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कहानियाँ

आप्रवासी भारतीय लेखकों की कहानियों के संग्रह वतन से दूर में
यू.के. से
उषा राजे सक्सेना की कहानी— 'बीमा बिस्माट'।


सवा आठ बजे मैं एजहिल रोड से गुजरती हूँ और पौने नौ पर स्कूल पहुँच जाती हूँ। सत्र के पहले तीन दिन स्कूल सिर्फ शिक्षकों के लिए खुलता है। पहले दिन स्टाफ मीटिंग होती है जिसमें पूरे सत्र की योजनाएँ आदि बनती हैं। कक्षा को बच्चों के मनोनुकूल तथा आकर्षक बनाने के लिए री–आर्गनाइज' किया जाता है। एजुकेशन अथारिटी से आए संदेश पढ़े जाते हैं। इस बार एजुकेशन अथारिटी 'क्राऊन हाउस' में 'मल्टी कल्चरल एजुकेशन' पर 'इनसेट' (इन सर्विस ट्रेनिंग) देने का निमंत्रण मुझे भेजा गया था।

अभी मैं क्राउन हाउस पहुँची ही थी कि सोशल–वर्कर मिस बार्कर डेपुटी डाइरेक्टर मिस हिचिंस के साथ आई और मेरी ओर देखती हुई हेडमिस्टे्रस जेनिफर से बोली 'तुम्हारे कैचमंन्ट एरिया के एक परिवार में फोस्टर (पाले जाने के लिए) बालक आया है। बालक तुम्हारे यहाँ रिसेप्शन क्लास में आएगा।'

जेनिफर ने छूटते ही कहा, 'हमारा स्कूल टू फॉरमेन्ट्री (दो–माही दाखले वाला) है। हम लोग सत्र के बीच नया दाखला नहीं देते हैं। सारे बच्चे 'अनसेटल्ड' हो जाते हैं।'

डेपुटी डायरेक्टर ने बीच में ही दखल देते हुए कहा, 'नहीं–नहीं यह नया दाखला नहीं हैं। बच्चा साढ़े पाँच साल का है। वह ईस्ट–लंदन से इस परिवार में फोस्टर होने के लिए आया है। सीधा ट्रांसफर केस है।

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