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समकालीन कहानियों में होली
-राहुल देव
होली
भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसकी लोग बड़ी
उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। बाल-वृद्ध, नर-नारी
सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। सभी एक दूसरे से
हँसी-मजाक कर लेते हैं, कोई किसी की बात का बुरा नहीं
मानता। इसके रंगों में रंग कर हम जीवन की तमाम खुशियों
को आत्मसात कर लेते हैं। कवियों ने भी होली पर बहुत
सारी कविताएँ लिखीं हैं, फिल्मों में भी होली के
दृश्यों और गीतों को सुंदरता के साथ चित्रित किया गया
है इसी तरह हिंदी कहानियों में भी होली के अलग-अलग रूप
देखने को मिलते हैं।
होली रंगों का त्यौहार है और एक छोटे स्तर पर पेंटिंग
जैसे व्यवसाय करने वाले समाज के कुछ लोगों के लिए इस
पर्व का एक रंग किस तरह से उनके जीवन में आता है इसके
एक स्याह पक्ष को प्रभु जोशी ने अपनी कहानी ‘अलग अलग तीलियाँ’
में बहुत ही सटीक तरह से हमारे सामने रखा है। कम्मू
पेंटर के भौतिक रंगों की दुनिया के बरक्स उसके जीवन की
दुनिया के रंग फीके से ही हैं। रोजाना की समस्याओं से
दो-चार होना, व्यवसाय की प्रतियोगिता और आधुनिक तकनीक
के कारण जीविका पर आ पड़े संकट के कारण वैकल्पिक
रोजगार की तलाश में भटकाव को रचनाकार की मुहावरेदार
भाषा ने बहुत सफलता से चित्रित किया है। पठनीयता और
किस्सागोई के धरातल पर कहानी पूरी तरह पाठक को जोड़ती
है। केन्द्रीय कथानक के साथ-साथ कहानी कई अन्य सामाजिक
विसंगतियों की ओर भी इशारा करती चलती है तथा मेहनतकश
वर्ग के उस जीवनसंघर्ष की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू
कराती है जिनके लिए त्यौहारों के आने या न आने से कोई
फ़र्क नहीं पड़ता।
ओमप्रकाश
अवस्थी की कहानी ‘होली
मंगलमय हो’ की कथावस्तु होली की पूर्वसंध्या से
शुरू होती है, जब लेखक, नशे में धुत शर्मा जी नाम के
एक व्यक्ति से संयोगवश टकरा जाता है। लेखक मानवता के
नाते उन्हें उनके घर तक छोड़ने जाता है, जहां उसे पता
चलता है कि होली का सामान खरीदने निकल शर्मा जी ने सब
पैसे शराब पर खर्च कर दिये। उनकी पत्नी व बच्चों को
विलाप करते देखकर लेखक अपने मन ही मन में एक योजना
बनाकर उनकी मदद करता है। धीरे-धीरे कहानी अपने सुखद
अंत की ओर उन्मुख होती है। अगले वर्ष होली आने तक सारा
क़र्ज़ उतर जाता है और शर्मा जी की बुरी आदतें व स्वभाव
में भी आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन आ जाता है। कहानी
की अंतिम कुछ पंक्तियाँ पढ़ते हुए लोकजीवन की वह उक्ति
अनायास ही पाठक के मन-मस्तिष्क में गुंजित हो जाती है
कि- ‘जैसे इनके दिन फिरै वैसे सबके दिन फिरै।’
वरिष्ठ
लेखक यशपाल की कहानी ‘होली
का मज़ाक’ कहानी मध्यमवर्गीय जनजीवन में दिखावे की
प्रवृत्ति को रेखांकित करती है। इसके अलावा कई अन्य
छोटी-छोटी सामाजिक बुराइयों को इस कहानी में उठाया गया
है। घर की मालकिन अम्मा जी का पांच तोले सोने का हार
त्योहार के भीड़-भड्डके में कहीं गुम हो जाता है। सारे
घर में उसकी ढुँढाई शुरू होती है, एक दूसरे के ऊपर
आरोपों-प्रत्यारोपों, तर्क-वितर्कों का दौर चलता है।
नौकरानी किलसिया पर भी शक किया जाता है, जबकि असलियत
में अम्मा जी को खुद ही याद नहीं होता कि वे हार कहाँ
रख कर भूल गयीं हैं। उनका मज़ाक तो तब बनता है जब हार
उनके पति, बाबू जी के कमरे में तकिये के नीचे पाया
जाता है। यह देख सबकी हंसी छूट जाती है। बात आस-पड़ोस
तक भी फ़ैल चुकी होती है। हंसी-ठिठोली के इस मज़ाक के
साथ कहानी का पटाक्षेप हो जाता है। यशपाल अपनी
कहानियों में न कहते हुए भी कई बार बहुत कुछ संकेतों
और बिम्बों के जरिये भी कह जाते हैं। उनकी यह शैली
इसलिए भी उन्हें अपनी तरह का एक विशिष्ट कथाकार बनाती
है।
यू.के.
