इस
सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
भारत से तरुण भटनागर की
हैलियोफ़ोबिक
कैंप
भयंकर और निर्दयी लोगों की बस्ती था। ग़रीबी और भुखमरी के कारण पागल और
लुटेरे बने निर्मम लोग। जहाँ किसी का मरना खुशी लाता था।लोग हत्या और लूट
के लिए हमेशा तैयार रहते। इस कैंप को देखकर यकीन करना मुश्किल था, कि ये
सब लोग अच्छे घरों से थे। शांत और अच्छे घरों वाले लोग, जो छोटी-छोटी
इच्छाएँ पालते हैं और यकीन करते हैं कि वे और उनके माँ-बाप,
भाई-बहन...कभी मरेंगे नहीं।पर यहाँ उनकी औरतों और बच्चों को कुत्तों की
भाँति लाठियों से पीटकर मार डाला जाता था और उन्हें इससे ज़्यादा फ़र्क
नहीं पड़ता था। कुछ लोग आत्महत्या कर लेते, ज़्यादातर नये लोग...पर अधिकतर
ऐसा नहीं कर पाते थे।
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हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन बता रहे हैं ख़ास बनने का
नुस्ख़ा
कुछ
लोग जीते जी महानता को प्राप्त हो जाते हैं। कुछ लोगों को उसके लिए मरना
पड़ता है। मर जाने पर प्रत्येक का महान हो जाना स्वाभाविक होता है। भले
ही महानता की सीमा श्मशान घाट और शोक सभा की समय सीमा तक ही रह पाती हो।
कुछ की स्वाभाविक मौत तक समाचार बन जाती है भले ही वह चार पंक्तियों वाले
संक्षिप्त समाचार तक ही सीमित हो जिसमें देश में उनके नहीं रहने व उम्र
का उल्लेख होता है और दो में उनके नामों का ज़िक्र जो उनकी मौत पर दुख
व्यक्त करने के लिए ज़िंदा बने हुए हैं व खुश हैं क्योंकि उनका नाम दुख
व्यक्त करने वालों की सूची में छप गया है। अख़बार वालों ने किसी भी कारण
सही नाम तो छापा।
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दृष्टिकोण में महेशचंद्र द्विवेदी के विचार
ग्लॉस्गो धमाके के बाद
अप्रवासी भारतीयों की स्थिति
बीसवीं
सदी के छठे एवं सातवें दशक में प्रतियोगी परीक्षाओं में सबसे ज़्यादा पूछा
जाने वाला सवाल होता था 'भारत से विदेश को होने वाला ब्रेन-ड्रेन भारत के
भविष्य के लिए हानिकारक है या नहीं।' इस बारे में तभी से मेरा मत रहा है कि
यह लाभदायक है। इसका कारण यह था कि भारत में ब्रेन की कोई कमी नहीं थी, परंतु
उसके समुचित उपयोग के अवसर इतने ख़राब थे कि यहाँ जो ब्रेन बेकार साबित होता
था, वही विदेश जाकर कमाल दिखाता था। भारत के मेडिकल कॉलेजों, आई.आई.टी.,
आई.आई.एम. में प्रशिक्षित ब्रेन्स ने आज पाश्चात्य देशों में भारत की धाक जमा
दी है।
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संस्कृति में कटरपंच दंपत्ति की लेखनी से
ब्रज
में सावन के हिंडोलों की छटा
ब्रज की संस्कृति निराली है और साहित्य
अनूठा है। स्वभाव से ब्रजवासी अत्यंत विनम्र और मधुर होते हैं और ऐसी ही होती
है उनकी संस्कृति, उनकी भाषा और उनका व्यवहार। श्रावण मस्ती का महीना है।
धरती ने जब हरी साड़ी पहन ली तो किस नवयौवना का मन नहीं मचल उठेगा। आकाश में
उमड़ते, घुमड़ते और गरजते बादलों में अनेक प्रकार की भावनाएँ प्रकट होती हैं।
सावन के महीने में नवविवाहित महिलाओं को अपने मायके जाने की परंपरा ब्रज
क्षेत्र की संस्कृति में अधिक परिलक्षित होती है, जो आज भी अनवरत रूप से चली
आ रही है।
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आज सिरहाने मधुलता अरोरा प्रस्तुत कर रही हैं
तेजेंद्र शर्मा का कविता संग्रह ये घर
तुम्हारा है
चर्चित
कथाकार तेजेंद्र कथाकार ही नहीं हैं बल्कि कविता, ग़ज़ल के क्षेत्र में भी
अपनी उपस्थिति पूरी शिद्दत से दर्ज कराते हैं। उनके अनुसार गद्य और पद्य में
अंतर दिखना चाहिए। यही वजह है कि उनका मन तुकांत कविताओं और ग़ज़लों में खूब
रमता है। प्रवासी लेखकों की भाँति वे सिर्फ़ अतीत की ही बात नहीं करते, बल्कि
जिस देश में वे रह रहे हैं, वहाँ की गतिविधियों से भी वास्ता रखते हैं और ये
सभी सरोकार उनके कविता - संग्रह ये घर तुम्हारा है में खुलकर सामने आये हैं।
कविता एवं ग़ज़लों की सरल भाषा सहज ही पाठकों को एक बार में ही पूरी पुस्तक
पढ़ने के लिए विवश कर देती है।
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