SHUSHA HELP /लेखकों से/ UNICODE  HELP
केवल नए पते पर पत्रव्यवहार करें


     16. 12. 2007

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घाकविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व-पंचांग
घर–परिवार दो पल नाटकपरिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक
विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरणसाहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य
हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
त्रिलोचन की कहानी सोलह आने
मैंने दुकान के नौकर से कहा कि तुम्हारे कितने पैसे हुए? उसने पूछा कि आपने पूड़ियाँ कितनी लीं? मैंने बताया तीन छटांक। तब उस नौकर ने कहा कि पूड़ियों के तो छ: पैसे हुए। मैंने उसकी बात अच्छी तरह समझकर कहा कि और शाक के? तब उसने हँसकर पूछा कि शाक आपने कितनी बार लिया? परोसने वाले नौकर ने हँसकर कहा कि दो बार। मैंने कहा कि ठीक है, दो बार। तब उसने बताया कि शाक के दो पैसे हुए। अत: मैं आठ पैसे देकर चला गया। मेरे चार पैसे बच गए। होटल में तो सब खर्च हो जाते। ठीक किया न?'' कमल झल्लाया, ''अजीब बुद्धू हो। दो पैसे फिजूल में लुटा आए और पूछते हो कि ठीक किया न?''

*

हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन के ये अखबार निकालने वाले 
चूँकि किसी के मुँह पर तो लिखा नहीं रहता कि ये अखबार निकालते हैं सो वे अपने स्कूटरों पर "प्रेस" लिखवा लेते हैं - बड़े-बड़े मोटे-मोटे अक्षरों में। इस प्रेस का यह मतलब नहीं है कि हम अख़बार वाले हैं अपितु इसका मतलब है कि हम अख़बार निकाल सकते हैं। ट्रैफिक के कान्स्टेबलों, वर्जित क्षेत्र में प्रवेश कराने वालों, स्कूटर चुराने वालों, अगर पढ़ सकते हों तो पढ़ लो कि हम वो हैं जो अख़बार निकाल सकते हैं। नहीं निकाल रहे यह हमारा अहसान है। यह लोकतंत्र का चौथा पाया है जो हमने ऊपर उठा रखा है अभी। इसलिए- हे तीन हिस्सों, हमें टिकने को मजबूर मत करो। तुम अपनी मन मर्जी करो और हमारा ध्यान रखो, नहीं तो हम टिक जाएँगे।

*

साहित्यिक निबंध में
अनंतकीर्ति तिवारी की विस्तृत विवेचना त्रिलोचन की कविता
हिंदी की प्रगतिशील काव्यधारा के एक महत्वपूर्ण कवि त्रिलोचन की कविता अनुभूति और अभिव्यक्ति, दोनों ही स्तरों पर समृद्ध है। साधारणजन कवि की कविता में विशेष आत्मीयता और गौरव प्राप्त करता है। लोक और भारतीय किसान के अंतर्मन को गहरे स्पर्श करने वाला यह कवि अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों, खादी संस्कारों से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। प्रेम, प्रकृति, जीवन-सौंदर्य, जीवन-संघर्ष, मनुष्यता इन कई आयामों को अपने में समेटते हुए कवि की कविता का फलक व्यापक है। कवि की कविता जटिलता, कृत्रिमता के आग्रह से मुक्त, उसके व्यक्तित्व की ही तरह सहज है। उसमें सामान्य मनुष्य की वेदना को प्रखर अभिव्यक्ति मिली है।

*

संस्मरण में अनिल जनविजय की कलम से
नेह, बतरस और कविताई- याद त्रिलोचन की

त्रिलोचन जी नहीं रहे। यह ख़बर इंटरनेट से ही मिली। मैं बेहद उद्विग्न और बेचैन हो गया। मुझे वे पुराने दिन याद आ रहे थे, जब मैं करीब-करीब रोज़ ही उनके पास जाकर बैठता था। बतरस का जो मज़ा त्रिलोचन जी के साथ आता था, वह बात मैंने किसी और कवि के साथ कभी महसूस नहीं की। गप्प को सच बना कर कहना और इतने यथार्थवादी रूप में प्रस्तुत करना कि उसे लोग सच मान लें, त्रिलोचन को ही आता था। नामवर जी त्रिलोचन के युवावस्था के मित्र थे, सो उनकी ज़्यादातर गप्पों के नायक भी वे ही होते थे। शुरू में जब मुलाकात हुई थी तो मैं उनकी बातों को सच मानता था लेकिन बाद में पता लगा कि ये सब उनकी कपोल-कल्पनाएँ थीं।

*

ललित निबंध में
महेश परिमल की तरल दृष्टि रिश्ते बोझ नहीं होते
मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह अपनों के बीच रहता है। इनमें कभी बेगानापन नहीं होता। जिस लम्हा इंसान इंसान के साथ बेगानापन समझे, तभी से उसके भीतर रिश्तों को लेकर एक भारीपन आ जाता है। यही भारीपन ही आगे चलकर बोझ बन जाता है। माँ के लिए गर्भ में पलने वाला मासूम कभी बोझ नहीं होता। माँ का हृदय इतना विशाल होता है कि वह उस नन्हे को बोझ समझ ही नहीं सकती। रिश्ते कभी बोझ नहीं हो सकते। रिश्ते तभी बोझ हो जाते हैं, जब हमारा स्वार्थ रिश्तों से बड़ा हो जाता है। स्वार्थ के सधने तक रिश्तों को महत्व देने वाले यह भूल जाते हैं कि यही व्यवहार यदि सामने वाला कभी उनसे करे, तो क्या होगा?

 

अनुभूति में

त्रिलोचन, चकबस्त,  अमिता तिवारी,
दीपक भारतदीप
तथा

गिरीश बिल्लौरे मुकुल की नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
9 दिसंबर 2007 के अंक मे
*

समकालीन कहानियों में
भारत से राजेंद्र त्यागी की कहानी
हीरामन

*

हास्य-व्यंग्य में
अविनाश वाचस्पति का
सकारात्मक दृष्टिकोण

*

घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी की दाँतों से दोस्ती

महिलाएँ एक दिन में औसतन 62 बार मुसकुराती हैं, पुरुष 8 बार और बच्चे 400 बार, यह बात हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई। मुसकुराता चेहरा किसे आकर्षक नहीं लगता? और स्वच्छ-स्वस्थ दाँत सुन्दर मुस्कुराहट में चार चाँद लगा देते हैं। अमेरिका में किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में पता लगा कि 83 प्रतिशत लोग चेहरे की सुंदरता के मामले में दाँतों को बालों और आँखों से भी अधिक महत्व देते है। यह स्वाभाविक ही है क्यों कि दाँतों से चेहरे की माँसपेशियों को आकार तथा सहारा मिलता है। दाँत खाने को पचाने में भी सहायक होते हैं। कुल मिलाकर यह कि शरीर को स्वस्थ और सुंदर बनाए रखने के लिए दाँतों से दोस्ती ज़रूरी है।

*

प्रेरक प्रसंग में
सीताराम गुप्ता की लघुकथा
दोगुना शुल्क

*

रसोईघर में
शाकाहारी मुगलई के अंतर्गत
दाल मक्खनी

*

पुराने अंक
*

सप्ताह का विचार
मनुष्य अनुकरण करने वाला प्राणी है और जो सबसे आगे जाता है
वही नेतृत्व करता है।
--चाणक्य

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की नियमित
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग
घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक
विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरणसाहित्य समाचार
साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्य

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

     

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

blog stats