से तेजेंद्र शर्मा की कहानी ‘एक
बार फिर होली’ नजमा की जिंदगी, उसकी खुशियाँ एवं
उसके दुःख की एक भावपूर्ण कहानी है। नजमा जो दिलोदिमाग
से एक भारतीय मुस्लिम महिला है जिसकी शादी एक
पाकिस्तानी कैप्टन इमरान के साथ हो जाने के कारण वह
उसके साथ पाकिस्तान में रहने लगती है, लेकिन भारत की
उत्सधर्मी संस्कृति को भूल नहीं पाती। कहानी जाति,
धर्म, भाषा व संस्कृति के कई स्याह पक्षों को उघाड़ती
चलती है। कारगिल युद्ध में नजमा के पति इमरान की
मृत्यु हो जाती है और तब जाकर उसका अपने देश लौटना
संभव हो पाता है। भारत लौटते ही उसे ऐसा लगता है मानो
एक बार पुनः उसकी कल्पनाओं को, उसके सपनों को पंख मिल
गये हों। होली का चिरप्रतीक्षित पर्व भी एक बार फिर
आने को होता है। उसका पूर्वप्रेमी चंदर पढ़लिखकर डॉक्टर
बन चुका होता है। जब उसे पता लगता है कि चंदर ने आज तक
शादी नहीं की तो उसका चेहरा ठीक वैसे ही लाल हो जाता
है जैसे कि 26 साल पहले हुआ था। इस बिंदु पर कहानी
ख़त्म हो जाती है।
यू.एस.ए.
से सुधा ओम ढींगरा की कहानी ‘ऐसी
भी होली’ एक प्रवासी भारतीय पात्र अभिनव की कहानी जो एक
यहूदी लड़की वेनेसा से प्रेम करता है। अभिनव और वेनेसा के
परिवार वाले इसे पसंद नहीं करते। लेकिन होली के दिन एक चमत्कार
होता है। कहानी में एकाएक सुखद मोड़ आता है जब भारत से उसके
दादा दादी अमेरिका पहुँचते हैं। घर में वह अपनी माँ, दादी,
वेनेसा का परिवार सभी लोगों को एक साथ पाता है। अभिनव के लिए
जैसे यह एक सपने का सच होने जैसा है। होली के इस पावन पर्व पर
सभी जन भाव-विह्वल हो जाते हैं। अभिनव की माँ कहती है, ‘भौंदू,
तुम्हें पता भी नहीं चला। तुम अपने ही खोल में कुढ़ते रहे,
माँ-बाप का गुस्सा तो हवा की हिलोर होता है, आता है और चला
जाता है। वेनेसा तुम्हारा गुस्सा ठंडा होने का इंतज़ार कर रही
थी। वह रंगों वाले दिन तुम्हें उपहार देना चाहती थी...इंसानी
रंगों के सरप्राईज़ का उपहार। पूरी कहानी जिस तरह से दुखांत से
सुखांत की और उन्मुख होती है उसकी पठनीयता का आकर्षण और बढ़
जाता है। कहानी अपने शीर्षक ‘ऐसी भी होली’ को पूर्णरूपेण
चरितार्थ करती है।
भारत
से राजीव तनेजा की कहानी ‘आसमान
से गिरा’ इस विषय पर एक बहुत ही मनोरंजक कहानी है। इस
कहानी को पढ़कर ऐसा लगता है मानो जैसे कहानीकार ने फुलटू मस्ती
के साथ होली के सभी रंगों को शब्द देकर उन्हें कहानी के रूप
में ढालकर प्रस्तुत कर दिया है। रंगों और हँसी–ख़ुशी का यह
त्यौहार, जिसे सभी धर्मों के लोग मिलकर मनाते हैं, आज अनेक
रूपों में देखने को मिलता है। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर
रासायनिक रंगों का प्रचलन, भंग–ठंडाई की जगह नशेबाजी और
लोक–संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप
है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में होली की भिन्न मान्यतायें
हैं और यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी
है। होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक–दूसरे
के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। राग–रंग का यह
लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है साथ ही ईश्वर के प्रति
अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद भी दिलाता है यह महान
पर्व। इस कहानी में भी होली के इसी सन्देश को लेखक ने एक
मनोरंजक कथारूप में बांधकर प्रस्तुत किया है।
यू.एस.ए.
