फिर
सुनने में आया कि इस्टर्न दरिया के मुहाने पर स्टैचू ऑफ
लिबर्टी की पृष्ठभूमि में एक बंदरगाही रेस्टराँ उनके
पसंदीदा में उपरवाले पाँच की उस फ़हरिस्त में आ गया है
जिनको उन्होंने पंद्रह और जगह देख कर अपने विवाह उपरांत
के रिसेप्शन के लिए चुना है। कुछ ही दिन बाद वह पूरी की
पूरी फ़हरिस्त चिंधियाँ बना कर फेके जाने की उड़ती-उड़ती
ख़बर मिली। रिसेप्शन में कौन, कहाँ और किसके साथ बिठाया
जाएगा, यह अपने आप में युनाइटेड नेशन्ज़ की आम सभा के
सार्वजनिक अधिवेशन के लिए निर्धारित कुर्सियों के चयन से
ज़्यादा चुनौती जनक हो गया। यू.एन. की आम सभी में हर
सदस्य राष्ट्र के लिए पूर्व निर्धारिक कुर्सियों की कतार
होती है जो इंग्लिश कायदे के अक्षरों की तरतीब के
मुताबिक निश्चित रहती है। ओमान की सल्तनत के अमीर को
नेपाल के हिंदू महाराजों के दूत का पड़ोसी होना ही पड़ता
है, चाहे वह एक दूसरे से मुख़ातिब होना पसंद करें या न
करें। लेकिन यहाँ बात सिर्फ़ उन्हीं लोगों को एक साथ
बैठाने की नहीं थी जो निपट अजनबी न हों। यह भी लाज़मी था
कि एक ही मेज़ पर बैठे हुए अतिथि जहाँ तक हो सके एक
दूसरे को पसंद करते हों ताकि उनकी शाम मज़े में कटे।
ख़ैर, हमने इन छोटे मोटे मुद्दों का ज़िक्र तो सुना, मगर
अपना कोई मत नहीं दिया। बस इतना समझ लिया कि शादी का
निर्णय लेने में छः साल लगाने वाले मनु और लीसा को शादी
की तारीख़ तय करने में वक्त लगेगा।
-----
सेंट
जॉन्ज़ से फ़ोन करके जिस दिन मनु ने अपनी सगाई की
खुशख़बरी सुनाई थी तो लीना को अपने गर्भवती होने की
रिपोर्ट मिले एक ही दिन हुआ था। जब तक लीसा और मनु ने
अपनी शादी की तारीख़ मुकर्रर की तो शांतनु और लीना का
बेटा चार महीने का हो गया।
भरत
नाम दिया हमारे पहले पोते को उसके माँ-बाप ने। लीना और
शांतनु दोनों ही हिंदी भाषा से नावाकिफ़ है। दोनों ही
यहीं अमरीका में पले बड़े हुए हैं। अपनी शादी का
निमंत्रण कार्ड लीना ने खुद ड़िज़ाइन किया था, हल्दी
कुंकुम के रंग और उस पर भी गणेश की छवि। फैरिस व्हील की
सबसे उँची लटकी कुर्सी पर बैठे हुए जब शांतनु ने देखा कि
एक घंटे तक नीचे आने की कोई सूरत नहीं क्योंकि
टैक्नीशियन अटके हुए संगलो की छुड़ा नहीं पा रहे तो वो
अपने हिंदुस्तानी दोस्त के साथ बिना चीखे 'ओम जय जगदीश'
पढ़ रहा था। ऐसा उसी ने बताया था मुझे।
''तुम्हें पता है न कि तुम्हारे दादा का नाम 'राणा'
भरतसिंह था,'' मैंने शांतनु से पूछा।
''इसीलिए तो रक्खा है हमने यह नाम। आप उसको हिंदी ज़रूर
सिखाईएगा, मौम। मुझे एक इंटरप्रैटर चाहिए।''
बहुत गर्व हुआ मुझे। राजन की प्रतिक्रिया मुझसे बिल्कुल
विपरीत था।
''यह क्या नाम रख दिया है? मैंने कमी अपने बाप का नाम
उनके सामने नहीं लिया। अब अपने पोते को उनके नाम से
तू-तुम कह कर बुलाऊँगा?''
