लैब का काम
जल्दी-जल्दी निपटा कर, अभिनव एयरपोर्ट पहुँचा, तो पता चला कि
न्यूयार्क से राले-डरहम की फ्लाईट विलंब से है, चलने से पहले
तो उसने कई बार कम्प्यूटर पर अमेरिकन एयर लाईन के सूचना विभाग
से पता किया था, फ्लाईट समय पर थी। प्रत्यावर्तन के परिवर्तन
से यह रोज़ की बात हो गई है.. कभी देर से, तो कभी फ्लाइट्स
पहुँचतीं ही नहीं..उसकी दादी और माँ पहली बार अमेरिका आ रहीं
हैं और वह उद्विग्न है, कोई उत्साह नहीं है उसमें... जिनको
अपने पास बुलाने के लिए वह कभी बहुत उत्सुक था... आज उन्हीं
रिश्तों से निर्लिप्त हो गया है वह... बस एक कर्त्तव्य की तरह
सब कार्य कर रहा है।
फ्लाईट एक
घंटा देर से आ रही है, इस बीच वह घर वापस नहीं जा सकता, आने
जाने में ज़्यादा समय लग जाएगा, उसे यहीं बैठ कर फ्लाईट के आने
की प्रतीक्षा करनी है...एयर पोर्ट की चहल-पहल से दूर उसने एक
कोना ढूँढा और वह उस कोने में बैठ गया। उसने पास पड़ा अखबार
पढ़ना चाहा, पर मन नहीं रमा और उसका विचलित हृदय ना जाने
कहाँ-कहाँ भटकता रहा...
दादी को वह
माँ से भी ज़्यादा चाहता था... माँ कालेज की प्रधानाचार्य थीं
और देर से घर आतीं थीं। स्कूल जाने और स्कूल से आने के बाद
दादी ही उसकी माँ और सहेली थीं... अमेरिका आने तक वह दादी को
गर्ल फ्रैंड बुलाता था। उनसे अपने दिल की हर बात कर लेता था।
दादी से उसे कितनी अपेक्षाएँ थीं... अपेक्षाएँ तो उसे भी थीं। |