से स्वदेश राणा की कहानी लंबी कहानी ‘हो
ली’ का आरंभ हिमालय की वादियों में बसे एक खूबसूरत शहर
डलहौजी के वर्णन से होता है। कहानी राज परिवार में होली के
उत्सव से शुरू होती है और संपन्नता में ढँकी कुछ ऐसी रहस्यमय
अंतर्कथाओं के साथ आगे बढ़ती है जो अभिमान, संवेदना, प्रेम और
आत्मसम्मान की आपसी खींचतान को लोक कथाओं जैसी रोचकता के साथ
प्रस्तुत करती हैं। होली के हुडदंग और दावत के बीच में देशकाल
की स्थितियाँ, पात्रों के आपसी संवाद और घटनाक्रम कथानक को चरम
तक ले जाते हैं। पूरे पर्वतीय अंचल में पर्व के बीच दाजू कुंवर
व देई कुंवरानी मनसा की पहली संतान के जन्म की खुशियाँ मनाई
जातीं हैं लेकिन सच्चाई का रहस्य मनसा के ह्रदय में दफ़न होता
है। वही जानती है कि ‘परबतिया वालों’ की नई फसल अभी भी बेटे से
नहीं शुरू हुई। दरअसल उनके वंश पर लगा शाप कुछ यों फलित होता
है कि जन्म लेने वाल बच्चा स्वयं दाजू कुंवर का बेटा ही नहीं
होता। पाठक के समक्ष इस कटु सत्य के उद्घाटन के साथ कहानी
समाप्त हो जाती है। एक स्त्री में सम्मान पर लगे कलंक की
परिणति किस तरह से हो सकती है कहानी का मूल कथ्य भी यही है और
कथा का यह प्रभाव पाठक को उद्वेलित भी करता है।
शीला
इंद्र की कहानी
मिठाई सिठाई बच्चों को केन्द्र में रखकर लिखी गई एक हास्य
कथा है। इसका प्रमुख आकर्षण मुहावरेदार सरल भाषा है जो पूरी
कहानी में पाठक को थामे रहती है। छोटी बच्ची मिन्नी के इर्द
गिर्द घूमती कहानी का केन्द्र होली का त्योहार है। इस पूरी
कहानी की कथावाचक नन्हीं नायिका मिन्नी ही है। मिन्नी की बाल
सुलभ बातें पूरी कहानी में लुभाती हैं। कहीं वे गुदगुदाती हैं
तो कहीं बाल-सुलभ जिज्ञासा, क्रोध, रोष का सृजन भी करते हैं।
बच्चों का मिठाई से प्रेम स्वाभाविक है और होली पर मिठाई की
बात तो बनती ही है। लेकिन मिठाई के प्रति यह अनुराग निराशा में
बदल जाए तो होली के मौसम में हास्य और व्यंग्य की सृष्टि भी हो
जाती है। इस बाद का सुंदर उदाहरण है यह कहानी। मिन्नी छोटी सी
है लेकिन बातें करती है बड़ों-बूढ़ों जैसी उसकी व्यवहारिकता और
उसमें छलकता बचपन आकर्षित करता है। कहानी में कोई बड़ा मुद्दा
तो नहीं लेकिन रोचकता और मनोरंजन बना रहता है।
रामदर्श
मिश्र की कहानी
विदूषक,
उत्तम पुरुष में लिखी गई, एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो होली
की छुट्टियाँ बिताने गाँव जाता है, अपने विदूषक मित्र गाने
बजाने के शौकीन जोगीराय से मिलने जिसने जीवन भर विदूषक बनकर
लोगों को हँसाया है, सबसे छेड़-छाड़ की है और सबको खुश रखा है।
लेकिन जीवन के अंतिम समय में वह अपने एक मात्र युवा पुत्र के
आकस्मिक निधन के कारण बड़े ही दुख के दिन काट रहा है। उससे
मिलकर नायक अत्यंत दुखी होता है लेकिन नायक से मिलकर उसका
मित्र विदूषक जोगीराय अपने दुखों से मुक्त हो जाने की शक्ति
प्राप्त कर लेता है। अनेक मार्मिक संवादों के बाद अत्यंत
संवेदनशील परिस्थितियों में इस कहानी का सुखद अंत होता है और
जोगीराज गाते हुए होली मनाने चल पड़ता है। कहानी का अंत इस
वाक्य से होता है- कुछ लोगों को पकड़े हुए जोगीराय वहाँ से चल
पड़े। वे एक जोगीड़ा गा रहे थे। उनके स्वर में कुछ स्वर
मिलने लगे। मैं भी साथ हो लिया। मैं सब देखता रहा और यह नहीं
समझ पा रहा था कि जोगीराय के दर्द से उल्लास फूट रहा है या
उल्लास से दर्द।
होली पर्व के पीछे तमाम धार्मिक मान्यताएं, मिथक, परम्पराएं और
ऐतिहासिक घटनाएं छुपी हुई हैं पर अंतत: इस पर्व का उद्देश्य
मानव–कल्याण ही है। लोकसंगीत, नृत्य, नाट्य, लोककथाओं,
क़िस्से–कहानियों और यहाँ तक कि मुहावरों में भी होली के पीछे
छिपे संस्कारों, मान्यताओं व दिलचस्प पहलुओं की झलक मिलती है।
वास्तव में हमारे द्वारा होली का त्यौहार मनाना तभी सार्थक
होगा जब हम इसके वास्तविक महत्व को समझकर उसके अनुसार आचरण
करें। इसलिए वर्तमान परिवेश में जरूरत है कि इस पवित्र त्यौहार
पर आडम्बर की बजाय इसके पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन
मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और
राष्ट्र सभी का कल्याण होगा। ऊपर चुनी गई कहानियों में अधिकतर
कथाकारों ने होली के उद्देश्य के इसी केन्द्रीय भाव के
इर्द-गिर्द अपनी कहानियों की रचना की है।
१७
मार्च २०१४ |