''तो क्या करोगे?''
''मैं शांतनु को समझा दूँगा, ऐसा नहीं होता हमारे घर
में।''
''प्लीज़ ऐसा मत करना,'' मैंने दलील की, ''उसने बड़े मन
से यह नाम दिया है अपनी पहली संतान को।'' मैंने खड़े पैर
कोई सुझाव रखने की तरतीब निकालने का सहारा लिया।
''तुम उसे भारत कह कर बुलाना। इंग्लिश में हिज्जे एक ही
हैं।''
अपने
पापा की तरह मनु को भी अपनी पसंदीदा औरत से एक नहीं दो
बार शादी करनी पड़ी। सूरते-हाल कुछ ऐसी बनी कि मनु के
अपनी स्वयंरचित, निर्मित, विवाह गाथा में मुझे एक
छोटी-सी भूमिका दी। मैंने सहर्ष स्वीकार किया और पटकथा
बदल डाली - पार्श्व संगीत, वेषभूषा, पृष्ठभूमि समेत।
लिहाज़ा मेरी भूमिका वाला एक ही पृष्ठ अपने आप में पूरी
लघु कथा बन गया।
मनु को
लेकर न जाने कब से मेरे मन के किसी कोने में एक चोर दुबक
कर बैठा था। मौका-बेमौका वह मेरे अहसास की महफूज़ तिजोरी
पर सेंध लगा देता। मुझे यह जताने के लिए ठीक कहीं न कहीं
मेरे बनाए अवरोध के कारण ही मनु के लिए अपने इमानदारी से
बनते हुए किसी संबंध को विवाह के बंधन में पिरोना
मुश्किल हो गया था। इस बार मेरी भरसक कोशिश थी कि मैं
किसी भी तरह उसके रास्ते का कंकर न बनूँ। इसी इरादे से
अपनी खुश-नीयती को प्रदर्शित करने के अवसर बनाती रहती
थी। उनको रीति-रिवाज के जामे पहनाती रहती थी, शगुन-मंगल
के हल्दी-कुंकुम लगाती रहती थी।
शांतनु
जब लीना को लेकर पहली बार सगाई के बाद घर आया तो मैंने
उनका घर की दहलीज़ पर स्वागत किया था। मनु औऱ लीसा जब
सैट जॉन्ज से लौटे तो मैं कुंकुम, अक्षत, नारियल लेकर
उन्हें घर के दरवाज़े से काफी आगे ही मिली।
''आओ
लीसा। कुंकुम तुम्हारे दोनों के विवाहोपरांत रिसेप्शन
देना चाहते थे। सैंट्रल पार्क का बोट हाउस, मैनहैटन की
बहुमंज़िला सीमेंट, पत्थर औऱ शीशों भरी इमारतों की
दूधिया-नीली-रुपहली बत्तियों की अंतरिक्ष रेखा से घिरा,
भीतों की
झुरमुटी दरियायी के साए में अलमस्त, एक सुस्ताई-सी झील
के किनारे से सटा हुआ यह किश्ती नुमा रेस्टराँ। बड़े
पैमाने पर उसे किसी विशेष समारोह के लिए ग्राहक की रुचि
के अनुसार खिदमात औऱ सज्जा से तैयार करने में कुछ साल-छः
महीने चाहिए- और ग्राहकों की कतार तब ज़रा कम लंबी होती
है जब मौसम के तेवर बिगड़ने का अंदेशा हो। जनवरी के
महीने में बर्फ़ीली हवा और दिनों तक चलनें वाली
हिम-वर्षा में भी वहीं आकर अपनी खुशियाँ मनाने वालों की
गर्म साँसों से उच्छवासित रहने की आदत है इस बोट हाउस की
