इस सप्ताह
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
यू.एस.ए से सुषम बेदी की कहानी
गुरुमाई
उस
बड़े से हॉल के एक सिरे पर सिंहासन नुमा चौड़ी-सी आरामकुर्सी
थी जिस पर लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछा था। कपड़े के किनारों
पर सुनहरी धागों से कढ़ाई की हुई थी। सिंहासन के ठीक उपर छत्र था गुलाबी
रंग का जहाँ दोनों ओर खड़े सफ़ेद कुरता पाजामा पहने दो युवक
गुरुमाई पर पंखा झुला रहे थे। गुरुमाई बहुत शांत,
निरुद्विग्न-सी बैठी थी अपने सिंहासन पर। आँखें ठीक सामने देख
रही थी। कभी-कभी हाल में बैठे भक्तों की भीड़ पर नज़र दौड़ा
लेती। फिर अपने आप में अवस्थित। जैसे कि ध्यान में ही हो! हॉल में एकदम चुप्पी थी। सब
इंतज़ार में थे गुरुमाई के आशीर्वाद के। उनके मुख से
निकलनेवाला हर वाक्य आकाशवाणी की तरह पवित्र और पूज्य था। क्या
गुरुमाई अपने वचन की इस ताकत से परिचित थी? शायद हाँ। शायद
हाँ, शायद नहीं। एक-एक करके लोग उसके पास जाते, कुछ चरणों को
छू नमस्कार करते। कुछ साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में चरणों
पर शीश रख देते।
पूरी कहानी पढ़ें-
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प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
कबाड़ियों का उज्जवल भविष्य
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धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
दसवाँ भाग
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डॉ. राजेन्द्र गौतम का आलेख
गीत और नवगीत के
धरातल पर कुछ सवाल
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पर्यटन में श्वेता प्रियदर्शिनी के साथ चलें
दो संस्कृतियों के सेतुः जनकपुर |
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पिछले
सप्ताह
महेशचंद्र द्विवेदी का व्यंग्य
अंकल माने चाचा, ताऊ या बाबा
धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
नवाँ भाग
*
स्वाद और स्वास्थ्य में अर्बुदा ओहरी से सुनें
प्याज़ की पुकार
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फुलवारी में भालू के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प
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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-यू.एस.ए से अभिरंजन की
विज्ञान-कथा
कस्तूरी कुंडल बसे
अभी एक उनींदा-सा झोंका आँखों
में आकर ठहरा ही था कि आवाज़ आई, "कॉल फ्राम वेराइजन
वायरलेस..." फोन सविता ने उठाया। हमारा इकलौता बेटा तरुण अपनी
माँ द्वारा दिन में की गई काल के जवाब में फ़ोन पर था। मैं
वापस नींद में जाने को ही था कि बातों ने ध्यान आकर्षित कर
लिया,
"क्यों क्या पेट दर्द हो रहा है?... ठीक है मै वीकेण्ड
पर आते हुए ले आऊँगी। ...
हाँ, अच्छा ठीक है मैं कल ही ओवरनाइट करती हूँ। अहँ..अहँ
क्यों? ... इतना गड़बड़ है क्या? ... तुमने टायलोनॉल ली क्या?
अच्छा! कब से? ... ठीक है, मैं कल ही आती हूँ।"
मेरी नींद अब तक टूट गई थी। पत्नी ने बताया, “तरुण को कई
दिनों से सर दर्द हो रहा है। लगातार टायलोनॉल की गोलियों से
काम चला रहा है।“ मैंने राहत की साँस ली। कालेज में पढ़ते
नवयुवक कब गलत संगत में पड़ जायें, पता नहीं चलता। वैसे तो
तरुण अपने पर संयम रखता है, पर जब किसी धुन में लग जाता है,
तो आगा पीछा कुछ नहीं सोचता।
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अनुभूति
में-
योगेंद्र राही, संजय ग्रोवर, आग्नेय, हुल्लड़ मुरादाबादी और अंबरीष
श्रीवास्तव की नई
रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ- अखबार में खबर है कि बंदर मनुष्य की तरह अपनी
भूलों से सीखने की प्रवृत्ति रखते हैं। शिकागो ड्यूक यूनिवर्सिटी... आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
चीनी के डिब्बे में ५-६ लौंग डाल दी जायें तो उसमें चींटिया नही
आयेंगी। |
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पुनर्पाठ
में - १५ अप्रैल २००१ को प्रकाशित चंद्रमोहन प्रधान की
कहानी खिड़की। |
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क्या आप जानते हैं?
कि विश्व में नीबू के उत्पादक देशों में
भारत
का नाम सर्वोपरि है। |
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शुक्रवार चौपाल-
१५ मई को तीन रचनाओं का पाठ होना था। निर्मल वर्मा की कहानी "डेढ़
इंच ऊपर" और अंतोन चेखव के दो एकांकी...
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सप्ताह का विचार- बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से
सीखना पड़ता है। --निर्मल वर्मा |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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नवगीत की
पाठशाला- जहाँ नवगीत लिखने, पढ़ने, सीखने और सिखानेवालों का
स्वागत है। |
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