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						1फड़
 
						भारत की 
						समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर 
						से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला 
						दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों 
						की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है 
						फड़ के 
						विषय में -  
 फड़ राजस्थान में भीलवाड़ा ज़िले की विशेषता है और 
						भीलवाड़ा ज़िले की भोपा जनजाति की विरासत भी। ये चित्र 
						केवल कलाकृति नहीं है बल्कि कला, संगीत और साहित्य की एक 
						सम्पूर्ण संस्कृति है, जिसे वे फड़ पर चित्रित करते
						और गीतों में बाँचते हैं। चित्र और गीत दोनों को ही फड़ 
						कहा जाता है। भारतीय संस्कृति की इस ऐतिहासिक धरोहर को
						वर्षों से उन्होंने अपनी परंपरा में संभाल कर रखा और 
						विकसित किया है।  फड़ में आयताकार कपड़े पर स्थानीय राजाओं पबूजी और 
						रामदेवजी के जीवन की घटनाओं को विस्तृत रूप से 
						चित्रित किया जाता है। आकार में लगभग पाँच मीटर लंबे और 
						डेढ़ मीटर चौडे इस सूती या रेशमी कपड़े पर लाल,
						नारंगी, काले, गहरे हरे जैसे चटक रंगों का प्रयोग होता है। 
						पहले बाहरी किनारे को ठप्पों की सहायता से बनाया जाता है
						बाद में भीतर की ओर कथा की विस्तृत घटनाओं को बनाया जाता 
						है। दोनों ओर बाँस का दंडनुमा आधार बनाया 
						जाता है जिसपर इसको लपेट कर रखा और ले जाया जा सके। 
 आधुनिक फड़ में महाकाव्यों के नायकों और देवताओं के 
						जीवनचरित्र को भी चित्रित किया जाने लगा है। इनका 
						आकार भी पर्यटकों की सुविधा के लिये छोटा बनाया जाने लगा 
						है। फड़ की कलाकृतियाँ राजस्थली अथवा राजस्थान 
						हस्तकला के किसी भी प्रतिष्ठान से खरीदी जा सकती हैं।
						इस चित्रकला के साथ ही जुड़ा है लोक संगीत का वह शास्त्र 
						जिसमें नायकों की वीरता का वर्णन मिलता है। भोपों द्वारा
						विशेष रूप से गाए जाने वाले इस संगीत में विशेष वाद्यों को 
						प्रयोग होता है।
 
  'जंतर' जिसे बाँस की तीलियों के बीच दो तार बाँध कर बनाया 
						जाता है तथा रावणहत्था जो सांरगीनुमा एक वाद्य है,
						पर इस गीत को गाते हुए त्योहारों और मेलों में की शोभा 
						बढ़ाते, एक गाँव से दूसरे गाँव घूमते पारंपरिक वेशभूषा में
						सजे भोपों का सौंदर्य देखते ही बनता है। साथ में रहता है 
						दोनों ओर बाँस के सहारे तना हुआ ध्वजा की तरह 
						शोभायमान फड़ का चित्र जिससे यह कला और संगीत प्रेमी 
						यायावर जनजाति दूर से ही पहचानी जा सकती हैं।
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