ऊँची छतों और चौड़ी खिड़कियों को। बर्फ़ गिरी तो बोट
हाउस चाँद की धरातल पर खड़ा होगा। इसी उम्मीद में मनु और
लीसा ने सत्रह जनवरी को वहीं अपनी शादी का जश्न मनाने का
फ़ैसला किया। देश-विदेश से अपेक्षित अपने
मित्र-संबंधियों के समय और सुविधा का ध्यान रखते हुए उसी
शामको यू.एन. के इंटरफेथ चैपल में विवाह होना तय हुआ। चैपल मैनहैटन
के पूर्वी छोर पर है, बोट हाउस पश्चिमी तट पर। बीच में
दिन रात मैनहैटन के रात्रि जीवन के उपासकों की गाड़ियों
और चहल-कदमी का ताम-झाम। पूर्व से पश्चिम लाने-ले-जाने
के लिए गाड़ियों की व्यवस्था और पार्क की बाहरी सीमा से
बोट हाउस तक पहुँचाने-लाने के लिए ट्रालियों की सुविधा।
पार्क से सड़क पार फिफ्थ एविन्यू के पार्क लेन होटल में
अतिथियों के रहने का इंतज़ाम।
एक-एक
करके सभी का विवरण देने के बाद मनु ने दम भर को साँस ली
और धाराप्रवाह बोलता गया।
''चैपल में शादी हिंदुस्तानी और यहाँ के कुछ
रीति-रिवाजों का संगम होगा। विवाह होम करेंगे, जयमाला
होगी, मंगल फेरे और सप्तपदी होगी, मेरा आपसे अनुरोध है
कि आप दोनों की बाहों के बीच मैं विवाह-मंडप में
पहुँचूँ। आप दोनों ही हमारा गठबंधन करे, और आप ममा,
विवाह संपन्न होने पर शांतिपाठ करें।''
मनु अब
वही परिमार्जित हिंदी बोल रहा था जिसका प्रयोग वह तभी
करता है जब उसे अपनी भारतीय पहचान के उचित प्रदर्शन का
विशेष अवसर मिले।
''और पापा, आप उस दिन टक्स पहन लेंगे नं?''
''बिल्कुल,'' राजन मुस्करा दिए।
''मैं साड़ी ही पहनूँगी, मनु।''
मनु के
खिले चेहरे पर क्षण भर के लिए एक लोरी उभरी और उसका
हँसता हुआ स्वर कुछ आहत हो गया,
''मुझे आश्चर्य है ममा, कि आपको ऐसा कहना पड़ा। आपने यह
सोच भी कैसे लिया कि अपनी ही शादी में आपको साड़ी पहने
नहीं देखना चाहूँगा। क्या मैं नहीं जानता कि आप हमेशा ही
साड़ी पहनती हैं और उसी में बहुत-बहुत अच्छी लगती हैं।''
''ठीक है, साड़ी ही पहनूँगी।'' मैंने देखा कि मनु को सहज
होने में अब ज़रा वक्त चाहिए।
''और बताओ न!''
''मैं चाहता हूँ ममा कि आप मेरे लिए हिंदु विवाह परंपरा
की कुछ रीतियों को थोड़े से शब्दों में मुझे लिख कर भेज
दें ताकि मैं एक बार फिर से देख लूँ कि सब कार्य विषिक्त
हो रहा है।''
''ठीक है, भेज दूँगी।''
''बस एक ही बात चैपल में नहीं हो सकती?''
''क्या?'' मैंने पूछा।
''हवन के लिए अग्नि प्रज्ज्वलित करना वर्जित है वहाँ।''
''तो फेरे कैसे लोगे?''
