कथा महोत्सव
२००२
प्रवासी भारतीय लेखकों की कहानियों के
संकलन
वतन से दूर
में प्रस्तुत है यू ए ई से कृष्ण बिहारी की कहानी
जड़ों से कटने पर
आठ
साल इस तरह निकल गए कि कुछ पता ही नहीं चला। लेकिन ये छह–सात घंटे
जिस तरह बता–बताकर गुजर रहे थे उनसे अजीब–सी उलझन होने लगी थी।
बार–बार एक बेतुका ख्याल भरता कि हिन्दुस्तान में यदि कत्ल भी कर
दिया होता तो इतनी मानसिक यातना से गुजरना नहीं पड़ता। झूठे आरोप
पर परेशान होने का तो प्रश्न ही नहीं था। पहली बार एहसास हुआ कि
अपने देश के अंदर आदमी की अपनी और जड़ों की जो ताकत होती है वह
दूसरे देश में कोई औकात नहीं रखती।
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यूके से शैल अग्रवाल की
कहानी
वापसी लंदन
सोता नहीं, पर चन्द सोए लोग जगें, इसके पहले ही हेमंत उठ जाता है .
. . ताजी, अनछुई हवा को सीने में समेटे . . . उस ठंडी सिहरन से होठ
और गाल सहलाता हुआ और फिर उस कुहासे में दौड़ते हुए ही पूरे दिन की
रूप–रेखा बना लेता है . . . स्पष्ट और साफ–साफ।
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यू एस ए से सुरेन्द्रनाथ तिवारी की कहानी
उपलब्धियाँ
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कनाडा से अश्विन गांधी की कहानी
अनजाना सफर
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अगले अंक में
नार्वे से डा सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' की कहानी
!मंजिल
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