सप्ताह का विचार-
मैं
हिन्दुस्तान
की
तूती
हूँ।
अगर
तुम वास्तव
में
मुझसे
जानना
चाहते
हो
तो
हिन्दवी
में
पूछो। मैं
तुम्हें
अनुपम
बातें
बता
सकूँगा। -अमीर ख़ुसरो |
|
अनुभूति
में-
मधुसूदन साहा, मदनमोहन अरविंद, निर्मल गुप्ता, उषा राजे सक्सेना
और यतीन्द्र राही की रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
पिछला सप्ताह अहमदाबाद के गुजरात
विद्यापीठ में बीता। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की
विचारधारा को कौन नहीं पढ़ता, जानता...आगे पढ़ें |
सामयिकी में-
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
की अमरीका यात्रा पर जाने-माने पत्रकार ओमकार चौधरी की टिप्पणी-
और करीब आए भारत-अमेरिका
|
रसोई
सुझाव-
फूलगोभी को पकाने से पहले हल्का उबालकर उसका पानी फेंक दिया जाए
तो यह आसानी से पच जाता है। |
पुनर्पाठ में- ९ दिसंबर
२००१ को
गौरव-गाथा के अंतर्गत प्रकाशित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध
कहानी- उसने
कहा था। |
क्या
आप जानते हैं?
कि तमिलनाडु के तंजावुर नगर में चोल राजाओं द्वारा वर्ष १००४-१००९
में निर्मित बृहदेश्वर मंदिर विश्व का पहला ग्रेनाइट मंदिर है। |
शुक्रवार चौपाल- १७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में
संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन का कार्यक्रम है। इनके पूर्वाभ्यास के
लिए... आगे
पढ़ें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-६ में घोषित कुहासा या कोहरा विषय पर गीत आने शुरू
हो गए हैं। शायद इनके प्रकाशन की तिथि घोषित हो जाए। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
|
|
इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से दीपक शर्मा की कहानी
रक्त
कौतुक
''कुत्ता
बँधा है क्या?'' एक अजनबी ने बंद फाटक की सलाखों के आर-पार
पूछा।
फाटक के बाहर एक बोर्ड टँगा था- 'कुत्ते से सावधान!'
ड्योढ़ी के चक्कर लगा रही
मेरी बाइक रुक ली। बाइक मुझे उसी सुबह मिली थी। इस शर्त के साथ
कि अकेले उस पर सवार होकर मैं घर का फाटक पार नहीं करूँगा।
हालाँकि उस दिन मैंने आठ साल पूरे किए थे।
''उसे पीछे आँगन में नहलाया जा रहा है।''
इतवार के इतवार माँ और बाबा
एक दूसरे की मदद लेकर उसे ज़रूर नहलाया करते। उसे साबुन लगाने
का ज़िम्मा बाबा का रहता और गुनगुने पानी से उस साबुन को
छुड़ाने का ज़िम्मा माँ का।
''आज तुम्हारा जन्मदिन है?'' अजनबी हँसा- ''यह लोगे?''
अपने बटुए से बीस रुपए का एक नोट उसने निकाला और फाटक की
सलाखों मे से मेरी ओर बढ़ा दिया।
''आप कौन हो?''
पूरी कहानी
पढ़ें...
*
अविनाश वाचस्पति
का व्यंग्य
काले का बोलबाला
*
स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे
मुंडे दी माँ का आठवाँ भाग
*
तारादत्त
निर्विरोध के साथ देखें
आबू की प्राकृतिक
सुषमा
*
और घर-परिवार में-
माटी कहे पुकार के |
|
|
पिछले सप्ताह
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
का व्यंग्य
कुर्ता-पायजामा पहनने के लाभ
*
स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे
मुंडे दी माँ का सातवाँ भाग
*
डॉ. हीरालाल
बछोतिया का
आलेख
सतलुज की कहानी
*
घर-परिवार में गृहलक्ष्मी से सुनें
रूमाल की कहानी
*
समकालीन कहानियों में
भारत से
विनीत गर्ग की कहानी
बसवाली लड़की
धीरज की आँख
खुलीं, तो सामने टँगे हुए कैलेंडर ने एक परंपरागत पड़ोसी
की तरह मौका मिलते ही सच्चाई का ज्ञान करा देने के अंदाज़ में
उसे आज की तारीख़ बता दी और बड़ी ही बेरहमी से उन २५ साल, १०
महीने, १२ दिनों का एहसास भी करा दिया जो धीरज ने इस धीरज के
साथ बिताए थे कि धीरज का फल मीठा होता है। ठीक एक महीना पहले
पूरे हुए एम.बी.ए. के एक महीने बाद आज २६ अप्रैल, २००९ को भी
उसका जीवन उतना ही खाली था जितना एम.बी.ए. में प्रवेश लेते समय
या उससे पहले के किसी भी पल। बढ़िया सेंस आफ ह्यूमर, ठीक-ठाक
शक्ल, औसत कद, अति-औसत वज़न, गेहुँआ रंग, काम चलाऊ बुद्धि और
अनावश्यक रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली एक बड़ी-सी नाक
वाले धीरज ने लड़कियों को उनकी उस पसंद के लिए अक्सर कोसा था
जिसके अंतर्गत वह लड़कियों को कभी...
पूरी कहानी
पढ़ें
|