इस जंगल का कोई ख़ास नाम
नहीं। पूरा इलाका ही करमल कहलाता है। फिर भी स्थानीय लोग पास
वाले हिस्से को बेरेणा-लता कहते हैं। नटवर फॉरिस्ट-गॉर्ड बनकर
इधर आया है। दो वर्ष में ही यहाँ अच्छी तरह आसन जमाकर बैठ गया
है। जंगल के ठेकेदार के साथ उसकी सुलह है। कुचला का ठेका लिया
है, लेकिन बड़े-बड़े साल, पी-साल काटकर ट्रक में भर ले जाते
हैं। सुना तो यहाँ तक जाता है कि नटिया मोटी रकम लेकर उन्हें
छोड़ देता है या फिर जाली चालान दे देता है, यह बात रेंजर बाबू
से कई बार कही जा चुकी है। कितनी ही रिपोर्ट ऊपर भेजी गई हैं,
लेकिन कुछ नहीं होता। लोगों का कहना है कि नटिया की जेब में
हैं ऊपर वाले। हालाँकि जंगल इसी बीच साफ़ होता जा रहा है। कोई
उसका बाल बाँका नहीं कर सकता। नटिया रूपास गाँव में चाय की
दुकान के आगे बेंच पर बैठा चाय पीते-पीते मूँछों पर ताव देता
है - "देखेंगे, कौन साला मेरा क्या बिगाड़ लेगा! इस लट्ठ से
खोपड़ा खोल दूँगा।"
उस गाँव का डाकिया भ्रमर पर
अधिक नाराज़ है। कभी-कभी सोचता है- पीट-पीटकर मार डालूँ और लाश
लेकर जंगल में फेंक आऊँ। किसी को पता भी नहीं चलेगा। थाने में
जमादार बाबू के साथ बैठ-उठ है उसकी। एक-दो बार बुलाकर
थाना-बाबू ने लकड़ी की चोरी के बारे में पूछताछ की है। नटिया
की कैफियत से वे सन्तुष्ट हैं - ।
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