कथा में कथावाचक अपने मित्र
ब्रिगेडियर बहल के मृत शरीर के पास बैठकर पुरानी यादों में
खोए हुए हैं। वे याद करते हैं कि ब्रिगेडियर बहल जो सेना
के दबंग तथा साहसी अधिकारी हुआ करते थे, सेवानिवृत्ति के
बाद जीवन के अंतिम क्षणों में कितने टूट-बिखर गए थे। जिन
बच्चों के सुखद भविष्य के लिए उन्होंने ब्रिगेडियर होने के
गुरूर को ताक पर रखकर टेकनीशियन की नौकरी की, वही बेटा उनके
अंतिम संस्कार के समय अपनी जिम्मेदारियों से इसलिये भाग
रहा है। बेटे द्वारा कथावाचक को कहे गए ये शब्द- ‘किशोर
जी, मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है कि क्या क्या
करना होगा डेड बॉडी के साथ। और मुझे परसों ही मैक्सिको
जाना है... दो मिलियन के कान्ट्रेक्ट का सवाल है... मैंने
ही निगोशिएटकिया है।‘ (पृ. २८) हमारी संपूर्ण चेतना को
झकझोर कर रख देते हैं।
शैल अग्रवाल की कहानी
‘वापसी’ यू.के. की पृष्ठभूमि में हेमंत मिश्रा और परमिंदर
लांबा के प्यार की कहानी है। हेमंत और पम्मी शादी करना
चाहते हैं परंतु पम्मी के माता पिता धोखे से उसे भारत बुला
लेते हैं और अपनी पसंद से उसकी शादी तय कर देते हैं। पम्मी
अपने घर-परिवार की मान-मर्यादा के लिए अपनी खुशियों तथा
आकांक्षाओं का गला घोंट देती है। मिस रूथ विलकिन्स के साथ
पम्मी को वापस लेने आए हेमंत से पम्मी कहती है- ‘हमारे
शास्त्र कहते हैं कि सामूहिक हित के लिए किया गया निर्णय
सौदा नहीं त्याग होता है और मैं ही क्या हमारे यहाँ तो
हजारों पम्मियाँ सदियों से ही करती आ रही हैं। स्वयंवर और
नारी-हित की बातें करने वाले इस देश में बस यही होता आया
है। पहले राधा-कृष्ण अलग किए जाते हैं फिर उनके मंदिर बना
दिए जाते हैं।...आदत डाल लो तो समुंदर में तैरती मछली भी
खुशी-खुशी काँच के बॉल में तैरने लग जाती है।’ (पृ. ४२)
परंपरा तथा आधुनिकता के अन्तर्द्वन्द्व में फँसी पम्मी
अंततः हेमंत के साथ जाने को तैयार हो जाती है और खास बात
तो यह कि उसकी दादी भी उसकी वापसी के लिए अपनी सहर्ष सहमति
देती है।
कृष्ण बिहारी की ‘जड़ों से
कटने पर’ संयुक्त अरब इमारात की पृष्ठभूमि में ईमानदारी के
बदले मुसीबत में फँसे दो मित्रों की कहानी है। परंतु कहानी
ईमानदारी के प्रति भरोसा नहीं उठने देती अपितु सच्चाई की
ताकत को दर्शाती है।
सुरेशचंद्र शुक्ल की कहानी
‘मंजिल के करीब’ नार्वे की पृष्ठभूमि में नस्लभेद के
यथार्थ और इंसानी रिश्तों की मिठास को अभिव्यक्त किया गया
है। नस्लभेद से आहत कथा नायक की पीड़ा थोम द्वारा सांझी की
जाती है। कथानायक परदेश में परायों के बीच स्वयं को
उपेक्षित महसूस करता है और थोम अपने परिवार में अपने ही
बच्चों द्वारा अपमानित है। दोनों एक-दूसरे में अपने लिए
इज्जत और प्यार पाते हैं।
उषा वर्मा की कहानी ‘रौनी’
यू.के. की पृष्ठभूमि में नस्लभेद के शिकार एक मासूमबच्चे
की कहानी है। क्लास टीचर मि. यूबर्ट के गुस्से और खीझ के
शिकार मासूम रौनीको वजह-बेवजह उनकी मार-पीट तथा अत्याचार
