं रहें। कल आ जाएँ।"
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