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कमलनारायण ने आग्रहपूर्वक कहा कि
''आज तुम भी यहीं खाओ। वरुण है... बना लेगा।''
''अच्छा...'' मैंने स्वीकार कर लिया।
दुमंज़िले की ओर देखकर कमलनारायण चिल्लाया।
''वरुण, ओ वरुण!''
''आया।'' वरुण की आवाज़ आई, उसके पीछे वह स्वयं।
''क्या है?''
''आज तीन आदमियों के लिए खाना बनाना। देवल भी यहीं खाएगा।''
''तीन...? '' वरुण बोला।
''हाँ।''
''एक बात है...''
''क्या।''
''आटा, दाल, चावल... सब खतम।''
''कोई बात नहीं। पैसे दे दो। देवल ले आएगा।''
वरुण मुसकराया। बोला, ''पैसे भी तो नहीं हैं।''
कमल ने मेरी ओर देखा और हँस पड़ा। |