इस
सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
अमरेंद्र मिश्र की कहानी
जोगिया शाम
यह
शाम फिर मेरे क़रीब है। सोचता हूँ कि इसे
किसी तरह मनाऊँ और कहूँ कि यह यहाँ से चला जाए और फिर कभी न आए।
दुनिया की तमाम घड़ियों में समा जाए और गुम हो जाए। फिर एक गुमनाम
शाम का आखिर वजूद ही क्या है? जब कभी मैं बाहर से हारा-थका आता हूँ
तो इसे यहीं पाता हूँ... यहीं अपने आस-पास और पूछता हूँ कि तुम
चुपचाप क्यों हो। वह ठिठक जाती है। उसकी ठिठकन देखकर मुझे चिमकेन और
तराज के रास्ते खड़े वे स्तूप याद आते हैं जो अपने बीते दिनों के
साक्षी हैं। उनकी आवाज़ वक्त के गुबार में कहीं खो गई लगती है।
अलमाटी से चिमकेन या तराज जाएँ तो ऐसे कई स्तूप मिलते हैं- अपनी
बाँहें फैलाए। ये स्तूप दूर से आपको बुलाते हुए नज़र आते हैं। पास
जाएँ तो कुछ कहने के प्रयास में ठिठके नज़र आते हैं। बीते समय के
साक्षी इन स्तूपों को देखकर वक्त के छूटे पाँव के निशान पढ़े जा सकते
हैं। इसी तरह कोई मकबरा, कोई पहाड़नुमा टीला या फिर ढलान से उतरती
कोई पगडंडी, कोई गुमनाम राह, ठूँठ हो चुका कोई बूढ़ा पेड़,
जीर्ण-शीर्ण हो चुका कोई भुतहा बंगला, कोई बाँझ नदी जिसका प्रवाह कभी
था ही नहीं...
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अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
गया
मेंढक कुएँ में
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कमलेश भारतीय की
लघुकथा
विश्वास
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घर परिवार में अर्बुदा ओहरी का संकलन
वास्तु और फेंगशुई के कुछ
सुझाव
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रसोईघर में तैयार हो रही हैं
काजू कतली
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पिछले सप्ताह
समीर लाल का व्यंग्य
यह कैसा उत्सव रे भाई
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कौस्तुभानंद पांडेय
का आलेख
हिंदी के पहले कवि गुमानी पंत
रंगमंच में किशोर महांति से जानकारी
उड़ीसा की नाट्य परंपरा
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रंजना सोनी का नगरनामा
आनंद का सागर ट्रांधाईम
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समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से सुषम बेदी की कहानी
चट्टान के ऊपर
चट्टान के नीचे
डोरा जानसन ने कैशियर को पैसे
चुका कर सामान के थैलों की और देखा तो आँखों से ही बोझ का
अनुमान करने लगी। सामान कुछ ज़्यादा ही ले लिया था। उठाने में
थोड़ा बोझ लगा ही था कि कैश रजिस्टर पर खड़ी लड़की ने अपने
पीछे खड़े एक काले लड़के की ओर इशारा कर कहा कि मदद चाहिए तो
यह लड़का आपके साथ चला जाएगा। एक दो डालर टिप कर देना। लड़की
ने बताया कि ये लड़के इन्हीं कामों के लिए आ जाते हैं और
थोड़ी-सी टिप लेकर जैसी मदद चाहिए हो कर देते हैं। चट्टान वाली
सड़क समतल नहीं थी। थोड़ी चढ़ाई चलनी पड़ती थी। डोरा ने शुक्र
मनाया कि चलो मदद हो जाएगी और यह लड़का भी कुछ कमा लेगा। वह
उसे अच्छी टिप दे देगी।
रास्ता चलते-चलते वह उनसे बात करने लगी। उसका एक दोस्त भी साथ
चल रहा था।
डोरा ने पूछा, ''कितने साल के हो?''
''१४ साल।''
''पढ़ते हो?''
''हाँ यहीं पब्लिक स्कूल में।''
''कौन-सी क्लास में?'' |
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अनुभूति
में-
मदन मोहन 'अरविंद', रामानुज त्रिपाठी, अमर ज्योति
'नदीम', विजय कुमार सप्पत्ति, मुकेश पोपली की नई रचनाएँ |
कलम गही नहिं हाथ-
हर साल २ दिसंबर के दिन इमारात दिवस मनाया जाता है। ३६ साल पहले १९७१ में
इसी दिन संयुक्त अरब इमारात की स्थापना हुई थी जब ६ इमारातों ने मिलकर
शेख जायद बिन सुल्तान अल नह्यन के नेतृत्व में संयुक्त रूप से विकास की
ओर कदम बढ़ाए थे। ये ६ इमारात थे अबूधाबी, दुबई, शारजाह, अजमान, फ़ुजैरा
और उमलक्वेन। एक साल बाद एक और छोटी रियासत इसमें शामिल हुई जिसका नाम
रसलख़ैमा है। आज संयुक्त अरब इमारात में ये ७ इमारातें हैं। इनके
राष्ट्रीय विधानमंडल में हर इमारात के प्रतिनिधि होते हैं, जो शासकों की
उच्चतम मंत्रिपरिषद के लिए मतदान करते हैं। पिछले २० वर्षो में इमारात ने
जैसी प्रगति की है उसने संपूर्ण विश्व को आकर्षित किया है। पाश्चात्य
सभ्यता और संस्कृति की हवा यहाँ भी आई है पर अरबियों ने मेहनत से अपनी
संस्कृति और भाषा सहेजी है। यहाँ बहुत से लोग अमेरिकी विश्वविद्यालयों
में पढ़ने या शौक के लिए अंग्रेज़ी सीखते हैं लेकिन डाक्टर,
इंजीनियर या प्रबंधन में ऊँची से ऊँची डिग्री लेने के लिए
किसी को विदेशी भाषा सीखने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने सबकुछ अपनी भाषा
में विकसित किया है। इससे हम सबक ले सकते हैं। अहिंदी क्षेत्रों को छोड़
भी दें तो भारत के हिन्दी क्षेत्रों में शिक्षा के लिए हिंदी के विकास पर
ध्यान नहीं दिया गया है। यही कारण है कि साहित्य और पत्रकारिता के बाहर आज पढ़े लिखे लोगों में अच्छी
हिंदी जानने वाले बहुत ही कम हैं। --पूर्णिमा वर्मन
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क्या आप जानते हैं?
कि पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में मलयालम कवि गोविन्द शंकर
कुरुप को दिया गया था। |
सप्ताह का विचार- जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली
परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता वे ही सच्चे धीर पुरुष
होते हैं। --कालिदास |
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