को सहन करना पड़ता है। कहानी तथाकथित सभ्य और आधुनिक देशों
में नस्लभेद के शिकार हजारों लोगों के दर्द, पीड़ा और
संघर्ष को बेहद मार्मिक ढंग से उजागर करती है। स्कूल में
सभी अध्यापकों तथा सहपाठियों के बीचहमेशा उसे तिरस्कार ही
मिलता है। निरपराध जेल में बंद अपनी माँ को याद करता रौनी
रोते-रोतेअपनी माँ से अक्सर ख्यालों में बात करता है। वह
कहता है- ‘मैं तो पीछे बैठता हूँ औरये सलीम खुद क्या है।
मुझे कभी निगर, कभी ब्लैकी या सि...द्दी... कहता है। वह
भीतो पाकी है। लेकिन उसकी माँ रोज आती है उसको लेने लेकिन
मेरी माँ...ममा तुम कहाँ हो, तुम्हें वे जेल क्यों ले गए।
ममा ये लड़के मुझे चारों तरफ से घेर कर खड़े हैं, मुझे
इतना डर लगता है ममा। मेरे पैर काँपने लगते हैं। मैं तो
भाग भी नहीं पाता ममा। रहीम मेरी बाजू में दबा-दबा कर
नाखून से खरोंच लगा देता है, कभी मेरे बालों को खींचता है।
क्यों ममा, मैं तुम्हारे पास रहूँगा तो कोई मुझे नहीं
सताएगा। मैं काला हूँ तो क्या। मैं इन सबसे तेज दौड़ता
हूँ। आएँ मेरे साथ रेस करें, मैं आगे निकल कर न दिखा दूँ
तो कहें।’ (पृ. ७२-७३) स्कूल में नई-नई आई मिस रीमा के मन
में रौनीके प्रति दया, सहानुभूति और स्नेह की भावना है।
रौनी मिस रीमा में अपनी माँ को पाता है। मिस रीमा रौनी की
सहायता करना चाहती है परंतु अपनी नौकरी गँवाने से डरती
हैं। रौनी को गहरी चोट आने पर सोशल वर्कर और रौनी की
फौस्टर मदर जाँच के लिए स्कूल आते हैं तो मिस रीमा उन्हें
सारी घटना बता देती हैं। उषा वर्मा जिस संवेदना से यह
कहानी कहती हैं उससे पाठक बेचैन हो उठता है। नस्लभेद के
घिनौनेपन को नंगा कर मानवता की वकालत करती है यह कहानी।
पूर्णिमा वर्मन ने संयुक्त
अरब इमारात की पृष्ठभूमि पर रची अपनी कहानी ‘यों ही चलते
हुए’ में भारतीयों की सामासिक तथा सामंजस्यपूर्ण सभ्यता और
संस्कृति का बड़े ही तार्किक ढंग से बयान किया है। वसुधैव
कुटुम्बकम् में विश्वास रखने वाले भारतीय किसी भी चौखाने
में बंद न होकर तमाम भेदभावों से ऊपर उठकर इंसानियत तथा
मानवीय धरातल पर जीते हैं, यही इस कहानी का संदेश है।
प्रेम जनमेजय की कहानी
‘क्षितिज पर उड़ती स्कारलेट आयबिस’ की श्रुति अपनी दीदी
सुधा के बिना एक पल भी नहीं रह पाती। दोनों बहनों की शादी
त्रिनिडाड के एक अच्छे परिवार में हो जाती है। ससुराल में
सभी सुख-सुविधाओं के बीच श्रुति का व्यवहार बिल्कुल
परिवर्तित हो जाता है। अतिमहत्वाकांक्षी श्रुति न तो अपनी
दीदी की कोई बात सुनती और न ही पति नवीन का ही कोई बस उस
पर चलता है। सभी संबंधों से अलग श्रुति अकेले ही
अन्तर्दन्द्वग्रस्त जीवन व्यतीत करती हुई नए रास्ते की खोज
में लग जाती है।
दीपिका जोशी की कहानी
‘सदाफूली’ कुवैत में रह रहे दो भारतीय परिवारों के
संवेदनात्मक रिश्ते को अभिव्यक्त करती है। जुही को पड़ोसी
भारतीय परिवार की लड़की तृष्णा के प्रति अतिरिक्त स्नेह और