''मोमबत्तियों की जलती हुई लौ के इर्द-गिर्द।''
''तुम और लीसा क्या पहनोगे?''
''मैं टक्स पहनूँगा और लीसा ने अपने लिए दुधिया ब्राइडल
गाउन बनवाने का ऑर्डर दे दिया है, ''
''तो गठ-बंधन के लिए क्या करोगे?''
''कुछ सोचेंगे, ममा।''
मनु के जाते ही मैं खीझ उठी।
''यह क्या तमाशा है? विवाह होम के लिए अग्नि काष्ठ की
ज्वाला से उठती है- मोम की लौ से नहीं। वर और वधू मंगल
फेरे लेते वक्त काले और सफ़ेद कपड़े नहीं पहनते। गठ-बंधन
के लिए वर के काँधे पर दुशाला और वधु के आँचल का छोर
होता है।'' मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि जैसे
बरसों से उमड़ती-उफनती नदी यकलख़्त अपने जाने पहचाने
किनारे तोड़ रही हो।
''आज मुझे खुल कर कह लेने दो राजन! मनु ने आजतक मुझे
अपरिमित प्यार, असाधारण सम्मान और सर्वोत्कृष्ट गर्व का
भागी बनाया है। उसके विवाह पर उसे शतशः आशीर्वाद देने के
लिए वो मुझे जो कहेगा, मैं करूँगी। जहाँ भी आने को
कहेगा, मैं सर के बल चली जाऊँगी।'' मैं भी अब मनु के ही
जैसी भाषा बोल रही थी।
''लेकिन मैं सिर्फ़ मनु की माँ ही नहीं, एक संस्कारी
हिंदु भी हूँ। चार वेद, पाँच तत्व, छः शास्त्र,
सप्तरुषि, अष्टरस, नवग्रह, दस दिशाएँ केवल आँकड़े नहीं
हैं, मेरे लिए आस्थाएँ हैं, उसका स्मरण, अवलोकन, आह्वान,
और अस्तुति किए बिना मंगल फेरे केवल परिक्रमा की क्रिया
मात्र हो सकती है, विवाह का अनुष्ठान नहीं। मनु लीसा के
साथ शादी चाहे इसाई गिरजाघर में करे, ज्युइश सिनागौत्र
में या अंतर-धार्मिक चैपल में, मैं तुम्हारे साथ वहाँ
रहूँगी। लेकिन मेरा बेटा जूता मोज़ा पहने, काले सूट में,
मोमबत्ती की लौ को साक्षी बनाकर मुझसे यह कहे कि उसने
सप्तपदी की प्रथा का सम्मान किया है, यह मुझे असहनीय
है।''
''मैं मनु से बात करूँगा।'' राजन ने मेरा सिर थपथपा
दिया।
दो दिन
बाद मनु का फ़ोन आया।
''मेरी पापा से बात हुई है, ममा! क्या आप हमारी शादी के
एक सप्ताह पहले अपनी आस्थाओं सहित हमारी सप्तपदी करवा
देंगी?''
''लीसा से पूछ लिया है न?''
''हाँ, वह जानती है कि विधिवत सप्तपदी करना मेरे लिए
उतना ही महत्व रखता है जितना उसके लिए अपने पापा की बाँह
पर हाथ रख कर विवाह-स्थल पर पहुँचना। बस आपसे यही विनती
है हमारी कि इस अनुष्ठान को केवल हमारे परिवार और परिवार
जैसे लोगों सहित घर पर ही करें।'' वह थोड़ी देर रुका और
बोला,
''आपकी और पापा की शादी की पचीसवी वर्षगाँठ पर मैंने जो
शेरवानी पहनी थी, वह है न आपके पास?''
''नई बनवा देंगे, बेटा।''
''लीसा को किसी दिन साथ ले जाकर उसकी पसंद का लहंगा,
चुनरी, चोली भी।''
''बेहद खुशी से...।'' |