साहित्य संगम में
डा
सच्चिदानंद राउतराय की उड़िया कहानी का हिन्दी रूपांतर
जंगल
इस जंगल का कोई खास
नाम नहीं। पूरा इलाका ही करमल कहलाता है। फिर भी स्थानीय लोग पास
वाले हिस्से को बेरेणा लता कहते हैं। नटवर फॉरिस्ट गॉर्ड बनकर इधर
आया है। दो वर्ष में ही यहा अच्छी तरह आसन जमाकर बैठ गया है। जंगल
के ठेकेदार के साथ उसकी सुलह है। कुचला का ठेका लिया है
लेकिन बड़े बड़े साल पी साल काटकर ट्रक में भर ले जाते हैं।
कहानियों में
शरद आलोक की कहानी
मदरसों के पीछे
नगर
से दूर धार्मिक मदरसे में श़ाहनाज़ पढ़ाती है। वह इसी मदरसे में
रहती है। वह सुबह दूर पीने का पानी भरने जाती है, रास्ते के
टीले पर बने घर के पास आशा भरी दृष्टि से देखती है। उसका मंगेतर
दोसाबीन यहीं रहता था। परन्तु बहुत दिन से वह दिखाई नहीं दिया।
श़ाहनाज़ वहा खड़ी हऋर सऋाने लगी वह अतीत के पृष्ठ क
पलटकर पढ़ने लगी। वह श़ाहनाज़ क बुलबुल कहकर सम्बधत करता था।
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