चिंता है। उसे इस परिवार में तृष्णा के पिता के दफ्तर में
काम करने वाले यशराज का जरुरत से ज्यादा आना-जाना खलता है
और इस बारे में वह वासंती को कई बार समझा भी चुकी है।
परंतु वही होता है जिसका जुही को डर था। तृष्णा और यशराज
की शादी करके भारत भेज दिया जाता है। जुही अपनी भारत
यात्रा पर तृष्णा से मिलना नहीं भूलती। कहानी में अंततः
तृष्णा और यशराज दोनों ही आत्महत्या कर लेते हैं। नादान
प्रेम की असफलता को दर्शाती है यह कहानी।
गौतम सचदेव की कहानी ‘आकाश
की बेटी’ साधना नाम की स्त्री के त्यागपूर्ण तथा संघर्षमय
जीवन की कथा है। घर-परिवार के सारे रिश्तों को तोड़कर व
तमाम सुख-सुविधाओं को छोड़कर जिस देविंदर के प्यार के लिए
साधना झूठ बोलकर इंग्लैंड चली जाती है, उसी देविंदर द्वारा
छली जाती है। देविंदर का रुखा व्यवहार तथा एक अन्य ब्रिटिश
मेम शाइला से प्यार उसे तलाक के लिए मजबूर कर देता है।
दूसरी शादी में भी उसे इसी प्रकार की समस्याओं से दो-चार
होना पड़ता है। वह अपनी बेटी बबली को भी गवाँ देती है।
अपने घर के दालान में कबूतरों को दाना चुगाती साधना के
जीवन में आई एक नई कबूतरी की शरारतें कुछ-कुछ बबली से
मिलती-जुलती हैं। अब साधना उसी के इंतजार में रहती है और
उसी को जीने का सहारा मानकर खुश रहती है।
सुषम बेदी की कहानी ‘अवसान’
में शंकर अपने दोस्त दिवाकर का अंतिम संस्कार हिंदू रीति
से करना चाहता है परंतु उसकी अमेरिकी पत्नी हेलन चर्चमें
ही सारी औपचारिकताएँ पूरी करना चाहती है। चर्च में पादरी
की ओल्ड टेस्टामेंटकी पंक्तियों के बीच शंकर का मन बेचैन
है। पादरी की क्रिया खत्म होते ही शंकर गीता के
श्लोकोच्चारण से अपने मित्र के अंतिम संस्कार की क्रिया को
पूर्ण करता है। अब वह
बहुत संयत तथा हल्का महसूस करता है।
सुमन कुमार घई की कहानी ‘स्मृतियाँ’ केनेडा में बसे भारतीय
परिवारों के आपसी सहयोग, सहानुभूति तथा अपनेपन को दर्शाती
है।
संग्रह की अंतिम कहानी उषा
राजे सक्सेना की ‘बीमा बीस्माट’ एक बिल्कुल नए कथानक से
पाठकों को परिचित कराती है। यू.के. की पृष्ठभूमि पर लिखी
गई यह कहानी एक शिक्षिका द्वारा एक अर्धविक्षिप्त बालक
बीमा बीस्माट को एक जिम्मेवार ब्रिटिश नागरिक बनाने की
कड़ी मेहनत, लगन और समर्पण को प्रस्तुत करती है।
संग्रह की सभी कहानियाँ
कहीं-न-कहीं स्वदेश से गहरा लगाव रखती हैं और विदेश में
रहते हुए भारतीय मूल्यों तथा आदर्शों में विश्वास
प्रदर्शित करती हैं। लगभग सभी कहानियाँ चकाचौंध से भरे
विदेशी परिवेश के प्रति हमारे अनेक पूर्वाग्रहों तथा
दुराग्रहों को दूर करती हैं। अकेलेपन, अजनबीपन तथा दो
संस्कृतियों के बीच रह रहे प्रवासी भारतीयों के जीवन के
संगत-विसंगत को इन कहानियों में महसूस किया जा सकता है।
विदेशी मिट्टी में देशी संस्कारों की सौंधी महक से सराबोर
इन कहानियों से गुजरते हुए अपने देश, अपनी मिट्टी और अपनी
संस्कृतिके प्रति आस्था और विश्वास में बढौतरी होती है।
-कृष्ण कुमार अग्रवाल
१६ जनवरी
२०१२ |