वह उसी कैंप से आता था। वह सुंदर
था। बहुत सुंदर।
लड़के कहाँ इतने सुंदर होते हैं।
कैंप भयंकर और निर्दयी लोगों की
बस्ती था। ग़रीबी और भुखमरी के कारण पागल और लुटेरे बने निर्मम
लोग। जहाँ किसी का मरना खुशी लाता था। लोग हत्या और लूट के लिए
हमेशा तैयार रहते।
इस कैंप को देखकर यकीन करना
मुश्किल था, कि ये सब लोग अच्छे घरों से थे। शांत और अच्छे
घरों वाले लोग, जो छोटी-छोटी इच्छाएँ पालते हैं और यकीन करते
हैं कि वे और उनके माँ-बाप, भाई-बहन...कभी मरेंगे नहीं। पर
यहाँ उनकी औरतों और बच्चों को कुत्तों की भाँति लाठियों से
पीटकर मार डाला जाता था और उन्हें इससे ज़्यादा फ़र्क नहीं
पड़ता था। कुछ लोग आत्महत्या कर लेते, ज़्यादातर नये लोग...पर
अधिकतर ऐसा नहीं कर पाते थे।
वो 1988 की गर्मियाँ थीं। मैं
उस दिन पाकिस्तान में पेशावर के पास था। कैंप में दूर-दूर तक
लगे मटमैले, फटे और जोड़कर खड़े किए गए तंबू, जो धूल भरी गर्म
हवा की फुफकार के साथ कंपकंपाते थे और कभी-कभार लाइनों से गिर
जाते एक बेतरतीब, मनहूस और निर्मम बस्ती की तरह थे। |