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कहानियाँ  

आप्रवासी भारतीय लेखकों की कहानियों के संग्रह वतन से दूर में
यू.के. से उषा वर्मा की कहानी— 'रौनी'।


इधर कुछ दिनों से स्टाफ रूम में बैठ कर चाय पीना मेरे लिये एक सज़ा से कम नहीं था। दूसरी टीचर्स की बातों में छिपा व्यंग्य और कटाक्ष मुझे अक्सर ही झेलना पड़ता था। रौनी के बारे में मिस्टर ह्यूबर्ट के किए गए कमेंटस्, ' माई गॉड यह लड़का! सज़ा का भी इस पर असर नहीं है' या 'स्पेयर द रॉड... 'यह सब क्यों?

बस सिर्फ इसलिये कि मैंने क्यों रौनी को क्लास रूम में बुला कर समझाने की कोशिश की और पूछा था कि क्या उसे चोट लगी है। दूसरी टीचर्स की निगाह में या तो यह नया–नया जोश था या फिर अपने को दूसरों से ऊँचा और अलग दिखाने का दंभ भरा प्रयास था।

एक दिन तो लिज़ ने मुझे समझाने की कोशिश की, कहा, ' मिस रीमा आप अभी नई नई यूनीवर्सिटी से डिग्री ले कर आई है। चार दिन बाद सब असलियत समझ में आ जाएगी। तब यह जोश ठंडा पड़ जाएगा। और सैली भी छूटते ही बोली, 'और क्या, मिस रीमा यह इनर सिटी का स्कूल है। जब यहाँ के बच्चों से डील करना पड़ेगा तब आपको पता चलेगा, मिस्टर ह्यूबर्ट को इन बच्चों को पढ़ाने का बहुत एक्सपीरियंस है, रौनी जैसे बच्चों से डील करना उन्हें मालूम है। ' मैं क्या बोलती?

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