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 २९. १२. २००८

इस सप्ताह नव वर्ष विशेषांक में-
भारत से श्रवण कुमार गोस्वामी
की कहानी बालेसर का नया साल
बालेसर को आज जितने भी यात्री मिले, उसने सबके हाथ में खाने-पीने के भाँति-भाँति के सामान, मुर्गे, चूज़े, विदेसी शराब की बोतलें और मिठाइयों के डब्बे ही देखे। वह समझ नहीं पा रहा था कि आज हर आदमी इन्हीं चीजों की खरीददारी क्यों कर रहा था। न तो आज होली है और न कोई परब-तेहवार। बालेसर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। सीट पर बैठते ही उसका यह सब सोचना खुद रुक गया। अब उसका ध्यान रास्ते की भीड़-भाड़ पर था। कोई आधा घंटा तक लगातार रिक्शा चलाने के बाद बालेसर गांधी नगर पहुँच गया। रिक्शा से उतर कर यात्री ने पूछा-'कितना हुआ?'
आज सुबह से ही बालेसर का धंधा काफी अच्छा चल रहा है। उसके रिक्शे से एक सवारी उतर भी नहीं पाती है कि उसे अलग सवारी तुरंत मिल जाती है। उसके मन में एक बात बार-बार उठ रही थी कि ऐसा तो हर दिन नहीं होता था। आज ज़रूर उसने सुबह किसी अच्छे आदमी का मुँह देखा है जिसके कारण आज उसका काम बढ़िया चल रहा है। आगे पढ़ें...

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डॉ. रामनारायण सिंह मधुर का व्यंग्य
नया साल ऐसे मना

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नए साल के उपलक्ष्य में
पर्व पंचांग - २००९

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पिछले सभी वर्षों के नववर्ष विशेषांकों का संग्रह
नववर्ष विशेषांक समग्र

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साहित्य समाचार में
अभिज्ञात के उपन्यास 'कला बाजार' और 'सद्भावना द्वारा प्रकाशित हिंदी के कविता संकलन 'बौछार' और हिन्दी-नार्वेज़यन पत्रिका "स्पाइल-दर्पण",
का लोकार्पण,
नेशनल बुक ट्रस्ट, 'हाइकु दिवस' और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव के समारोह तथा डॉ. कृष्ण कुमार और प्रो. श्याम मनोहर पांडेय का सम्मान

 

पिछले सप्ताह

भावना वर्मा का व्यंग्य
होना न होना नाक का

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रतिलाल अनिल का ललित निबंध
आटे का सूरज

कथा महोत्सव- २००८
अंतिम तिथि ३१ दिसंबर २००८

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पर्यटन में नंद नंदन सनाढ्य का आलेख
काठमांडू के स्वयंभूनाथ

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स्वदेश राणा का नगरनामा
तआरुफ़ अपना बकलम ख़ुद : न्यूयॉर्क

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समकालीन कहानियों में भारत से
दीपक शर्मा की कहानी चमड़े का अहाता
शहर की सबसे पुरानी हाइड-मार्किट हमारी थी। हमारा अहाता बहुत बड़ा था। हम चमड़े का व्यापार करते थे।
मरे हुए जानवरों की खालें हम ख़रीदते और उन्हें चमड़ा बनाकर बेचते। हमारा काम अच्छा चलता था। हमारी ड्योढ़ी में दिन भर ठेलों व छकड़ों की आवाजाही लगी रहती। कई बार एक ही समय पर एक तरफ. यदि कुछ ठेले हमारे गोदाम में धूल-सनी खालों की लदानें उतार रहे होते तो उसी समय दूसरी तरफ़ तैयार, परतदार चमड़ा एकसाथ छकड़ों में दबवाया जा रहा होता। ड्योढ़ी के ऐन ऊपर हमारा दुमंज़िला मकान था। मकान की सीढ़ियाँ सड़क पर उतरती थीं और ड्योढ़ी व अहाते में घर की औरतों व बच्चों का कदम रखना लगभग वर्जित था। हमारे पिता की दो पत्नियाँ रहीं।
भाई और मैं पिता की पहली पत्नी से थे। हमारी माँ की मृत्यु के बाद ही पिता ने दूसरी शादी की थी।
सौतेली माँ ने तीन बच्चे जने परंतु उनमें से एक लड़के को छोड़कर कोई भी संतान जीवित न बच सकी। मेरा वह सौतेला भाई अपनी माँ की आँखों का तारा था। वे उससे प्रगाढ़ प्रेम करती थीं। मुझसे भी उनका व्यवहार ठीक-ठाक ही था। पर मेरा भाई उनको फूटी आँख न सुहाता।

 

अनुभूति में-
जन्मदिन का उत्सव और विभिन्न विधाओं में नव वर्ष की एक सौ पैसठ सुंदर रचनाएँ

 
कलम गही नहिं हाथ- इस अंक के साथ यह साल हमसे विदा ले रहा है और अगले अंक से पहले  नया साल शुरू हो चुका होगा इसलिए नववर्ष के उपलक्ष्य कुछ नए परिवर्तनों के साथ प्रस्तुत है नव वर्ष विशेषांक.... आगे पढ़े
 
रसोई सुझाव- सख्त नींबू या संतरे को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।
 

नौ साल पहले-
१५ अगस्त २००० के अंक में
उषा राजे सक्सेना की कहानी शुकराना

 

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- गोविन्द मिश्र

 

क्या आप जानते हैं? सन २००८ के लिए हिन्दी का साहित्य अकादमी पुरस्कार सुप्रसिद्ध लेखक गोविंद मिश्र को प्रदान किया गया है।

 
सप्ताह का विचार- मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। -ऋग्वेद
 


हास परिहास

 

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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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